व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव ‘लेनिन’ (22 अप्रैल 1870 – 21 जनवरी 1924)
आज रूसी क्रांति के नायक और दुनिया भर के मजदूरों के महान नेता लेनिन का स्मृति दिवस है. लेनिन न सिर्फ रूसी क्रांति के नायक, मजदूरों के वैश्विक नायक थे, बल्कि वे उपनिवेशवाद के उस दौर में गुलाम देशों की आजादी के लिए दुनिया भर में चल रहे आंदोलनों के भी नायक थे. इसी क्रम में वे शहीद भगत सिंह के भी आदर्श थे. 1924 में आज ही के दिन वे दुनिया से विदा हुए. लेनिन को याद करते हुए जर्मनी के प्रसिद्ध कवि,नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त द्वारा 1935 में लिखित कवितायें प्रस्तुत हैं. कविताओं का हिंदी अनुवाद- सत्यम द्वारा किया गया है. (Cantata on Lenin Memorial Day)
1.
जिस दिन लेनिन नहीं रहे
कहते हैं, शव की निगरानी में तैनात एक सैनिक ने
अपने साथियों को बताया: मैं
यक़ीन नहीं करना चाहता था इस पर.
मैं भीतर गया और उनके कान में चिल्लाया: ‘इलिच
शोषक आ रहे हैं.’ वह हिले भी नहीं.
तब मैं जान गया कि वो जा चुके हैं.
2.
जब कोई भला आदमी जाना चाहे
तो आप कैसे रोक सकते हैं उसे?
उसे बताइये कि अभी क्यों है उसकी ज़रूरत.
यही तरीक़ा है उसे रोकने का.
3.
और क्या चीज़ रोक सकती थी भला लेनिन को जाने से?
4.
सोचा उस सैनिक ने
जब वो सुनेंगे, शोषक आ रहे हैं
उठ पड़ेंगे वो, चाहे जितने बीमार हों
शायद वो बैसाखियों पर चले आयें
शायद वो इजाज़त दे दें कि
उन्हें उठाकर ले आया जाये, लेकिन
उठ ही पड़ेंगे वो और आकर
सामना करेंगे शोषकों का.
5.
जानता था वो सैनिक, कि लेनिन
सारी उमर लड़ते रहे थे
शोषकों के ख़िलाफ़
6.
और वो सैनिक शामिल था
शीत प्रासाद पर धावे में,
और घर लौटना चाहता था
क्योंकि वहाँ बाँटी जा रही थी ज़मीन
तब लेनिन ने उससे कहा था:
अभी यहीं रुको !
शोषक अब भी मौजूद हैं.
और जब तक मौजूद है शोषण
लड़ते रहना होगा उसके ख़िलाफ़
जब तक तुम्हारा वजूद है
तुम्हें लड़ना होगा उसके ख़िलाफ़.
7.
जो कमज़ोर हैं वे लड़ते नहीं. थोड़े मज़बूत
शायद घंटे भर तक लड़ते हैं.
जो हैं और भी मज़बूत वे लड़ते हैं कई बरस तक.
सबसे मज़बूत होते हैं वे
जो लड़ते रहते हैं ताज़िन्दगी.
वही हैं जिनके बग़ैर दुनिया नहीं चलती.
8.
कसीदा इंक़लाबी के लिए
अक्सर वे बहुत अधिक हुआ करते हैं
वे ग़ायब हो जाते, बेहतर होगा.
लेकिन वह ग़ायब हो जाये, तो उसकी कमी खलती है.
वह संगठित करता है अपना संघर्ष
मजूरी, चाय-पानी
और राज्यसत्ता की ख़ातिर.
वह पूछता है सम्पत्ति से:
कहाँ से आई हो तुम?
जहाँ भी ख़ामोशी हो
वह बोलेगा
और जहाँ शोषण का राज हो
और क़िस्मत की बात की जाती हो
वह उँगली उठायेगा.
जहाँ वह मेज पर बैठता है
छा जाता है असन्तोष मेज पर
ज़ायका बिगड़ जाता है
और कमरा तंग लगने लगता है.
उसे जहाँ भी भगाया जाता है,
विद्रोह साथ जाता है और जहाँ से उसे भगाया जाता है
असन्तोष रह जाता है.
9.
जब लेनिन नहीं रहे और
लोगों को उनकी याद आई
जीत हासिल हो चुकी थी, मगर
देश था तबाहो-बर्बाद
लोग उठकर बढ़ चले थे, मगर
रास्ता था अँधियारा
जब लेनिन नहीं रहे
फुटपाथ पर बैठे सैनिक रोये और
मज़दूरों ने अपनी मशीनों पर काम बंद कर दिया
और मुट्ठियाँ भींच लीं.
10.
जब लेनिन गये,
तो ये ऐसा था
जैसे पेड़ ने कहा पत्तियों से
मैं चलता हूँ.
11.
तब से गुज़र गये पंद्रह बरस
दुनिया का छठवाँ हिस्सा
आज़ाद है अब शोषण से.
‘शोषक आ रहे हैं!’: इस पुकार पर
जनता फिर उठ खड़ी होती है
हमेशा की तरह.
जूझने के लिए तैयार.
12.
लेनिन बसते हैं
मज़दूर वर्ग के विशाल हृदय में,
वो थे हमारे शिक्षक.
वो हमारे साथ मिलकर लड़ते रहे.
वो बसते हैं
मज़दूर वर्ग के विशाल हृदय में. (Cantata Lenin Memorial Day)
* कैंटाटा – वाद्य यंत्रों के साथ लयबद्ध गायी जाने वाली संगीत रचना. जो वर्णनात्मक और कई भागों में होती है (कुछ-कुछ हमारे बिरहा की तरह). इस कैंटाटा के संगीत को अंतिम रूप दिया था जर्मन कवि और नाटककार ब्रेष्ट के साथी और महान जर्मन संगीतकार हान्स आइस्लर ने. इस रचना का आठवाँ भाग ‘इंक़लाबी की शान में क़सीदा’ ब्रेष्ट ने पहले पहल 1933 में, गोर्की के उपन्यास ‘माँ’ पर आधारित अपने नाटक के लिए लिखा था.
(इन्द्रेश मैखुरी की फेसबुक वाल से साभार)