दांडी मार्च, जिसने सिखाया कि कैसे सरकार के कानून को आम जनता तोड़ सकती है

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दांडी मार्च कूच दिवस


इस खास दिन की यादगार में सबसे अहम दो बातें सामने आती हैं। पहली, सरकार का अन्यायपूर्ण कोई भी कानून अाम जनता तोड़ सकती है। दूसरी, आम लोगों को कैसे कड़ी दर कड़ी जोड़कर अहम मुद्दों पर आंदोलन की शक्ल दी जा सकती है। कैसे हुआ ये, यह जानना आज दिलचस्प है। (Dandi March Taught Public)

महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के बनाए नमक कानून के खिलाफ 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से समुद्र तट से सटे दांडी गांव तक 78 लोगों के साथ पैदल शुरू की थी। इरादा था, अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ना। हुआ यह था कि अंग्रेज हुक्मरानों ने नमक का उत्पादन और बिक्री पर भारीभरकम टैक्स लगा दिया था।

यह गरीब से गरीब परिवारों की जिंदगी को मुश्किल में डालने का कानून था। कुछ नहीं तो नमक से रोटी लगाकर खा लेंगे जैसी कहावतों में जी रहे लोगों का अपमान था। अतिआवश्यक वस्तु से टैक्स हटाने की गुजारिश नहीं मानी गई तो नमक कानून तोड़ने को दांडी मार्च का फैसला हुआ। (Dandi March Taught Public)

दांडी गांव तक 241 मील की दूरी की दूरी थी, जिसे कम समय में नहीं पूरा किया जा सकता था। साथ ही निरंकुश साम्राज्यवादियों को थोड़े से लोगों के दम पर चुनौती देना भी आसान नहीं था। नमक आम लाेगों की जरूरत होने से उनका सहजता से साथ आने की पूरी उम्मीद भी थी। इस यात्रा में 24 दिन लगे और रास्ते में लोग जुड़ते गए और हजारों लोगों का काफिला बनता गया।

इन हजारों लोगों को सीधे शब्दों में साम्राज्यवादी निजाम से एकजुट होकर लड़ने का पाठ भी पढ़ाया गया। बताया जाता है कि जाति बिरादरी के सवालों को दरकिनार कर लोगों ने साथ में मार्च किया। आखिरकार यात्रा के आंदोलनकारी मुसाफिर 6 अप्रैल को दांडी पहुंचे और समुद्र के पास जमे नमक से एक मुट्ठी नमक उठाकर गांधी ने हुकूमत को चुनौती दी, साथ ही आम लोगों को गहरा संदेश। (Dandi March Taught Public)

अंग्रेजों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने इन सत्याग्रहियों को कानून तोड़ने के जुर्म में लाठियाें से पीटा। आंदोलन में शामिल राजगोपालचारी, जवाहरलाल नेहरू समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। गांधी को 5 मई को गिरफ्तार किया गया। लेकिन आंदोलन थमा नहीं, पूरे साल तक जारी रहा।

आंदोलन पूरी दुनिया की सुर्खियाें में छा गया। कहा जााता है कि उस समय में टाइम पत्रिका ने अपने 31 मार्च के अंक पर महात्मा गांधी की तस्वीर छापी थी। यह आंदोलन 1931 को गांधी-इर्विन समझौते के बाद खत्म हुआ।


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