श्रीपति त्रिवेदी
कोलकाता। चुनावी मंच पर नेताओं की बोली भले ही एक-दूसरे को कड़वी लगे लेकिन बांग्ला संगीत और भाषा हमेशा मीठी लगती है। इन दो चीजों के अलावा एक चीज और है जिसकी मिठास बंगाल के लोगों की जुबान पर हमेशा चढ़ी रहती है और वह हैं बांग्ला मिठाइयां। आज हम एक और बांग्ला मिठाई से आपका मुंह मीठा कराते हैं। इस मिठाई का नाम है मिहीदाना।
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मिहीदाना कोई आम मिठाई नहीं है। यह बंगाल की बेहद खास मिठाई है। बंगाल के वर्धमान जिले में तो इसकी महक फिजा में झूमती है। वर्धमान में वोटिंग 17 तारीख को होगी। किसका मुंह मीठा होगा और किसका कड़वा वह तो 2 मई को पता चलेगा, लेकिन हम आपका मुंह अभी से मीठा करा देते हैं।
शायद यह बंगाली मिठाइयों का ही रंग है कि बंगाली वोटर जमकर वोट डालते हैं। पिछली बार वर्धमान में तकरीबन 82 फ़ीसदी मतदान हुआ था। इस बार भी अब तक हुए 3 चरणों में लगभग 80 फ़ीसदी वोटिंग हुई है। फिलहाल हम बात कर रहे हैं मिठाई की मिहीदाना की। यह बहुत ज्यादा पुरानी मिठाई नहीं है लेकिन अंग्रेजों के ज़माने में ये मिठाई चलन में आई।
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इसका इतिहास बहुत मजेदार है। वर्धमान के राजा मेहताबचंद ने ब्रितानी हुकूमत के लॉर्ड कर्जन के स्वागत में इसी मिठाई से उनका मुंह मीठा कराया था। राजा साहब ने यह मिठाई उस वक्त अपने शहर के सबसे बड़े हलवाई वैराबचंद नाग से बनवाई थी। राजा साब चाहते थे लॉर्ड कर्जन के सामने कुछ ऐसा पेश किया जाए जो उन्होंने कभी ना खाया हो। यह बात अगस्त 1904 की है। लार्ड कर्ज़न को जब ये मिठाई सजाकर पेश की गई। इसको देखते है कर्ज़न आकर्षित हो गए। मिहिदाना खाते ही वह बोले- Wow… Tasty!!
उसके बाद धीरे-धीरे पूरे वर्धमान क्षेत्र या यूं कहे कि मध्य बंगाल में यह मिठाई बहुत खास हो गई। मिही का मतलब होता है फाइन बहुत महीन और दाना आप बूंदी को कह सकते हैं। इन दोनों को मिलाकर ही मिहीदाना का नाम पड़ा।
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मिहीदाना मिठाई बनाने के लिए कामिनीभोग, गोविंदभोग, बासमती चावल, बेसन और चीनी की चाशनी का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे पहले सब को मिलाकर एक घोल तैयार किया जाता है और रंग देने के लिए उसमें केसर का इस्तेमाल होता है। बूंदी को छानते हुए घी में तला जाता है। फिर उसे चाशनी में डुबो दिया जाता है। बस अब मिहीदाना खाने के लिए तैयार है। चुनावी मौसम में नेताओं के मन में भले ही एक दूसरे के प्रति कड़वाहट हो लेकिन शायद मिहीदाना इस कड़वाहट को मिटाने की कोशिश कर सके।