यमन में पिछले सात साल से चल रहा युद्ध अचानक से दुनियाभर के अखबारों की सुर्खियां बन गया। बीते दिनों यमन के हूती विद्रोहियों ने संयुक्त अरब अमीरात पर ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया। एक हमले में तेल डिपो में विस्फोट हुआ और तीन लोग मारे गये। मरने वालों में दो भारतीय और एक पाकिस्तानी नागरिक थे। इसके बाद जवाबी कार्रवाई में सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन ने विद्रोहियों के नियंत्रण वाले सना शहर पर हमला किया जिसमें 80 कैदियों समेत दर्जनों लोग मारे गए। भीषण मानवीय संकट से जूझ रहे यमन पर कब्जाकारी ताकतों की नृशंसता का कोई अंत नहीं है। (Responsible Yemen A Hell)
यमन दुनिया के सबसे गरीब देशों में से है। अरब स्प्रिंग के असर में यहां के शासक अब्दुल्ला अल सालेह को गद्दी छोड़नी पड़ी थी। सालेह के गद्दी छोड़ने के बाद उसके उपराष्ट्रपति हादी के हाथ में सत्ता आई। लेकिन हादी के खिलाफ असंतोष जारी रहा और इस असंतोष की लहर पर सवार होकर हूती विद्रोहियों ने 2014 में राजधानी सना पर कब्जा कर लिया।
हादी देश छोड़कर भाग गया। लेकिन हूती विद्रोहियों के हाथ में यमन को जाने देने के लिए सऊदी अरब तैयार नहीं था। अमेरिकी छत्रछाया में सऊदी अरब ने संयुक्त अरब अमीरात समेत अन्य पड़ोसी अरब देशों और उत्तरी अफ्रीका के देशों का गठबंधन बनाया और हादी को ही यमन का आधिकारिक शासक मानते हुए हूती विद्रोहियों के खिलाफ 2015 से युद्ध छिड़ गया।
तब से इस युद्ध में हजारों लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन, दक्षिणी यमन के महत्वपूर्ण भू-भाग जिसमें राजधानी सना और हुदैदा बंदरगाह शामिल है, से हूती विद्रोहियों का नियंत्रण कमजोर होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। हूती विद्रोही उत्तरी यमन पर भी कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। वे मरीब शहर पर कब्जा करने के काफी करीब पहुंच भी चुके थे।
अगर विद्रोहियों का इस शहर पर कब्जा हो जाता तो उत्तरी यमन में भी उनका पलड़ा भारी हो जाता और शांति वार्ताओं में उनको अपने लिए बेहतर शर्तें हासिल होतीं। लेकिन, संयुक्त अरब अमीरात समर्थित जायंट्स ब्रिगेड ने बढ़त बनाई और मरीब शहर में हूती विद्रोहियों के आपूर्ति रास्ते को बाधित कर दिया। इसके बाद हूती विद्रोहियों के लिए मरीब शहर पर कब्जा करना संभव नहीं रहा। (Responsible Yemen A Hell)
यह लड़ाई यमन की जमीन पर हो रही है। आक्रमणकारी सऊदी नेतृत्व वाला गठबंधन आधुनिक तकनीक से लैस होकर अपने कम से कम नुकसान की कीमत पर हवाई हमलों द्वारा न सिर्फ विद्रोहियों को नुकसान पहुंचाता है बल्कि विद्रोहियों के नियंत्रण वाले इलाके में आम नागरिकों और जनोपयोगी सेवाओं को भी नुकसान पहुंचाता है।
अपनी ताकत के मद में चूर सऊदी अरब को उम्मीद थी कि वह बहुत जल्द विद्रोहियों को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देगा। लेकिन ऐसा होना तो दूर, अब विद्रोहियों ने ड्रोन और मिसाईल के जरिए युद्ध के खतरे को उनके घर के भीतर तक पहुंचा दिया।
यमन में हो रहे जान-माल के नुकसान की तुलना में सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात को होने वाला नुकसान काफी कम ही होगा, तब भी पर्यटन और निवेश को प्रभावित करेगा। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह अमेरिका को अफगानिस्तान में मुंह की खानी पड़ी वैसे ही अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को यमन में मुंह की खानी पड़े। (Responsible Yemen A Hell)
