हफीज किदवई
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का आज 74वां जन्मदिन है. एक लंबे समय के बाद वह परिवार के साथ जन्मदिवस मना रहे हैं. जेपी आंदोलन से देश की राजनीति में पदार्पण करने वाले लालू प्रसाद यादव एक धाकड़ नेता के तौर पर जाने जाते हैं. बिहार के चर्चित चारा घोटाले में उन्हें सजा हो चुकी है. लालू यादव के जन्मदिवस पर लेखक हफीज किदवई का ये लेख पढ़िए.
चोट उंगली में थी और दोष पूरे शरीर को देते रहे. उंगली नीतीश थे और शरीर लालू. कितनी आसानी से लालू को खलनायक बना दिया और खलनायक को नायक बनाकर पूजते रहे. 15 साल में क्या हासिल किया बिहार ने, मीडिया ने लालू कार्यकाल को बनाया बीमारू और मीडिया ने ही नीतीश को कहा विकास पुरुष. खैर, हमें नीतीश से कोई लेना देना नहीं क्योंकि ऐसे लोगों से क्या ही उलझें, आज कुछ, कल कुछ, परसो कुछ, न ज़ुबान का ठिकाना और न ही किरदार का कोई ठिकाना. कुर्सी के लिए किसी को भी पाया बना लेने वालों पर बात ही बेईमानी है.
आते हैं लालू यादव पर. उनके ऊपर हर कोई भ्रष्टाचारी का आरोप लगा देता है. वह भी चारा चोर कहते, जिनमें रत्ती भर भी राजनैतिक समझ नहीं. यह मासूम लोग हैं, इन्हें टीवी में बैठा, एंकर बता देता है फलाने चोर हैं. ये चोर-चोर का राग अलापने लगते हैं. टीवी का एंकर कह देता है कि फलाने महान हैं, विकास पुरुष हैं, ये उसके नाम ले लेकर लहालोट होते हैं . ये कभी भी पलट कर अपने इर्द-गिर्द नही देखते हैं.
लालू के जमाने में हुए अपराध को देखते वक़्त सूक्ष्मदर्शी इस्तेमाल करते हैं. और वर्तमान के अपराध झांकने में अपनी मटर जैसी आंखे इस्तेमाल करते हैं. जरा बिहार के अगल-बगल के मुख्यमंत्री को भी देखें. उन्होंने अपने राज्यों में बिहार से ज़्यादा काम किया है. जबकि वह आते-जाते रहे हैं. यूपी को ही ले लें. नीतीश के समकक्ष मुलायम सिंह यादव, मायावती या राजनाथ सिंह. सबने इनसे बेहतर काम, कम वक्त में किया है.
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अखिलेश यादव के पांच साल के काम तो नीतीश अगले पचास साल में भी नहीं कर पाएंगे. नीतीश की छवि एक ढोल थी जो सिर्फ लालू-लालू, लालू.. कहकर बज रही थी. लालू को कोसो और सत्ता पाओ. लालू को गले लगाओ और सत्ता पाओ. यानी सत्ता सिर्फ एक नाम से मिलती, वो हैं लालू.
लालू कभी नैतिकता में नीचे नहीं गिरे. कभी घिनौनी राजनीति नही की. गलतियां उतनी ही कीं, जितनी हमारे देश के तमाम विख्यात नेता करते रहे. और काम भी उतना ही किया. आज लालू जेल में हैं. यही प्रमाण हैं उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता का. और उस सत्ता के डर का, जो हुक़ूमत लालू प्रसाद की आंख में देख सहम जाती है.
एक बार लालू के सर लगे इल्ज़ाम को देखिएगा. रुपयों की गिनती कर लीजिएगा. और यह भी देखिएगा उतने रुपये में आज खरीदार कितने विधायक खरीदकर चुनी हुई सरकार गिरा देते हैं.
