तुम मुझे यूं भुला न पाओगे–मुहम्मद रफ़ी

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mohammad rafi
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The leader hindi:

हिंदी सिनेमा को एवरग्रीन गाने देने वाले mohammad rafi की आज पुण्यतिथि है। इसी दिन 42 साल पहले वे दुनिया से रुखसत हो गए थे, लेकिन आज भी उनके मेलोडियस गाने बार-बार सुनने को दिल करता है। जब कभी ख़ुशी का मौक़ा हो, दिल उदास हो या फिर तन्हाई का आलम हो या महफ़िल का हिस्सा हों, रफी साहब के गीतों के बग़ैर जिंदगी के यह रंग दिलकश नहीं होते.

गाने का शौक पहली बार कब आया
बात है 24 दिसंबर 1924 की जब अमृतसर के कोटला सुल्तान सिंह गांव में मुहम्मद रफी का जन्म हुआ । छह भाई-बहनों में रफी दूसरे बड़े बेटे थे। घरवालों ने प्यार से इनका नाम रखा था , फिको, एक दिन गली में घूमते फिरते रफी ने एक फकीर को गाना गाते देखा और उनसे इतने प्रभावित हुए कि खुद भी उसकी नकल करके गाना गाने लगे। इसके बाद जब 9 साल के हुए तो पूरा परिवार अमृतसर से लाहौर आ गया। उनकी पढ़ाई में दिलचस्पी को नहीं देखते हुए पिता ने उन्हें बड़े भाई के साथ खानदानी दुकान में लगा दिया।

इस तरह मिला पहला मौक़ा
1933 की बात है जब संगीतकार पंडित जीवन लाल उनकी दुकान पर पहुंचे और उन्होंने रफी साहब को गुनगुनाते हुए सुना, फिर क्या था रफी का गुनगुनाना उन्हें बहुत पसंद आ गया और रफी को रेडियो चैनल के ऑडिशन में बुलाया गया, जिसे उन्होंने बहुत आसानी से पार कर लिया, पंडित जीवनलाल ने रफी को ट्रेनिंग दी और रेडियो पर उनके गाए गाने सुने जाने लगे।

जब पहली बार स्टेज पर परफॉर्म किया
1937 की बात है जब स्टेज पर बिजली न होने से उस वक़्त के पॉपुलर सिंगर कुंदनलाल सहगल ने स्टेज पर गाने से इनकार कर दिया। आयोजकों ने यहां 13 साल के रफी को मौका दिया. दर्शकों के बैठे केएल सहगल ने हुनर भांपते हुए कहा कि देखना ये लड़का एक दिन बड़ा सिंगर बनेगा. केएल सहगल की बात सालों बाद सच साबित हुई.

बैजू बावरा से हिट हुए
एक्टर और प्रोड्यूसर नजीर मोहम्मद ने रफी को 100 रुपए और टिकट भेजकर बॉम्बे बुलाया. रफी लाहौर से बॉम्बे पहुंच गए और यहां उन्होंने पहली बार हिंदी फिल्म “पहले आप के लिए हिंदुस्तान के हम हैं” गाना रिकॉर्ड किया. साल बीते और रफी के गाने देशभर में मशहूर होने लगे. बैजू बावरा फिल्म के गानों से रफी स्टार बन गए और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

पंजाब से मांझे से उड़ाते थे काली पतंग
रफ़ी का सबसे प्रिय शौक था पतंग उड़ाना. उनकी पतंगें काले रंग की हुआ करती थीं. हवा में उड़ती हुई काली पतंग इस बात का संकेत होती थी कि रफ़ी अपने घर की छत पर पतंग उड़ा रहे हैं. वो अपनी पतंग के लिए माँझा पंजाब से मंगवाते थे. पतंग उड़ाने की बात आती थी तो हमेशा मृदु भाषी रहने वाले रफ़ी प्रतिस्पर्धी हो जाते थे. उनको किसी से भी अपनी पतंग कटवाना कतई पसंद नहीं था.

चांदी का कंघा और थंडे दूध का गिलास
रफ़ी के जीवन का एक हंसमुख पहलू भी हुआ करता था जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता था. मोहम्मद रफ़ी के साथ कई शो करने वाली कृष्णा मुखर्जी बताती हैं, “रफ़ी स्टेज पर जाने से पहले अपना चाँदी का कंघा निकालते थे और अपने गंजे सिर पर फिराते हुए शरारती ढंग से मुस्कुराते थे. इसके बाद वो ठंडे दूध का एक गिलास पीते थे। कई बार वो बीच शो में अपना हारमोनियम छोड़ कर लेज़ली से ड्रम स्टिक छीन कर ड्रम बजाने लगते थे. डुएट गाने के दौरान जब मेरी बारी आती थी तो वो कोहनी मार कर मुझे गाने का इशारा करते थे. उनकी इन अदाओं पर दर्शक पागल हो उठते थे।

मेंहदी हसन, ग़ुलाम अली को थे सुनते
अपने खाली समय में मुहम्मद रफी मेहदी हसन और ग़ुलाम अली की गज़लें सुनते थे. उनके बेटे शाहिद रफ़ी के मुताबिक़ संडे को बच्चों के साथ कैरम और बैडमिंटन खेला करते थे. उनको बॉक्सिंग मैच देखने का भी बहुत शौक था. अब्बा खाने के शौकीन थे और अक्सर लोगों को खाने पर बुलाया करते थे. उन्हें अम्मी के हाथ का बनाया खाना बहुत पसंद था। अगर वो बीमार भी रहती थीं तो रफ़ी साहब के लिए कम से कम एक व्यंजन ज़रूर बनाती ही थीं. सुबह-सुबह ही अम्मी अब्बा की दूध में बादाम, लौंग और दालचीनी वाली चाय के चार या पाँच थर्मस फ़्लास्क भर देती थीं। ये थर्मस उनके साथ स्टूडियो जाते थे. वो सिर्फ़ घर पर बनी चाय ही पीते थे। उन्हें दूध पीना बहुत पसंद था. जब दूधवाला दूध लाता था तो वे दो बोतल दूध बाहर ही पी जाते थे. दूधवाला तब हमारी अम्मी से शिकायत करता था कि उसका दूध कम पड़ गया है।

जब महेंद्र से कपूर दिलवाया अपना ऑटोग्राफ
बहुत से लोगों को ये जान कर हैरानी होगी कि मोहम्मद रफ़ी को ऑटोग्राफ़ साइन करना नहीं आता था. महेंद्र कपूर के बेटे रुहान कपूर याद करते हैं, “एक बार रफ़ी साहब और मेरे पिता ऑल इंडिया रेडियो से लौट रहे थे. कुछ लोगों ने रफ़ी साहब को पहचान लिया और उनसे ऑटोग्राफ़ माँगने लगे. उन्होंने मेरे पिता महेंद्र कपूर से कहा मेरे दस्तख़त तू कर दे.

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