द लीडर। देशभर में नवरात्रि का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इन दिनों नवदुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। इसी महीने रामलीला का भी आयोजन किया जा रहा है। बता दें कि, इन दिनों देश में कई संवेदनशील मुद्दों को लेकर विषाक्त वातावरण बना हुआ है। स्वार्थी तत्वों द्वारा सांप्रदायिक वातावरण खराब करने के प्रयासों के बावजूद देश में लोगों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार बार-बार गवाही दे रहा है कि, हमारे भाईचारे के बंधन अटूट हैं। ऐसे दौर में मऊ में बोझी क्षेत्र के रेयांव गांव की रामलीला हिंदू-मुस्लिम एकता की न सिर्फ मिसाल है बल्कि आपसी भाइचारे का संदेश भी दे रही है।
रेयांव गांव की रामलीला छोड़ती है अमिट छाप
यही नहीं जरूरत पड़ी तो यहां के मुस्लिम बंधु सुकूर, अरबाज, अशफाक, फरीदुन रामलीला में बकायदा किरदार भी निभाया। यही वजह है कि, यहां के हिंदू-मुसलमानों की इस अनूठी पहल से देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सबक लेनी चाहिए। ताकि एक बार फिर हमारा देश भाईचारगी बनाने में कामयाब हो सके। बता दें कि, रेयांव की रामलीला इतिहास बहुत पुराना नहीं है, फिर भी 50 वर्ष से अधिक समय से यहां की रामलीला अपनी अमिट छाप छोड़ती है। यहां के दोनों समाज के लिए रामलीला प्रेरणादायी है।
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मुस्लिम बंधु रामलीला में मंचन में भी सहभाग करता है
ऐतिहासिक रामलीला 11 अक्टूबर को शुरू होगी और दशहरे का मेला 17 अक्टूबर को लगेगा। हिन्दू -मुस्लिम एक साथ मिलकर रामलीला का आयोजन करते हैं। हिन्दू भाई भी उसी तरह उनके मोहर्रम में साथ रहते और सहयोग करते हैं। किसी धार्मिक आयोजन में बराबर की भागीदारी रहती है। जो चंदा आदि लगता है, अपनी क्षमता के अनुसार बढ़-चढ़ कर सभी सहयोग करते हैं। कई बार तो दशहरा व मुहर्रम एक साथ पड़ा और एक साथ मना भी। सभी एक दूसरे में शामिल हुए। इतना ही नहीं मुस्लिम बंधु रामलीला में मंचन में भी सहभाग करता है।
रेयांव की रामलीला हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल है
पूर्व प्रधान प्रतिनिधि दुर्गा प्रसाद मिश्र ने बताया कि, यहां की रामलीला हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। हम सभी त्योहारों पर आपस में सद्भाव रखते हुए एक-दूसरे के सुख-दुःख में सरीक होते हैं। पचास पूर्व में गांव के पूर्व प्रधान भृगुनाथ के समय रामलीला आरंभ हुई थी। पूर्व प्रधान देवनाथ राय के समय से अनवरत यह रामलीला आपसी सौहार्द भाईचारे के साथ मनाई जाती है। दशहरा की खुशियां भी दोनों वर्ग मिलकर बांटते हैं।
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मुस्लिम बंधु सभी त्योहारों को मिलकर मनाते हैं
मुस्लिम बंधु रामलीला ही नहीं हमेशा बल्कि सभी त्योहारों को मिलकर मनाते हैं। इसी तरह ईद, मोहर्रम में हिन्दू भाई भी उनके खुशी में शरीक होते हैं। यहां किसी भी प्रकार का दोनों समुदाय में राग-द्वेष नहीं मिलता है। बल्कि हर त्योहार में लोग शरीक होकर भाईचारगी का माहौल पैदा करते हैं। इससे सुखद अनुभूति होती है।
अल्लाह और भगवान दोनों एक हैं
रामलीला और रामायण से हम सीख लेनी चाहिए। यह हमें आदर्श व चरित्र निर्माण का पाठ पढ़ाती है। इस गांव में पचास से अधिक मुस्लिम परिवार है। हम सभी हिन्दू-मुस्लिम एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं और उसका आनन्द लेने के साथ सहभाग व सहयोग भी करते हैं। अल्लाह व भगवान दोनों एक है। मात्र समझने की जरूरत है।
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सांस्कृतिक कार्यक्रमों में से एक है रामलीला
रामलीला का कार्यक्रम भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रमों में से एक है। यह एक प्रकार का नाटक मंचन होता है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख आराध्यों में से एक प्रभु श्रीराम के जीवन पर आधारित होता है। इसका आरंभ दशहरे से कुछ दिन पहले होता है और इसका अंत दशहरे के दिन रावण दहन के साथ होता है।
रामलीला क्यों मनाई जाती है?
महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण सबसे प्राचीन हिंदू ग्रंथों में से एक है। संस्कृत में लिखा गया यह ग्रंथ भगवान विष्णु के सातवें अवतार प्रभु श्री राम के ऊपर आधारित है। जिसमें उनके जीवन संघर्षों, मूल्यों, मानव कल्याण के लिए किये गये कार्यों का वर्णन किया गया है। रामायण के ही आधार पर रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के जीवन का वर्णन देखने को मिलता है। रामलीला मंचन के दौरान भगवान श्री राम के जीवन के विभिन्न चरणों और घटनाओं का मंचन किया जाता है। एक बड़े और प्रतिष्ठित राज्य का राजकुमार होने के बावजूद उन्होंने अपने पिता के वचन का पालन करते हुए, अपने जीवन के कई वर्ष जंगलों में बिताये।
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उन्होंने सदैव धर्म के मार्ग पर चलते हुए लोगो को दया, मानवता और सच्चाई का संदेश दिया। अपने राक्षस शत्रुओं का संहार करने का पश्चात उन्होंने उनका विधिवत दाह संस्कार करवाया क्योंकि उनका मानना था कि हमारा कोई भी शत्रु जीवित रहने तक ही हमारा शत्रु होता है। मृत्यु के पश्चात हमारा उससे कोई बैर नही होता, स्वयं अपने परम शत्रु रावण का वध करने के बाद उन्होंने एक वर्ष तक उसके हत्या के लिए प्रायश्चित किया था। इतने बड़े राज्य के राजकुमार और भावी राजा होने के बावजूद भी उन्होंने एक ही विवाह किया, वास्तव में उनका जीवन मानवता के लिए एक प्रेरणा है। यहीं कारण कि उनके जीवन के इन्हीं महान कार्यों का मंचन करने के लिए देश भर के विभिन्न स्थानों पर रामलीला के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
रामलीला कैसे मनाई जाती है – रिवाज एवं परंपरा
वैसे तो रामलीला की कहानी महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित महाकाव्य रामायण पर आधारित होती है लेकिन आज के समय में जिस रामलीला का मंचन किया जाता है उसकी पटकथा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस पर आधारित होता है। हालांकि भारत और दूसरे अन्य देशों में रामलीला के मंचन की विधा अलग-अलग होती है परंतु इनका कथा प्रभु श्रीराम के जीवन पर ही आधारित होती है। देश के कई स्थानों पर नवरात्र के पहले दिन से रामलीला का मंचन शुरु हो जाता है और दशहरे के दिन रावण दहन के साथ इसका अंत होता है। हालांकि वाराणसी के रामनगर में मनाये जाने वाली रामलीला 31 दिनों तक चलती है। इसी तरह ग्वालियर और प्रयागराज जैसे शहरों में मूक रामलीला का भी मंचन किया जाता है। जिसमें पात्रों द्वारा कुछ बोला नही जाता है बल्कि सिर्फ अपने हाव-भाव द्वारा पूरे रामलीला कार्यक्रम का मंचन किया जाता है। पूरे भारत में रामलीला का कार्यक्रम देखने के लिए भारी संख्या में लोग इकठ्ठा होते है। देश के सभी रामलीलाओं में रामायण के विभिन्न प्रात्र देखने को मिलते हैं। रामलीला में इन पात्रों का मंचन कर रहे लोगो द्वारा अपने पात्र के अनुरुप श्रृंगार किया जाता है।
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बता दें कि, मऊ के रियाव गांव में जो रामलीला हो रही है। वो प्रभु श्रीराम के जीवन के बारे में तो बता ही रही है। साथ ही देश में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल भी दे रही है। भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं। जो यहां मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहते हैं।