जब राजस्थान की एक अदालत के शीर्ष पर हिंसक भीड़ ने भगवा झंडा फहरा दिया था

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When the Saffron Flag was Hoisted at the Top of a Court in Rajasthan

देश के किसानों का लम्बे समय से चल रहा शांतिपूर्ण प्रदर्शन गणतंत्र दिवस के मौके पर निकाली गयी ट्रैक्टर परेड के बाद से ही सवालों के घेरे में आ रहा है. किसान नेताओं द्वारा लालकिले कूच की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताने के बाद भी मीडिया संस्थान एकतरफा तौर पर किसान आन्दोलन में घुस आये कुछ अराजक तत्वों द्वारा की गयी गिनी-चुनी हिंसात्मक घटनाओं की आड़ में आंदोलन के खिलाफ धारणा बनाने में जुटे हैं. (Saffron Flag Rajasthan Court)

सबसे ज्यादा बवाल लाल किले पर तिरंगे के साथ सिख धर्म के प्रतीक ध्वज, ‘निशान साहिब,’ फहराने को लेकर कटा है. धर्म, जिसे नितांत निजी मसला है होना चाहिए, का समाज व राजनीति में घालमेल स्वतः ही इस तरह के विवादों को जन्म देता ही है. ये कोई पहला मौका नहीं है जब किसी राष्ट्रीय महत्त्व की इमारत पर धार्मिक झंडा फहराया गया हो.

14 दिसंबर 2017 को राजस्थान की उदयपुर कोर्ट के प्रवेश द्वार के गुम्बद पर भगवा झंडा फहरा दिया गया था. इस घटना में  कई ‘हिन्दुत्ववादी’ संगठनों की भूमिका थी. दरअसल राजस्थान के राजसमंद में लव जेहाद के नाम पर शम्भूनाथ रैगर नाम के एक व्यक्ति ने अफराजुल भट्टा शेख नामक एक व्यक्ति की हत्या की और उसे जला दिया. कलेक्टर दफ्तर से महज 600 मीटर की दूरी पर की गयी इस वारदात का वीडियो बनाकर शम्भूनाथ ने सोशल मीडिया में पोस्ट कर दिया जो कि वायरल हो गया. इस वीडियो में ‘लव जेहाद’ को लेकर भड़काऊ बयान और चेतावनियां भी थीं.  वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस द्वारा शम्भूनाथ को गिरफ्तार कर लिया गया.

भगवा ब्रिगेड इस निर्मम हत्या के समर्थन में खुलकर सामने आ गयी. 14 दिसंबर को राजस्थान की उदयपुर कोर्ट में हिन्दुत्ववादी संगठनों ने हिंसक विरोध प्रर्दशन किया. हत्यारोपी शम्भूनाथ के समर्थन में हिंसक भीड़ कोर्ट के अंदर घुस गयी और न्यायालय की छत पर भगवा झंडा फहरा दिया. भगवा फहराने के बाद भी यह हिंसक प्रदर्शन काफी देर तक चलता रहा. उन्मादियों की इस भीड़ ने न्यायालय परिसर कब्ज़ा लिया और वकीलों तथा पुलिस से मारपीट की. इस हिंसक भीड़ ने पथराव कर 10 अफसरों समेत 30 पुलिसवालों को घायल कर दिया. 4 सिपाही गंभीर रूप से घायल हुए. एडिशनल एसपी सुधीर जोशी का सर पत्थर से फोड़ दिया गया, कई अन्य अफसर भी घायल हुए. बाद में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और शहर में धारा 144 लगा दी गयी. कई जगहों पर इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गयीं.

मुख्यधारा के मीडिया में इस घटना की बहुत चर्चा नहीं हुई. न्यायपालिका पर इस प्रतीकात्मक कब्जे पर अपराधिक चुप्पी छायी रही. क्योंकि यहां मसला अल्पसंख्यकों का नहीं बहुसंख्यकों की ठेकेदारी करने वाले उग्र राजनीतिक संगठनों का था जिन्हें सत्ताधारियों का संरक्षण मिला हुआ था.

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