जानें OBC वर्ग से संबंधित बिल में क्या है खास जिसपर सरकार को मिला विपक्ष का पूरा साथ

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नई दिल्ली | लोकसभा और राज्यसभा में गतिरोध बना हुआ है. पेगासस, कृषि कानून समेत अन्य मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे की वजह से आज भी दोनों ही सदनों की कार्यवाही सुचारू ढंग से नहीं चल सकी.

हालांकि, हंगामे के बीच सदन सरकार ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जा रहे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ को लोकसभा में पेश किया.

इस विधेयक का समूचा विपक्ष ने स्वागत किया है. विधेयक राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने के लिए सशक्त बनाता है.

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संविधन संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी?

अब तक ओबीसी की अलग-अलग सूचियां केंद्र और राज्य सरकारें तैयार करती रही हैं. अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) ने राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान कर उनकी सूची बनाने और उन्हें घोषित करने के लिये स्पष्ट रूप से शक्ति प्रदान की है.

हालांकि, यह सूची एक समान नहीं है. अभी राज्यों की ओबीसी सूची में कई ऐसी कई जातियां शामिल हैं, जो केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल नहीं हैं. राज्यों की सूची के आधार पर ही ओबीसी के दायरे में आने वाली जातियों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलता रहता. आगे कई जातियां इसके दायरे में लाई जातीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से ऐसा करने पर रोक लग गई थी.

क्या है इस विधेयक में?

विधेयक में यह व्यवस्था की गई है कि राज्यों की ओर से बनाई गई ओबीसी श्रेणी की सूची उसी रूप में रहेगी जैसा यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले थी. राज्य सूची को पूरी तरह से राष्ट्रपति के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा. इस सूची को राज्य विधानसभा अधिसूचित कर सकेगी.

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इससे पहले क्या था?

2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 342 के बाद भारतीय संविधान में दो नए अनुच्छेदों 338बी और 342ए को जोड़ा गया.

338बी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है. वहीं, 342ए राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान करता है. इन वर्गों को अधिसूचित करने के लिए वह संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर सकता है.

इससे क्या बदलने वाला है?

संसद में संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366(26) सी के संशोधन पर अगर मुहर लग जाती है तो इसके बाद राज्यों के पास ओबीसी सूची में अपनी मर्जी से जातियों को अधिसूचित करने का अधिकार होगा. इससे ओबोसी जातियों के आरक्षण का रास्ता साफ होगा.

राज्य सरकार और संघ क्षेत्र को सशक्‍त बनाता है बिल

इसमें कहा गया है, ”यह विधेयक पर्याप्त रूप से यह स्पष्ट करने के लिए है कि राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने और उसे बनाये रखने को सशक्त बनाता है.”

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विधेयक में संशोधन की जरूररत पर जोर

विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि देश की संघीय संरचना को बनाए रखने के दृष्टिकोण से संविधान के अनुच्छेद 342क का संशोधन करने और अनुच्छेद 338ख एवं अनुच्छेद 366 में संशोधन करने की आवश्यकता है. यह विधेयक उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए है.

विपक्षी दलों ने बिल को पास कराना तय किया

इस दौरान लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आज सभी विपक्षी दलों ने बैठक की और निर्णय लिया कि इस विधेयक पर सदन में चर्चा होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हम अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण से संबंधित इस विधेयक को पारित कराना चाहते हैं.

उन्‍होंने कहा, हम विपक्ष की जिम्मेदारी समझते हैं. सभी विपक्षी दलों ने फैसला किया कि इस पर चर्चा कराके पारित कराया जाना चाहिए. इस विधेयक के साथ देश के पिछड़े वर्ग का संबंध है.

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कांग्रेस बोली- हमने कहा था प्रदेशों के अधिकारों का हनन नहीं किया जाए

कांग्रेस नेता चौधरी ने कहा कि इससे पहले जब 102वां संविधान संशोधन लाया गया था तो हमने कहा था कि प्रदेशों के अधिकारों का हनन नहीं किया जाए. लेकिन ‘बहुमत के बाहुबल’ से सरकार हमारी बात नहीं सुनती.

उन्होंने कहा, ”लेकिन आज जब हिंदुस्तान के आम लोग, अन्य पिछड़ा वर्ग के लेागों ने आंदोलन किया तो उनके डर से सरकार को यह विधेयक लाना पड़ा.” इस दौरान सदन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उपस्थित थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है.

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