पश्चिम बंगाल में तृणमूल से ही नहीं, इस आंदोलन से हो रहा भाजपा का सामना

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रिजवान रहमान

बंगाल में “नो वोट टू बीजेपी” नाम से एक कैंपेन चल रहा है जो चुनावी कैंपेन से आगे बढ़कर आंदोलन की शक्ल अख्तियार कर चुका है. वैसे तो यह शुरुआत करीब दो महीने पहले ही हुई, लेकिन इतने कम समय में भी यह लगभग पूरे बंगाल में जड़े फैला चुका है.

“नो वोट टू बीजेपी” नाम की इस मुहिम में प्रैक्टिसिंग डॉक्टर, प्रोफेसर, फिल्ममेकर, आर्टिस्ट शामिल हैं। दो महीने के भीतर ही स्टूडेंट्स, एक्टिविस्ट और तमाम दूसरे पेशेवर लोगों का जत्था शामिल हो गया है. हालांकि शुरू में लोगों को लगा था कि ये कुछ और नहीं, एक सोशल मीडिया स्टंट भर है.

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बहुत समय पहले नहीं, इसी 4 जनवरी को जनांदोलनों से जुड़े रहे वामपंथी पृष्ठभूमि के लोगों ने एक कांफ्रेंस इस विचार के साथ की थी कि बीजेपी सेक्युलरिज्म और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खतरा है और बंगाल में इतने सारे सेक्युलर लोगों के होने के बावजूद भी 2019 के चुनाव में में बड़ी संख्या में वोट पाने में कामयाब रही थी, जो चिंता का विषय है.

कांफ्रेंस में तय किया गया कि लोगों तक पहुंचकर बताया जाए कि भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार लोगों को मूर्ख बनाती है. इसे इस मकसद से भी डिजाइन किया गया कि उन वोटर तक पहुंचा जाए जो या तो पहली बार वोट कर रहे हैं या जिन्होंने 2019 में बीजेपी को वोट दिया था, ताकि उनसे बात कर बीजेपी के प्रभाव से दूर करने की कोशिश संभव हो.

आंदोलन की शक्ल में आने से अब यह सिर्फ चुनावी कैंपेन नहीं रहा. इसका असल टारगेट है बंगाल से बीजेपी का समूल नाश. यह कयास भी हैं कि अगर बंगाल चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर पर आती है तो भी यह मुहिम रुकेगी नहीं. सही मायने में कहा जाए तो यह वन-लाइनर अभियान नहीं बल्कि आरएसएस-बीजेपी के खिलाफ एक वैचारिक लड़ाई की तरह दिखाई दे रहा।

एक और तथ्य है कि इस चुनावी मौसम में बीजेपी एनआरसी पर बोलने से बच रही है. लेकिन “नो वोट टू बीजेपी” से जुड़े लोग जनता के बीच एनआरसी का मुद्दा लेकर जा रहे हैं और बता रहे हैं कि एनआरसी बीजेपी के एजेंडे में सबसे उपर है, जिसे मामूली रूप में नहीं लिया जा सकता.

वे बता रहे हैं कि अगर बीजेपी को पूरी तरह नहीं हराया गया तो बंगाल के लोगों को अंतत: एनआरसी का सामना करना ही पड़ेगा. साथ ही इस कैंपेन की प्राथमिकता वोटर्स का माइंड कुछ इस तरह भी वॉश करना है कि अब बंगाल और देश बचाने के लिए नई शिक्षा नीति, सांप्रदायिक राजनीति, नए लेबर कोड और कृषि कानून की मुखालफत और उसके खिलाफ खड़ा होना सभी नागरिकों का कर्तव्य है.

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

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