उत्तराखण्ड कांग्रेस विधायक दल नेता इंदिरा हृदयेश का दिल्ली में निधन

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द लीडर देहरादून।

उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मंत्री डॉ. इंदिरा हृदयेश का रविवार को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह कांग्रेस की बैठक में शामिल होने वहां गई थी। उत्तराखंड सदन में आज अचनाक उनकी तबीयत खराब हुई दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें बचाने का ज्यादा वक्त नहीं मिला।उनका पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए हल्द्वानी लाया जा रहा है।
नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हाल ही में कोरोना से उभरी थी और उनका हार्ट संबंधी इलाज भी हुआ था। कुछ समय पहले श्रीनगर में भी एक कार्यक्रम के दौरान उनकी अचानक बिगड़ गयी थी और उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था। इन दिनों वह काफी व्यस्त थी। कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर भाग ले रही थी। कल भी वह दिल्ली में कांग्रेस की बैठक में मौजूद रहीं। 11 जून हो ही उन्होंने कांग्रेस के देशव्यापी प्रदर्शन के आह्वान पर महंगाई के विरोध में हल्द्वानी में प्रदर्शन में भाग लिया था।
उत्तराखंड सदन दिल्ली में सुबह नाश्ते के बाद उनकी तबीयत बिगड़ी और कुछ ही देर बाद ही उनकी मौत हो गई। हालांकि इसके बाद उनकी पार्थिव देह को अस्पताल ले जाया गया। उनके निधन पर कांग्रेस के उत्तराखंड के पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, उत्तराखंड के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना सहित पक्ष और विपक्ष के सारे नेताओं ने शोक प्रकट किया।

पांच दशक छायी रही राजनीति में

इंदिरा हृदयेश का जन्म 7 अप्रैल 1941 को हुआ था। पिछले पांच दशक में वह पहले उत्तर प्रदेश और फिर उत्तराखंड की राजनीति का चर्चित चेहरा रहीं। उत्तराखंड 2012 से 2017 तक उत्तराखंड सरकार में हरीश रावत के तहत संसदीय कार्य, उच्च शिक्षा और योजना मंत्री थीं और 2017 में कांग्रेस की हार के बाद नेता प्रतिपक्ष के रूप में उम्र के बावजूद लगातार सक्रिय थी।
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता इंदिरा वर्ष 1974 से लगातार चार बार उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद सदस्य का चुनाव जीतती रही है। राज्य गठन के बाद 2002 में इन्होंने पहली बार चुनाव हल्द्वानी से लड़ा। भाजपा के दिग्गज नेता बंशीधर भगत को पटखनी दी। एनडी तिवारी के नेतृत्व वाली सरकार में वह सबसे पावरफुल मंत्री थी। उन्होंने वित्त, लोनिवि एवं संसदीय कार्य जैसे विभागों को संभाला। 2007 में बंशीधर भगत ने उन्हें मात दी। 2012 में भाजपा की रेनू अधिकारी को हराकर वह पांच साल सरकार में नंबर दो की हैसियत में रहीं। इस वक्त वह नेता प्रतिपक्ष थी।

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