इस्लामिक कैलेंडर के जिलहिज्जा महीने की आज नौ तारीख है. इसी महीने में हज संपन्न होता है और ईद-उल-अजहा (बकरीद) मनाई जाती. इस बार करीब 60 हजार आजमीन हज के सफर पर हैं. काबे शरीफ से किस्वाह (गिलाफ) उतारने की रस्म हो चुकी है. हाजियों का काफिला अराफात के मैदान पहुंच रहा है. और हज शुरू हो चुका है. अराफात के मैदान में ही हज अदा होता है. लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक की सदाएं गूंज रही हैं. रूहानी नजारा है. पढ़िए खुर्शीद अहमद का ये लेख.
चाहें किसी देश का राजा हो राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री या फिर आम इंसान. कोई धन्ना सेठ हो या मजदूर. गोरा-काला, अमरीकी हो या अफ्रीकी, एशियन. सब एक ही जगह हाजिर हैं. अपने बीच के सारे भेदभाव छोड़ चुके हैं. उनके कपड़े एक जैसे हैं. यहां तक कि उनकी चप्पलें भी तकरीब एक जैसी ही हैं. सबके सब नंगे सिर हैं. और उनकी जुबानों पर बस एक सदा है. ” लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक , लब्बैक ला शरीका लक लब्बैक , इन्नल हम्दा वन्नेमता लका वलमुल्क, ला शरीका लक”.
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इस इस अरबिक आयत का अर्थ है कि यह अल्लाह मैं उपस्थित हूं. मैं हाजिर हूं. मैं उपस्थित हूं. तेरा कोई शरीक नहीं. मैं उपस्थित हूं. हर प्रकार की प्रशंसा व नेमतें और बादशाहत तेरे लिए है, तेरा कोई शरीक, साझीदार नहीं.
मिना से अराफात का सफर
-सुबह को हाजियों ने मिना में फर्ज की नमाज अदा की. सूरज निकलने के कुछ सवारी तो कुछ पैदल ही अराफात के मैदान के लिए निकल पड़े. मिना से अराफात की दूरी कोई 10 किलोमीटर है. अराफात पहुंच कर दुआओं में मशगूल हो रहे हैं.
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अराफाता में जो दुआएं पढ़ी जाती हैं उसमें एक खास दुआ ये है-” ला इलाहा इल्ला अल्लाहु वहदऊ, ला शरीका लहु, लहुल मुल्कु व लहुल अलहम्दु, व हुवा अला कुल्ले शयइन क़दीर “.
इसका मतलब है कि, अल्लाह के सिवाय कोई इबादत के योग्य नहीं. अल्लाह का कोई शरीक नहीं.उसी के लिए बादशाहत है. हर तरह की प्रशंसा उसी के लिए है. वह चीज पर कुदरत रखता है.
Arafah
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अराफात के मैदान में ज़ुहर और अस्र की नमाज़े एक साथ पढ़ी जाएंगी. और चार के बजाय दो दो रकात नमाज होगी. इमाम का ख़ुत्बा यानी संबोधन होगा.
हाजी पूरे दिन इबादतों और दुआओं में लगे रहेंगे. यहां तक कि सूरज डूब जाएगा और मगरिब की नमाज का समय हो जाएगा. लेकिन हाजी मगरिब की नमाज अदा किए बगैर वहां से मिना के मैदान के लिए वापस होंगे.
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रास्ते में 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुज़दलिफ़ा के मैदान पहुंच कर, एक साथ मगरिब व ईशा की नमाजें अदा करेंगे. और वहीं रात गुजारेंगे.
यूं तो हज के कार्य 8 ज़िलहिज्जा से शुरू हो जाते हैं. और 12 या 13 तारीख तक चलते रहते हैं. पर हज का असल कार्य अराफात के मैदान में समय गुज़ारना है. हज के दूसरे काम कोई भूल गया या उस से छूट गया तो उसके बदले में वह दूसरा काम कर सकता है. पर अगर वह अराफात नहीं पहुंचा. तो उसका हज ही नहीं होगा.