खुर्शीद अहमद
जिंदगी संघर्ष का नाम है. बगैर मेहनत के कुछ हासिल नहीं होता. कुरान के शब्दों में وان ليس للإنسان الا ما سعى बेशक इंसान के लिए सिर्फ वही है, जिसकी वह कोशिश करता है. दुनिया जन्नत नहीं है. यहां नबियों-रसूलों को मुसीबतें झेलनी पड़ी है. अल्लाह ने खबरदार कर दिया है कि, तुम्हारा खुद को मोमिन कहना भर काफी नहीं है. तुम सिर्फ ये कहने से छूट नहीं जाओगे बल्कि, तुम्हें आजमाइश के इम्तिहान से गुजरना होगा. (Indian Muslim Inferiority Exam)
इसकी सबसे बड़ी मिसाल अल्लाह के हबीब सल्ललाहो अलैहे वसल्लम खुद हैं, जिन्हें खुद भी भूखे रहना पड़ा है. तीन साल तक समाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा है. लोगों के ताने सुने. यहां तक कि तायफ शहर में आपकी मॉब लिंचिंग तक की कोशिश हुई है.
अगर दुनिया में हमें मुसीबतों का सामना करना ही है तो डर, खौफ, एहसास-ए-कमतरी और हीनभावना कैसी ? एक ही दिल में अल्लाह का ईमान भी हो और हीन-भावना. ये संभव ही नहीं हो सकता.
ऐसा नहीं है कि हम बहुत गए गुज़रे लोग हैं. जो कुछ भी नहीं कर सकते. अपने हासिल पर गौर करें. पिछले 250 सालों में भारतीय मुसलमानों ने राजनीति में कमज़ोरी के बाद भी बहुत कुछ हासिल किया है. जो किसी भी विकसित कौम का ख्वाब हो सकता है.
इसे भी पढ़ें-त्रिपुरा में हिंदुत्वादी संगठनों का तांडव, मुसलमानों के खिलाफ हिंसा-मस्जिदों में तोड़फोड़
भाषा को ही देख लीजिए. कहा जाता है कि किसी भी कौम को खत्म करना हो तो उसकी जबान को मिटा दो. हमारे साथ भी यही हुआ. हमारी लिखने-पढ़ने की भाषा बदली गई. फारसी को खत्म किया गया. तो हमने उर्दू में मेहनत की और 100 वर्षों से भी कम समय में उर्दू को ऐसी भाषा बना दिया, जो अरबी और फ़ारसी का मुकाबला करने लगी. फिर उर्दू भी छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया. और अब हमने हिंदी में भी मेहनत करके बहुत कुछ हासिल कर लिया.
क्या आप बता सकते हैं कि विश्व की किसी दूसरी कौम से उसकी भाषा छीन ली गई हो. फिर भी उसने ऐसा कुछ हासिल किया हो? फिर हम नाकारा कैसे हुए. हमें हीनभावना से ग्रस्त क्यों होना चाहिए ? (Indian Muslim Inferiority Exam)
आप सियासत में छाए हुए हैं. आपकी हुकूमत में सूरज नहीं डूबता. इस पर आप कुछ बड़ा काम कर जाते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं. हम भारतीय मुसलमानों ने सब कुछ छीने जाने और विपरीत हालात का सामना करते हुए भी बहुत बड़े-बड़े काम किए हैं.
तीन-तीन महाद्वीपों पर हुकूमत करने वाली उस्मानी ख़िलाफत को ईसाई मिशनरियों का सामना करने के लिए मौलाना रहमतुल्लाह केरानवी को ढूंढना पड़ता था. सभ्यताओं की मां कहे जाने वाले मिस्र के बुद्धिजीवियों व उलमा को अल्लामा शिबली नोमानी से सिफारिश करनी पड़ी. इस बात के लिए कि वह हमारी ओर से जुर्जी ज़ैदान की किताब का जवाब लिख दें. (Indian Muslim Inferiority Exam)
अरब युनिवर्सिटीज में खुद को इंडियन बताने के बाद यह बताना पड़ता है कि मुबारकपुर कितना बड़ा शहर है. क्या कारण हैं कि वहां इतने बड़े-बड़े लोग पैदा होते हैं?
और सिर्फ दीनी उलूम तक ही नहीं, जिंदगी के दूसरे मैदान में भी अनगिनत मिसाले हैं. मानव संसाधन से जुड़े एक विश्वस्तरीय इजिप्शियन स्कालर का प्रोग्राम मैंने सुना.
इसे भी पढ़ें- खुलफा-ए-राशिदीन मस्जिद में आतंकियों का पैसा नहीं लगा, NIA की विशेष अदालत से पांचों आरोपी डिस्चार्ज
वो कह रहे थे कि हमने भारतीय मुस्लिम मजदूरों में एक अनोखा टैलेंट देखा है कि, उन्हें किसी नए काम को सीखने में तीन महीने से ज्यादा का वक्त नहीं लगता. उनसे तेज़ दूसरी कम्युनिटी नया काम नहीं सीख पाती.
आज़ादी के बाद भारतीय मुसलमान वैज्ञानिकों पर मैं एक श्रृंखला लिख चुका हूं. जब हम हर मैदान में हम अच्छा कर रहे हैं. तो एहसास-ए-कमतरी क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि हमारे अंदर कोई ऐसी राजनैतिक हस्ती मौजूद नहीं है जो सनी देओल की तरह दुश्मन के नल उखाड़ ले. (Indian Muslim Inferiority Exam)