संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत सरकार से बातचीत के जरिए नए कृषि कानूनों पर किसानों से मतभेदों को हल करने का आग्रह किया है, कहा कि शांतिपूर्ण विरोध और इंटरनेट तक पहुंच “किसी भी मजबूत लोकतंत्र की पहचान है”।
दसियों हज़ार किसान कह रहे हैं कि नए कानून न सिर्फ उन्हें मुफलिसी में धकेल देंगे, बल्कि कारपोरेट कंपनियों की दया जीने को मजबूर होंगे। नवंबर के अंत में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बड़ी चुनौती दी है, जिन्होंने भारतीय खेती को आधुनिक बनाने के लिए नए कानूनों को लागू किया है।
26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस पर बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कुछ जगह हिंसक हो गया, जब ट्रैक्टरों पर सवार हजारों किसानों के एक हिस्से का रूट को लेकर पुलिस से तनाव हो गया। ऐतिहासिक लाल किले पर कुछ विवादास्पद लोगों ने धार्मिक ध्वज भी फहरा दिया।
इस घटनाक्रम में दर्जनाें किसान और पुलिसकर्मी घायल हो गए और एक किसान की मौत हो गई। पुलिस की ओर से अधिकृत तौर पर घायलों की संख्या नहीं बताई गई है।
किसान नेताओं ने हिंसा की निंदा की, लेकिन कानूनों का विरोध जारी रखने का ऐलान किया। किसानों ने लालकिले पर ध्वज फहराने वाले गुट को सरकार समर्थक घोषित कर उनकी गिरफ्तारी की मांग की है।
विरोध समाप्त करने की कोशिशें नाकाम रहने पर पुलिस अधिकारियों ने नई दिल्ली की सीमा पर मौजूद प्रदर्शन स्थलों की कड़ी घेराबंदी कर दी है। किसानों को राजधानी में प्रवेश करने से रोकने के लिए लोहे के स्पाइक्स और स्टील बैरिकेड्स लगा दिए गए हैं। सरकार ने विरोध स्थलों पर मोबाइल इंटरनेट भी बंद कर दिया है।
भारतीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अमेरिकी मीडिया विभाग के प्रवक्ता ने बुधवार को कहा , “हम मानते हैं कि इंटरनेट से सूचनाओं की पहुंच को रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक हक है और संपन्न लोकतंत्र की एक बानगी है।”
प्रवक्ता ने कहा, “सामान्य तौर पर, संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के बाजारों के लिए किए जा रहे सुधार और निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करने वाले कदमों का स्वागत करता है।”
“हम मानते हैं कि शांतिपूर्ण विरोध किसी भी संपन्न लोकतंत्र की पहचान है और ध्यान दें कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी यही कहा है।”
हाल ही में पॉप सुपरस्टार रेहन्ना के एक ट्वीट ने भारतीय किसान विरोध पर एक वैश्विक सुर्खियां बटोरीं, जिससे भारत सरकार नाराज हो गई और उसे एक दुर्लभ बयान जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
“हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं ?!” रिहाना ने अपने 101 मिलियन से अधिक ट्विटर फॉलोअर्स को ट्वीट किया। उन्होंने विरोध स्थलों पर इंटरनेट बंदी का जिक्र किया।
किशोरी जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने भी उनके समर्थन में ट्वीट किया, जिससे सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा हो गया।
प्रतिक्रिया में भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों, मशहूर हस्तियों और यहां तक कि विदेश मंत्रालय ने लोगों से एक साथ आने और देश को तोड़ने की कोशिश करने वाले बाहरी लोगों को निंदा करने का आग्रह किया।
विदेश मंत्रालय ने पॉप सुपर स्टार और अन्य लोगों का नाम लिए बगैर कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों पर अपने एजेंडे को लागू करने की कोशिश करना दुर्भाग्यपूर्ण है।
मंत्रालय के बयान में “विदेशी व्यक्तियों” और “सनसनीखेज” हस्तियों कहकर आरोप लगाया गया।
बॉलीवुड के कलाकारों और क्रिकेट खिलाड़ियों, जो अब तक खामोश थे, उन्होंने एक सुर में सरकार के पक्ष में ट्वीटर अभियान छेड़ दिया।
उन्होंने हैशटैग #IndiaAgainstPropaganda और #IndiaT Total का उपयोग किया, जो कृषि कानूनों पर सरकार के रुख को प्रतिध्वनित करता है। उन्होंने भारत से बाहर के लोगों को देश के आंतरिक मामलों में दखल न देने की हिदायत दी।
इस मामले में मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेता शशि थरूर ने कहाए सरकार के “अलोकतांत्रिक व्यवहार” से भारत की वैश्विक छवि का जो नुकसान हुआ है, वह सेलिब्रिटीज के ट्वीट करने से बहाल नहीं किया जा सकता।
थरूर ने एक ट्वीट में कहा, “पश्चिमी हस्तियों पर भारतीय हस्तियाें की प्रतिक्रिया शर्मनाक हैं।”