ऐसे लोग लालू पर सवाल उठाते हैं, जो विधायक खरीदने वाले के सामने सर झुकाया करते हैं. ईमानदार हो तो सर उठाकर उसको भी इतना ही कोसो, जो लालू के सर मढ़े भ्रष्टाचार की कीमत में एक या डेढ़ विधायक ही खरीद पाता. जबकि सरकारों ने कितने ही विधायक खरीदे हैं. सोचो, कितना खर्च किया होगा.
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लालू का जेल मे रहना और लालू को बदनाम करना. दोनों सूरत में किसी की चुनावी दुकान चलती है. लालू जेल में हैं, यह भी उनकी ईमानदारी है. राहुल गांधी से जो थोड़ा नाराजगी है. उसकी वजह लालू प्रसाद यादव हैं. राहुल गांधी को इस भारत मे अगर आज किसी से राजनीतिक दीक्षा लेनी चाहिए, वह सिर्फ लालू प्रसाद यादव हैं. वह भी बिना अगर-मगर लगाए, क्योंकि लालू देश की मिट्टी की नब्ज पहचानते हैं.
मैं, खुद को कोसता हूं कि लालू को मापने में हमने इतना अगर-मगर क्यों किया. क्यों लालू को जांचने में हमने उनकी सुनी, जो अपनी जुबान कहीं से उधार लाए थे. लालू प्रसाद यादव का आज जन्मदिन है. हम इसका प्रायश्चित करते हैं कि हमने उस समय मुंह नहीं खोला जब खोलना चाहिए था. लालू का सलाखों में जाना हमारा खुद का क़ैद हो जाना था. एक ही तो आवाज़ थी, जो बिना तराज़ू लिए बोलती थी.
बस ख़ुशी इतनी है कि लालू प्रसाद यादव को हमने कभी खलनायक नहीं माना. कभी उनकी लीडरशिप में खामी नही देखी. और कभी उन्हें कमज़ोर, मजाकिया या फ़िज़ूल नहीं जाना. हमेशा यह तो माना कि वह अद्वितीय हैं.
अन्ना हजारे के झांसे के वक़्त लालू ही एक आवाज़ थे, जो संसद से सड़क तक बोल रहे थे कि यह आंदोलन सही नहीं है. लालू उस वक़्त ही नब्ज़ पकड़ चुके थे. मगर सरकार मदमस्त थी लालू को ही घेरने में. उनकी आवाज़ अनसुनी की गई. संसद में लालू के वह भाषण आज भी ऐतिहासिक हैं, जो बताते हैं कि संसद सर्वोच्च है. क्योंकि जनता ने उन्हें चुना है. लालू एक दौर की राजनीति का पर्याय हैं और अपने विरोधी की ऑक्सीजन हैं.
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लालू प्रसाद को जन्मदिन की मुबारकबाद और प्रार्थना कि वह अभी मज़बूती से और रहें, क्योंकि देश को उनकी जरूरत हैं. जिन्हें लालू के आरोप, सज़ा या परिवारवाद से दिक्कत है. वह हमें उस पार्टी का नाम बताएं, जिनमें यह अवगुण न हों. कम या ज़्यादा.
लालू प्रसाद यादव इस माटी का हमको प्रसाद हैं, हम उनकी इज़्ज़त करते हैं. लालू कुछ भी हों, धोखेबाज़, चालबाज़, मक्कार नहीं हो सकते. और लाशों पर राजनीति नहीं करते. बस इतना काफी है, उनके प्रति प्रेम के लिए. हां, हम लालू से प्रेम करने लगे हैं… जन्मदिन मुबारक, प्रभु कृष्ण आपको सफलता, सरलता और स्वस्थ्य, सब दें. जैसे देते रहे हैं.
(हफीज किदई राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं पर नियमित टिप्पणी करते हैं. ये लेखक उनके सोशल प्लेटफॉर्म से यहां साभार प्रकाशित है, जो उनके निजी विचार हैं.)