बरेली में तैयार हो गई AIMIM की सियासी ज़मीन, चेयरमैनी से लेकर पार्षदी तक मिली जीत

0
333

द लीडर हिंदी: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लेमीन के चीफ़ बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी यूपी के ज़िला बरेली में पैर जमाने की कोशिश लंबे वक़्त से कर रहे हैं. वो इसके लिए विधानसभा चुनाव में रैली करने बरेली आए भी थे, लेकिन उन्हें सियासी ज़मीन अब मिली है.

AIMIM ने निकाय चुनाव की बदौलत आला हज़रत की नगरी और मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान की जन्मभूमि-कर्मभूमि कहे जाने वाले शहर में मज़बूत क़दम रख दिया है.

चेयरमैनी से लेकर पार्षदी तक मिली जीत

बरेली से सटे कस्बे ठिरिया निजावत ख़ां की चेयरमैनी और नगर निगम के वार्ड नंबर 79 की जीत यही बता रही है. महापौर की सीट पर AIMIM ने जिस कंडीडेट को लड़ाया उन्हें 10 हज़ार से ज़्यादा वोट मिल गए. तब जबकि प्रचार के लिए न असदुद्दीन ओवैसी और न उनकी पार्टी का कोई बड़ा चेहरा प्रचार करता दिखाई दिया. बैरिस्टर साहब के नाम और अपनी कोशिशों के बूते इमरान अली चेयरमैन, फ़रीक़न बेगम पार्षद और महापौर की सीट पर मुहम्मद सरताज 10355 वोट ले आए. जो पांचवें नंबर पर रहे. AIMIM का यह प्रदर्शन साफ बता रहा है कि बरेली के मुस्लिम वोटर के मन में बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी के लिए कहीं न कहीं साफ़्ट कार्नर है.

2024 के चुनाव में क्या करेंगे ओवैसी

असदुद्दीन ओवैसी आगे लोकसभा 2024 के चुनाव में क्या करते हैं. अपने दम पर उतरेंगे या किसी के साथ मिलकर लड़ेंगे, यह वक़्त बताएगा. वैसे वो बरेली में ऑल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान के दरगाह आला हज़रत के पास स्थित आवास आकर उनकी तरफ़ सियासी दोस्ती का हाथ बढ़ा चुके हैं, लेकिन बात नहीं बनी और बाद में कुछ मुद्दों पर अलग राय होने के सबब इन दो मुस्लिम लीडर के रास्ते अलग हो गए.

आईएमसी से चुने गए दो पार्षद

अब अगर हम मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान की पार्टी IMC की बात करें तो निकाय चुनाव में सीधे नहीं उतरी, हां कुछ उम्मीदवारों को समर्थन किया था, जिनमें वार्ड 80 रबड़ी टोला से सय्यद रेहान अली और वार्ड 62 चक महमूद से अनीस मियां जीत गए. महापौर की सीट पर उनकी तरफ़ से ख़ामोशी इख़्तेयार की गई. फरीदपुर नगर पालिका परिषद में पुराने कार्यकर्ता इस्तेख़ार को लड़ाया लेकिन वो जीत नहीं पाए. उलटा यहां अतीक अहमद, अशरफ़ और आज़म ख़ान से जुड़ी तक़रीर करने पर उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा अलग दर्ज हो गया. बहरहाल अब AIMIM को बरेली में जो सियासी ज़मीन मिली है, उस पर आगे वो कितनी मज़बूत इमारत खड़ी कर सकेगी यह आने वाले चुनाव तय करेंगे.