द लीडर. आला हज़रत के चश्म-ओ-चिराग़ की एक झलक पाने के बेचैन हो जाने वाले अक़ीदतमंद उनकी बात मान नहीं रहे हैं. इसे लेकर ग़ुस्सा और बेचैनी दोनोें हैं. गुज़री रात यह ग़ुस्सा छलक भी गया, जब दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन मुफ़्ती मुहम्मद अहसन रज़ा क़ादरी अहसन मियां जुलूस-ए-ग़ौसिया की क़यादत करने के लिए पहुंचे. जुलूस यूपी के ज़िला बरेली में पुराना शहर के रज़ा चौक से निकाला जा रहा था. मना करने के बावजूद अंजुमन डीजे लेकर आई थीं. अहसन मियां बिगड़ गए. जुलूस की क़यादत किए बग़ैर ही सय्यद हुमायूं अली को परचम-ए-ग़ौसिया सौंपकर वहां से आ गए.
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बाद में मीडिया प्रभारी नासिर क़रैशी की मार्फ़त यह एलान भी कराया है कि अगले साल एक साउंड होगा वो भी दरगाह का. सादगी के साथ नात-ओ-मनक़बत पढ़ते हुए चला जाएगा. शाम छह बजे निकलने वाला यह जुलूस दोपहर में दो बजे निकलेगा. हुड़दंग करने वाली एक भी अंजुमन इसमें शामिल नहीं होगी. यह तीसरा मौक़ा है, जब दरगाह से जुलूस में डीजे को मना किया गया और अंजुमन फिर भी डीजे के साथ आईं. आल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान ने जुलूस-ए-मुहम्मदी से पहले तो पुराना शहर में यहां तक कह दिया था कि अगर डीजे के लिए एडवांस दे चुके हैं तो वो मुझसे से लेना लेकिन ख़ुदा के लिए डीजे मत लाना. डीजे फिर भी आए.
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अब सवाल यह है कि आख़िर बात सुनी क्यों नहीं जा रही है. इसकी वजह जो द लीडर हिंदी ने समझी वो यह है कि मस्जिदों के इमाम उस तरह समझा नहीं पा रहे हैं, जिस तरह से बात मान ली जाए. गुज़रे जुमे को जसोली की मस्जिद पीरा शाह में नमाज़ अदा की तो यहां इमाम साहब नमाज़ियों से जुलूस में डीजे के साथ नहीं जाने को लेकर ही बात कर रहे थे. उनका अंदाज़-ए-बयां यह था कि हमारा काम कहना है, मानो या न मानो यह तुम्हारा काम है. मतलब यह कि इमाम हज़रात का काम सिर्फ़ ज़ुबां से बता देना है. कह देने के बाद बात को माना भी जाए, यह न यह जुस्तजू दिख रही है और न आरज़ू. यही वजह है कि दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन अहसन मियां बार-बार ग़ुस्सा हो रहे हैं. चाहे जुलूस में डीजे पर हुड़दंग या फिर शादी में ग़ैर शरई रस्म. वो इसके ख़िलाफ़ अपनी कोशिशों से ही माहौल को साज़गार करने में लगे हैं. उम्मीद है कि उनकी बात को माना जाएगा, वरना फिर वो एक्शन भी लेते नज़र आ रहे हैं.