हफीज किदवई
-तुम्हारे पास क्या है? तेज़ आवाज में डाकू नें एक बच्चे से पूछा. मासूम से बच्चे नें कहा ये थोड़ी सी अशर्फ़ी हैं. डाकू नें फिर और भारी और डरावनी आवाज़ में कहा और क्या है ? बच्चे नें उसकी आंखों में आंखें डाल कर कहा कि मेरी सदरी में भी कुछ अशर्फियाँ हैं. अम्मी नें डाकुओं से बचाने के लिए सदरी में छुपा कर सिल दी थीं. (Gaus E Azam Truth)
डाकू नें हैरत से बच्चे पर नज़र डाली और पूछा. अगर तुम ना बताते तो हम ना जान पाते. हममे से कोई तुम्हारी सदरी उतार कर न देखता. तुम्हे हमसे डर नहीं लगा. तुमने अशर्फियों के बारे में हमे क्यों बता दिया.
तब मासूम से बच्चे नें मज़बूत आवाज से समझाया मेरी अम्मी ने कहा था कभी झूठ मत बोलना. हालात जितने भी मुश्किल हों मगर सच को थामे रखना. मैं अपनी अम्मी का कहा नही टाल सकता था. उनके बोल ही मेरे लिए फर्ज़ हैं.
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मैंने सिर्फ उनका कहा किया. बिना जाने, बिना डरे. डाकू की आंखें भर आईं. शर्म से सर झुक गया. घुटनों के बल बैठ आंसुओं से माफी मांगने लगा. वही मासूम बच्चा आगे चलकर अब्दुल क़ादिर जीलानी के नाम से सबसे महान सूफ़ी संत बने, जिन्हें गौस-ए-आजम या फिर गौस-ए-पाक के नाम से जाना जाता है. अब्दुल क़ादिर जीलानी साहब ने क़रीब एक दर्जन किताबें लिखीं. जिन्होंने फ़लसफ़े की दुनिया में बहुत ऊंची जगह पाई. (Gaus E Azam Truth)
आज उन्हें याद करने की हज़ारों वजहें हैं. बिना लंबी तक़रीरों, बातों के, उन्होंने अपने किरदार से लाखों के दिल बदले.उनके दिल में मोहब्बत और इंसानियत डाली. एक खुशबू डाली, जिसकी महक नें सारी दुनिया को एक से एक नगीने दिये. मोहब्बत के नगीने.
कभी यह किस्सा कोर्स की किताबों में “सच्चा बालक” के नाम से पढ़ा था. मगर अब नहीं है. अब किताबों में बांटने वाले किस्सों की भरमार है. इतिहास बदलकर दिलों में नफरत के बकटे बीज बोने पर लोग आमादा हैं. बिना सिर पैर की लन्तरानियां हैं. मगर ऐसे किस्से ग़ायब हो गए. इन्हें थोड़ा सा याद करने में कुछ चला नही जाएगा. हां इतना ज़रूर हो जाएगा कि हम मां का कहना शायद मानने लग जाएं. (Gaus E Azam Truth)
शायद बिना डरे और घबराए सच बोलने की हिम्मत आ जाए. एक खूबसूरत और अमन पसंद दुनिया के लिए ऐसा किरदार ज़रूरी है, जो सच बोलने की प्रेरणा दे. यह जान लीजिए अच्छाइयां ही ऐसी चीज़ हैं, जिन पर दुनिया टिकी हुई है. जब अच्छाइयां कम होंगी, सभ्यता संकट में आ जाएगी. क्योंकि अच्छाई ही सभ्यता का संतुलन है.
सच्चे बालक ही एक खुशबूदार मुस्कुराती दुनिया बना सकते हैं. हम सब ऐसा बनकर खुशहाल हिंदुस्तान बनाएं जो दुनिया को खूबसूरत राह दिखाए. जो सच कहने से न डरे. जो मां की दिखाई राह से दूसरों की मां की मुश्किलें दूर करे. जो एक मां के आंचल की छांव में दूसरी मांओं के लिए फूल चुने.
आज सूरज के डूबने से ग्यारहवीं दस्तक देगी. यह तारीख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी से मनसूब है. यानि सच्चे बालक का दिन. फ़ातिहा, दुरूद, नज़र और दूसरी बातें अपनी जगह हैं. सबसे ज़रूरी है इन तारीखों को याद रखना. उससे जुड़ी शख्सियत को याद रखना और अपनी नस्लों को नेक बनाना. (Gaus E Azam Truth)
मैं फिर कहता हूं उन किरदारों को महसूस करो. जिनसे यह ज़मीन ठंडक पाती है. जिनसे आसमान नरम हो जाता है. जो दिलों को सुक़ून देते हैं. यही सच्चे बालक का रास्ता है. जो मोहब्बत से मरहम बनते हुए सूफ़िज़्म की डोर पकड़े दिल के ज़ख्म को भरता है.