UP Chunav : रिज़ल्ट से पहले चर्चा तो बस यही-अखिलेश आ रहे हैं या नहीं आ रहे

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Akhilesh Yadav CM Yogi
सपा प्रमुख अखिलेश यादव को सुनने का क्रेज. पेड़ की टहनियों पर लटके समर्थक.

वसीम अख़्तर


 

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उम्मीदों पर खरी उतरती है या फिर जनता विपक्ष को मौक़ा देने जा रही है. फैसले का वक़्त नज़दीक आ चुका है. बस चंद दिन बचे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने यूपी में अपना मज़बूत गढ़ बचाने के लिए तमाम ताक़त लगा रखी है. कोई भी जतन छोड़ा नहीं है. इसके बावजूद चुनावी हवा में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव आ रहे हैं, इस नारे की दस्तक सुनाई देने लगी है. इसका अहसास इंडिया टुडे और द वीक जैसे बड़ी मैगज़ीन के कवर पेज पर अखिलेश को जगह दिए जाने से भी हो रहा है. ईवीएम से किसकी क़िस्मत पर सत्ता की मुहर लगने का राज़ फ़ाश होगा, यह जानने की बेचैनी सभी को है. (Akhilesh Yadav CM Yogi)

छह चरण का मतदान गुरुवार को हो गया. यूपी में सातवां यानी अंतिम चरण सात मार्च को होगा. आयोग ने नतीजे के लिए 10 मार्च की तारीख़ तय की है. इस दिन किसकी क़िस्मत में सिंहासन लिखा है, 10 मार्च से पहले ही इस गुत्थी को सुलझाने के लिए मीडिया से लेकर ख़ास-ओ-आम भी लगे हैं. कुछ खुलकर बोल रहे हैं कि किसके हक़ में मतदान किया है लेकिन मतदाताओं का बड़ा वर्ग ख़ामोश है.

उसी तरह जैसे खांटी पत्रकार छपने या चलने से पहले अपनी ख़बर को लेकर मुंह बंद रखते हैं. इस सोच के तहत कि पहले बताने से मज़ा किरकिरा हो जाएगा. वैसे चुनावी हवा की बात करें तो समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव का चर्चा सभी की ज़ुबां पर है. चाहे समाजवादी हों या फिर भाजपाई. दो ही बातें कही जा रही हैं-आ रहे हैं अखिलेश या फिर नहीं आ रहे हैं. (Akhilesh Yadav CM Yogi)


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चुनाव का यह टर्निंग प्वाइंट हो सकता है. पहली बार मुख्यमंत्री बनने और अपनी अगुवाई में दूसरा चुनाव हारने के बाद से अब अखिलेश यादव को लेकर प्रमुख मीडिया की रिपोर्टिंग में भी बदलाव दिख रहा है. इंडिया टुडे और द वीक जैसी बड़ी मैगज़ीन ने अपने कवर पेज पर अखिलेश को रखा है. द चैलेंजर और टर्निंग द वील टाइटल दिया है.

मीडिया की सोच में अखिलेश यादव को लेकर तब्दीली की एक वजह यह भी हो सकती है कि जिस तरह सपा सुप्रीमो ने गोदी मीडिया कहे जाने वाले चैनलों को उन्हीं के कार्यक्रम में जाकर आईना दिखाने का साहस सभ्यता के दायरे में रहकर किया, वो वाक़ई काबिले तारीफ़ है. इसे हम क्या ख़ूब धोया भी कह सकते हैं.

एक चैनल के कार्यक्रम में इंटरव्यू कर रहे एंकरों से एक सवाल के जवाब में उल्टे सवाल करते हैं- बताओ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने क्या कहा था-तब दोनों एंकर बग़ले झांकने लगे. जवाब नहीं दिया तो अखिलेश यादव अड़ गए, कह दिया कि जब तक जवाब नहीं मिलता, बात आगे नहीं बढ़ेगी. ऐसे ही कुंडा के राजा भइया को लेकर सवाल हुआ तो एंकर से कहने लगे-आपमें हिम्मत हो तो माफिया कहो. एक दूसरे चैनल के कार्यक्रम में बोले-कहीं घटना हो जाती थी तो आरोपी के साथ हमारा फोटा दिखाते थे, अब बड़ी घटनाएं हो रही हैं, एक आइपीएस फरार है. हमारी जाति को लेकर सवाल खड़े करते थे, अब ऐसा क्यों नहीं करते.

बहरहाल यह तो चैनलों पर उनके तेवरों की बात हुई लेकिन इस चुनाव में अकेले दम पर जिस तरह उन्होंने ख़ुद को साबित किया है, उसमें किसी को कोई शक या शुबह नहीं है. वह भाजपा के जाल में नहीं फंसे हैं. उसके नेताओं के पसंदीदा मुद्दों का शिकार नहीं बने. ख़ुद फंसने के बजाय भाजपा को फंसाने की कोशिश करते दिखाई दिए. चुनाव से पहले टिकटों को लेकर उनकी सोशल इंजीनियरिंग के सभी क़ायल हुए हैं. (Akhilesh Yadav CM Yogi)

ज़्यादातर सीटों पर जिताऊ उम्मीदवार देने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी. सपा का मैनिफेस्टो भी इस तरह का तैयार किया कि सभी के मतलब की चीज़ों को उसमें समा लिया. मतदाताओं के बीच सपा के मैनिफेस्टो का चर्चा भी दिखा. चुनाव को ध्रुवीकरण से इतर बेरोज़गारी की समस्या, महिला सुरक्षा, विकास की तरफ़ ले जाने का प्रयास करते रहे. इसमें काफी हद तक सफल भी हुए.

इन तमाम कारणों के चलते बड़े मीडिया ग्रुप के फोकस में अखिलेश यादव दिख रहे हैं. वो आ रहे हैं या नहीं आ रहे हैं, इस बहस के ख़त्म होने में अब एक सप्ताह बचा है. सपा सुप्रीमो एवं पूर्व मुख्यमंत्री के लिए मजरूह सुल्तानपुरी का यह शेर ही सटीक होगा-मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया. (Akhilesh Yadav CM Yogi)


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