द लीडर : वसीम रिज़वी, नाम तो सुना होगा. वही जो धर्म बदलकर जितेंद्र नारायण त्यागी का नामकरण करा चुके हैं. आजकल बड़े परेशान हैं. डिप्रेशन में हैं. कहीं से कोई मददगार नहीं मिला. बेल ख़त्म हो गई. और दोबारा अपनी जगह, सलाखों के पीछे जा रहे हैं. हैरान-परेशान वसीम को कुछ सूझ नहीं रहा. सो, जेल जाने से पहले मन की बात कर डाली. संवाद का अंदाज़ बदला-बदला है. जिससे गब्बर सिंह वाली दहाड़ फ़ना हो चुकी है और किसी निरीह प्राणी की तरह परिचय देते हैं…आपका जितेंद्र नारायण त्यागी, जो पहले वसीम रिज़वी था. आप भूल न गए हों तो सुनिएगा. और प्रतिक्रिया भी दीजिए. सो लोग पूछ रहे हैं, क्या हाल है जनाब का…और रिज़वी कह रहे हैं मुझे कोई प्यार नहीं करता…इज्ज़त तक नहीं मिल रही. (Waseem Rizvi Jitendra Narayan Tyagi)
पहले जो वसीम रिज़वी थे, चेयरमैन के नाते उत्तर प्रदेश शिया वक्फ़ बोर्ड उनकी मिल्कियत हुआ करती थी. क़रीब 15 साल तक सबसे बोर्ड के अध्यक्ष रहे. दौलत, शोहरत और ताक़त सब कुछ था. इसी सनक ने रिज़वी को बेलगाम कर दिया. ख़ुद की करतूतों ने उनका वो हाल कर दिया कि, ‘न ख़ुदा ही मिला और न विसाले सनम, न इधर के हुए न उधर के…’वसीम की मन की बात में ये दर्द साफ़ देखा जा सकता है. उनकी मन की बात भी हम आपको सुनवाएंगे. जिसमें दिलजले, दिल टूटे हुए किसी आशिक़ की तरह वह शिक़वा कर रहे हैं.
पिछले साल दिसंबर में हरिद्वार में धर्म संसद हुई थी. नरसिंहानंद सरस्वती के नेतृत्व में आयोजित इस धर्म संसद से मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ खुलेआम हिंसक बयानबाजी सामने आई थी. वसीम रिज़वी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी भी इसका हिस्सा थे. इसी साल 13 जनवरी को उत्तराखंड पुलिस ने त्यागी को गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया था. क़रीब पांच महीने बाद 17 मई को कोर्ट ने रिज़वी उर्फ त्यागी को मेडिकल ग्राउंड पर अंतरिम ज़मानत दी थी, जिसका टाइम पूरा हो चुका है. रिज़वी ने अदालत से ज़मानत की मियाद बढ़ाने की दरख़्वास्त की, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने इससे इनकार कर दिया. (Waseem Rizvi Jitendra Narayan Tyagi)
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जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागारथना की बेंच ने त्यागी से अगले सप्ताह के सोमवार तक सरेंडर करने को कह रखा है. सुप्रीमकोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा- आप स्वास्थ्य अधिकार के तहत अंतरिम ज़मानत पर हैं. पहले सरेंडर कीजिए. जाओ पहले सरेंडर करो. वह सीनियर सिटिजन नहीं हैं. 51 साल के हैं. जस्टिस रस्तोगी ने कहा-कम से कम 7 दिन कस्टडी में बिताने चाहिए. कोर्ट ने अगली तारीख़ के साथ सुनवाई स्थगित कर दी.
रिज़वी उर्फ़ त्यागी की मन की बात का कारण ये है कि उन्हें दोबारा जेल जाना पड़ रहा है. कोई हमदर्द नहीं है. मां, बीवी और भाई. सबसे से नाता तोड़ चुके हैं. वसीम ने 6 दिसंबर 2021 को गाज़ियाबाद के डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती की उपस्थिति में इस्लाम छोड़कर सनातन धर्म स्वीकार कर लिया था.
त्यागी जी ख़ुदकुशी के बारे बिल्कुल न सोचें, आपको ज़िंदा रहना है समाज के लिए, देश के लिए, आने वाली नस्लों को ख़बर होनी चाहिए, कि घर वापसी में जो इज़्ज़त और जो सुकून है वो और कहां?
आप ज़िंदा मिसाल हैं
और
प्यार ज़बरदस्त वाला है…
ज़िंदगी के साथ भी
ज़िंदगी के बाद भी https://t.co/lh6JnnrwWw— Hussain Rizvi हुसैन حسین رضوی (@TheHussainRizvi) September 1, 2022
यूपी शिया वक्फ़ बोर्ड के चेयरमैन पद पर रहते हुए रिज़वी ने इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती युद्ध छेड़ रखा था. इस्लामिक शिक्षा, मदरसे उनके निशाने पर रहते. एक बयान में रिज़वी ने कहा-मदरसों को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि ये आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं. बच्चों के दिमाग में ज़हर घोलते हैं. यहां आतंक की ट्रेनिंग दी जाती है. अक्सर विवादित बयानों को लेकर मीडिया की जीनत के अभ्यस्त हो चुके वसीम रिज़वी ने मार्च 2021 में सारी हदें लांघ डालीं. और क़ुरान की 26 आयतों को चैलेंज कर दिया. (Waseem Rizvi Jitendra Narayan Tyagi)
सुप्रीमकोर्ट में एक जनहित याचिका दाख़िल की. इस दावे के साथ कि कुरान की ये आयतें आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं. मदरसों में इन आयतों को पढ़ाने की वजह से आतंक को बढ़ावा मिलता है. वो यहीं नहीं थमे. मीडिया में आकर तमाम अनाप-शनाप बातें बोलीं. जिस पर काफ़ी हंगामा मचा. इस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने न सिर्फ़ रिज़वी की याचिका ख़ारिज की, बल्कि उन पर ज़ुर्माना भी लगाया था.