द लीडर ऋषिकेश।
उत्तराखंड में चिपको आन्दोलन के नेता पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की हालत बुधवार को और बिगड़ गई है, अब उनके खून और फेफड़ों में भी संक्रमण हो गया है। एम्स ऋषिकेश के कोविड आईसीयू वार्ड में एनआरबीएम मास्क के माध्यम से उन्हें आठ लीटर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। संस्थान के चिकित्सक अभी उनकी हालत स्थिर बता रहे हैं।
मंगलवार को विभाग के चिकित्सकों की टीम ने उनके हृदय संबंधी विभिन्न जांचें की थीं। इसके अलावा उनके दांए पैर में सूजन आने की शिकायत पर उनकी डीवीटी स्क्रीनिंग भी की गई। उनके स्वास्थ्य के बारे में एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने बताया कि जांच में उनके फेफड़ों में संक्रमण पाया गया है। चूंकि लंबे समय से उनका घर में बिस्तर पर ही उपचार चल रहा था, ऐसे में उनके शरीर में बेड सोर उभर आए हैं।
बुधवार को उनका सेचुरेशन लेवल 95 प्रतिशत पाया गया। उन्होंने बताया कि कोविड आईसीयू वार्ड में विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम की निगरानी में उनका उपचार जारी है। कोरोना संक्रमित होने की वजह से उन्हें शनिवार आठ मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। करीब 94 वर्षीय बहुगुणा को बुखार व खांसी की शिकायत थी।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी सन 1927 को उत्तराखंड के मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बीए किया। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उत्तराखंड में बड़े बांधों के विरोध में उन्होंने काफी समय तक आंदोलन भी किया। सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।