बरेली से दिल्ली तक… बसपा में रहस्य बनें छोटेलाल गंगवार

द लीडर हिंदी: यह जाने में हुआ या अंजाने में. चूक है या चूक जाने की कोशिश. ऐसे बहुत से सवाल हैं, जो यूपी के ज़िला बरेली से लेकर दिल्ली तक उठ रहे हैं. लेकिन उनका माक़ूल जवाब नहीं मिल पा रहा है. इसलिए कि जिन्हें जवाब देना है, वो ख़ामोश हो गए हैं. बात छोटेलाल गंगवार की हो रही है, जो बरेली लोकसभा सीट से बहुजन समाजपार्टी के उम्मीदवार थे. लेकिन एफिडेविट में बड़ी ग़लती कर बैठने की वजह से उनका पर्चा रिटर्निंग ऑफ़ीसर ने ख़ारिज कर दिया. पूर्व विधायक छोटेलाल गंगवार की इस एक ग़लती की वजह से बसपा बरेली में बग़ैर लड़े ही मैदान से बाहर हो गई है.

बरेली के चुनाव इतिहास में अपनी तरह का यह पहला ऐसा मौक़ा है, जिसमें किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी के उम्मीदवार का पर्चा, उसी की ग़लती से ख़ारिज हो गया. तब हो गया, जब वो टिकट मिलने के बाद से ही मुख्य मुक़ाबले में थे और उनकी तरफ़ से जीत का दावा पत्रकारों से मुलाक़ात और मतदाताओं से रूबरू होने पर बारंबार किया गया.

वही छोटे लाल गंगवार के पर्चा भरने के बाद तेवर दिखाए थे. उनके द्वारा कहा गया कि प्रवीण सिंह ऐरन को मुसलमान ही हरा रहे हैं. बता दें छोटेलाल गंगवार गुज़रे दिन जब उनका पर्चा दाख़िल हुआ तो मीडियाकर्मी उन्हें कलेक्ट्रेट में ढूंढते रह गए. वो बग़ैर बात किए चुपचाप वहां से निकल गए.

बसपा की तरफ से आंवला उम्मीदवार का पर्चा ख़ारिज होने के लिए तो ख़ूब शोर मचाया गया. हंगामा खड़ा कर दिया लेकिन छोटेलाल गंगवार के पर्चे पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया. तब भी जब बरेली के रिटर्निंग अॉफिसर रविंद्र कुमार की तरफ से पर्चा ख़ारिज करने की वजह साफ़ कर दी गई. अब बसपा उम्मीदवार के बग़ैर चुनाव लड़े बाहर हो जाने का अंजाम 4 जून को क्या सामना आएगा, कह नहीं सकते लेकिन मतलब तो सभी निकाल रहे हैं.

दो प्रमुख दलों के कुर्मी उम्मीदवारों में से एक के मैदान से हट जाने पर किसे फ़ायदा होगा, इस सवाल का जवाब बहुत ज़्यादा जटिल नहीं है. अब यह अलग बात है कि 7 मई को वोट डालते वक़्त जनता क्या फ़ैसला सुनाएगी. उसके लिए इंतज़ार कीजिए .

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Abhinav Rastogi

पत्रकारिता में 2013 से हूं. दैनिक जागरण में बतौर उप संपादक सेवा दे चुका हूं. कंटेंट क्रिएट करने से लेकर डिजिटल की विभिन्न विधाओं में पारंगत हूं.

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