पूरे लैटिन अमेरिका में आज वामपंथ फिर से उठ कर खड़ा हो रहा है। सबसे अछूता रहा कोलंबिया भी धधक रहा है। पेरू के राष्ट्रपति चुनाव में पेड्रो कास्तियो की जीत पिछले 10 साल में में दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप में वामपंथ की सबसे बड़ी कामयाबी है।
दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में आने वाले 14 देशों में इस आग की प्रेरणा हैं चे ग्वेरा। युवा मन पर दुनियाभर में छाए अर्नेस्टो चेग्वेरा का चेहरा क्रांति और बदलाव का निशान है, बिल्कुल उसी तरह जैसे भारतीय उप महाद्वीप में भगत सिंह।
लैटिन अमेरिकी देश अर्जेंटीना में 14 जून 1928 को जन्मे अर्नेस्टो चे ग्वेरा वैचारिक तौर मार्क्सवादी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने समाजवाद का रास्ता कुछ अलग ढंग से तय किया। एक बेहतरीन चिकित्सक, गुरिल्ला नेता, सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ होने की वजह से उनकी छाप लाखों लोगों के जेहन पर है।
वही चे, जिन्होंने दक्षिणी अमरीका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया। उनका चेहरा आज भी पूरी दुनिया में विरोध और संघर्ष का प्रतीक बना हुआ है। क्यूबा की सफल क्रांति के शीर्ष कमांडरों में वे एक थे, जिसमें अमेरिकी कठपुतली तानाशाह बटिस्टा के शासन को 1959 में उखाड़ फेंका गया।
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पूरे जीवन वे आस्थमा से जूझते रहे, लेकिन सिगार और पूरे लैटिन अमेरिका में समाजवादी समाज बनाने का ख्वाब उनसे अलग नहीं हुआ। सरकारी ओहदों से लगाव भी उनको नहीं रहा, जबकि वे क्यूबा की क्रांतिकारी सरकार में दूसरे नंबर के सबसे बड़े नेता रहे।
चिकित्सीय शिक्षा के दौरान चे पूरे लैटिन अमेरिका में घूमे। पूरे महाद्वीप में पसरी गरीबी ने उन्हें हिला कर रख दिया। तब उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारण पूंजीवाद, नवउपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद है, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था – विश्व क्रांति।
इसी विचार के चलते उन्होंने गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। उनकी क्रांतिकारी सोच और मजबूत हो गई जब 1954 में गुज़मान को अमरीका ने हटवा दिया। इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में इन्हें राऊल और फिदेल कास्त्रो मिले और वे क्यूबा की 26 जुलाई क्रांति में शामिल हो गए। इसके बाद दो साल में वहां बटिस्टा का शासन उखाड़ फेंका गया।
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क्यूबा की क्रांति के बाद चे ने नई सरकार में पूरी दुनिया में घूमकर क्यूबा के समाजवाद के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाया। भारत भी आए और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत कई नेताओं से मुलाकात हुई। आम लोगों ने उनको गले लगाकर स्वागत किया। चे के द्वारा प्रशिक्षित सैनिकों ने पिग्स की खाड़ी आक्रमण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। सोवियत संघ से नाभिकीय प्रक्षेपास्त्र लेकर आए, जिसकी वजह से क्यूबा अमेरिकी जाल में फंसने से बच गया।
चे ने बहुत कुछ लिखा भी है, सबसे प्रसिद्ध कृतियां – गुरिल्ला युद्ध के नियम और दक्षिणी अमरीका में यात्राओं पर आधारित मोटरसाइकल डायरियां हैं।
एक जुनूनी क्रन्तिकारी, अदम्य साहस, निरंतर संघर्षशीलता, अटूट इरादों व पूंजीवाद विरोधी मार्क्सवादी लेनिनवादी विचारधारा के कारण ही चे ग्वेरा आज पूरी दुनिया में युवाओं के महानायक हैं।
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चे ग्वेरा का ही जुनून था जिसमें 1959 में क्यूबा में क्रांति के बाद भी उन्हें चैन से बैठने नहीं दिया। वे कांगो गए क्रांति के लिए और फिर इसी इरादे से बोलिविया गए, जहां 9 अक्टूबर 1967 को सीआईए के जासूसों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।
इतिहास का यह विद्रोही नेता कवि भी था। बोलिविया अभियान की असफलता को लेकर लिखी कविता उनकी आखरी वसीयत की तरह है, “हवा और ज्वार” शीर्षक से लिखी गई यह कविता उनकी आदर्शवादी सोच की तरफ इशारा करती है। इस कविता में चे ने अपना सब कुछ क्रांति के नाम समर्पित करने को कहा था, वैसा उन्होंने किया भी।
टाइम पत्रिका ने उन्हें 20वीं शताब्दी के 100 सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सूची में शामिल किया। चे की तस्वीर गेरिलेरो एरोइको को विश्व की सबसे प्रसिद्ध तस्वीर माना गया है।