यमन के संकट को दुनिया का सबसे अधिक भीषण मानवीय संकट कहा जा रहा है। यमन की 3 करोड़ आबादी में से दो तिहाई मदद पर निर्भर है। 1.5 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी का सामना कर रहे हैं। मुद्रास्फीति बढ़ रही है, खासतौर पर दक्षिणी यमन में। यहां दिसंबर 2021 में 1 अमरीकी डॉलर 1670 यमनी रियाल के बराबर था, जो कि वर्ष के शुरू के तुलना में 140 प्रतिशत अधिक था।
यमन में 40 लाख लोग विस्थापित हुए हैं। इनमें 73 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं। 16 लाख विस्थापित लोग 2200 शिविरों में रह रहे हैं। यहां की 47 प्रतिशत आबादी 2 डॉलर प्रतिदिन से कम पर गुजारा करती है। दक्षिण में अपर्याप्त भोजन उपभोग (यानी इतने प्रतिशत आबादी अपर्याप्त भोजन पर जीवित है) 47 प्रतिशत है जबकि उत्तर में जहां रियाल अपेक्षाकृत स्थिर है, यह 37 प्रतिशत है। 2011 की तुलना में यमन के सकल घरेलू उत्पाद में 40 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यमन को मिलने वाली मानवतावादी सहायता नौकरशाही बाधाओं की वजह से महीनों अटकी रहती है।
50 लाख महिलाओं और मां बनने की उम्र वाली लड़कियों तथा 17 लाख गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं की पहुंच स्त्री एवं प्रसूति स्वास्थ्य सेवाओं तक या तो नहीं है या बहुत सीमित है। हर दो घंटे में एक यमनी महिला की शिशु जन्म के दौरान ऐसे कारणों से मौत होती है, जिनको कि पूरी तरह रोका जा सकता है।
2015 के बाद से यमन अपने बच्चों के लिए जिंदा नर्क बन चुका है। यमन की आधे से भी कम स्वास्थ्य सेवायें काम कर रही हैं और वहां भी बुनियादी उपकरणों का अभाव है। कई स्वास्थ्यकर्मियों को कई साल से नियमित वेतन नहीं मिल रहा है। कम से कम 10 हजार बच्चे युद्ध की शुरूआत से अब तक या तो मारे जा चुके हैं या अपाहिज हो चुके हैं। बीस लाख बच्चे विस्थापित हुए हैं। 23 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, जिनमें से 4 लाख इस हाल में हैं कि उन्हें जल्द इलाज नहीं मिला तो वे मर जाएंगे। (Responsible Yemen A Hell)
यमन दुनिया के सबसे ज्यादा पानी की कमी वाला देश है। यहां कोई नदी नहीं है और वर्षा में कमी हो रही है। ज्यादातर पानी खेती में उपयोग में आता है, खासतौर पर फल, सब्जी और नशीले पदार्थ (ऐसा पौधा जिसकी पत्तियां नशे के लिए इस्तेमाल की जाती हैं) के लिए। ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 35 प्रतिशत आबादी की पहुंच साफ पीने के पानी तक है।
युद्ध ने अवरचना को ध्वस्त कर दिया है। हवाई हमलों में स्कूल, सड़क, अस्पताल, पुल और घर बार-बार बमबारी के शिकार होते हैं। मानव जीवन का भी नुकसान होता है। 2015 से अब तक 2 लाख 25 हजार नागरिक युद्ध की वजह से मरे हैं। हर 10 मिनट में एक बच्चे की मौत ऐसी बीमारियों से होती हैं जिनकी रोकथाम संभव है। बीस लाख से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर हैं और एक लाख 70 हजार से अधिक शिक्षकों को चार लाख से अधिक समय से नियमित वेतन नहीं मिला है। (Responsible Yemen A Hell)
यमन की इस दुर्दशा के लिए अमेरिका-ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी और सऊदी अरब-संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के पूंजीवादी शासक जिम्मेदार हैं। ये यमन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर वहां शांति बहाली में बाधक बने हुए हैं। ये हूती विद्रोहियों को यमन के भीतर की ताकत मानने के बजाय ईरान द्वारा खड़ा किया गया घोषित कर रहे हैं। अगर हूती विद्रोहियों की कमियां हैं तो इस पर जीत हासिल करने की जिम्मेदारी यमन की जनता की है।
(साभार: यह लेख पाक्षिक समाचार पत्र नागरिक अधिकारों को समर्पित के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है)