राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस सप्ताह देश के उन लोगों को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा, जिन्होंने देश के लिए उल्लेखनीय और विशिष्ट योगदान दिया। हालांकि कई ऐसे नाम भी हैं, जिनके योगदान को लेकर विवाद छिड़ गया है। एक नाम ऐसा भी है, जिस पर अभी खास चर्चा नहीं है और वह ऐसी शख्सियत हैं जो पाकिस्तान के सेना अधिकारी रह चुके हैं। अब वे भारत के पद्मश्री हैं। यह हैं 71 वर्षीय रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल काजी सज्जाद अली ज़हीर। (Pakistan Officer Padma Shri)
यह बात किसी भी भारतीय के मन में आ सकती है कि पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी को आखिरकार क्यों पद्मश्री दिया गया ? क्या योगदान दिया उन्होंने भारत के लिए ?
इस सवाल का जवाब भी दिलचस्प है। बताया जा रहा है कि उनको यह सम्मान 50 साल पहले दिखाई गई ‘बहादुरी’ के लिए दिया गया। यह ‘बहादुरी’ उन्होंने बांग्लादेश को आजाद कराने में मदद करने के लिए जान जोखिम में डालकर दिखाई। यह काम उन्होंने भारत की सीमा पार करके किया था।
लेफ्टिनेंट कर्नल ज़हीर ने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में भारत की जीत में उनके प्रयासों और योगदान के एवज में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान हासिल किया है, जिसके नतीजे में पाकिस्तान से मुक्त होकर बांग्लादेश का गठन हुआ। (Pakistan Officer Padma Shri)
पांच दशक तक यह तथ्य सैन्य मामलों की संवेदनशील प्रकृति की वजह से पर्दे में रहा। लेफ्टिनेंट कर्नल ज़हीर का नाम कभी ऐसे मंच भी जाहिर हुआ, जिससे उनका नाम लोगों ने सुना हो। अचानक उनका नाम और काम सुर्खियों में तब आया, जब उन्होंने पद्मश्री लेने के लिए पोडियम पर कदम रखा। उसी वक्त लोगों को पता चला कि भारतीय खुफिया एजेंसी के काम और बाद में बांग्लादेश स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए यह पुरस्कार दिया गया है।
इस साल भारत और बांग्लादेश 1971 के मुक्ति संग्राम की 50वीं वर्षगांठ अपने-अपने तरीके से मना रहे हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल ज़हीर को दिए इस पुरस्कार की इसलिए भी खास अहमियत है। (Pakistan Officer Padma Shri)
लेफ्टिनेंट कर्नल ज़हीर की ‘बहादुरी’ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह साहस के साथ कहते हैं कि पाकिस्तान में उनके नाम पर पिछले 50 सालों से मौत की सजा लंबित है।