54 साल पहले की बात है. कैफ़ी आज़मी प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी के बुलावे में मुशायरा पढ़ने के लिए तशरीफ़ लाए थे. यह वो दौर था, जब कैफ़ी साहब शोहरत की बुलंदियों पर थे. उस वक़्त एक ऐसा वाक़िया पेश आया, जिसने उस दौर के प्रशासनिक अफ़सरों के साथ वसीम साहब के माथे पर भी परेशानी की लकीरें खींच दी. सिटी मजिस्ट्रेट बेहद बेचैन हो उठे. वसीम साहब मुशायरे की तैयारियां छोड़कर सिटी मजिस्ट्रेट के साथ उन्हीं की जीप से सर्किट हाउस पहुंच गए लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो जाए और कैफ़ी साहब से कहे कि वो राज्यपाल कक्ष को ख़ाली कर दें. सभी कशमकश में फंसे थे. तब हैरान कर देने वाला नज़ारा देखने को मिला, जिसके लिए कैफ़ी साहब से राज्यपाल कक्ष को ख़ाली कराने की उधेड़बन चल रही थी, वो गए और कैफ़ी साहब के क़दमों में झुक गए. उनके सिर पर कैफ़ी साहब ने आशीर्वाद के लिए हाथ रख दिया. मुंह से लफ़्ज़ निकले-जीतो रहो बरख़ुरदार. यह यादगार और नसीहत देने वाला क़िस्सा हम आपको प्रोफ़सर वसीम बरेलवी की ज़ुबानी सुनवाते हैं.
क्या AIMIM में खड़ी हो गई सेकेंड लाइन…? Tiranga Yatra | Mumbai | Imtiaz jaleel | Asaduddin Owaisi
द लीडर हिंदी: महाराष्ट्र में नबी की शान में ग़ुस्ताख़ी के बाद से माहौल बना हुआ था. जिस तरह से मुख़ालेफ़त में आवाज़ें उठ रही थीं. सरकारी गलियारों से रामगिरि…