मजहब की बुनियाद पर बनने वाले मुल्कों का हश्र क्या हो सकता है, इसकी सबसे करीबी तस्वीर पाकिस्तान है। यहीं की शायरा रही हैं फ़हमीदा रियाज़, जिन्हाेंने अपने तजुर्बे को अपनी शायरी-नज़्म में भी दर्ज़ किया है। इसी राह पर जब पड़ोसी मुल्क में हाथ-पांव मारे जाने लगे तो उन्होंने यह रचना लिखी, यह रचना पड़ोसी देश भारत के लिए है और उनको आगाह करना है, कि भाई हमारी तरह तो नहीं होने जा रहे, या आप जो कर रहे हो, वह कुछ वैसा ही होता जा रहा है, जिससे हमारा मुल्क गुजरा है और गुजर रहा है। (Fahmida Riaz Poem)
पढ़िए यह कविता……
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले अब तक कहां छुपे थे भाई?
वह मूरखता, वह घामड़पन जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे अरे बधाई, बहुत बधाई
भूत धरम का नाच रहा है कायम हिंदू राज करोगे?
सारे उल्टे काज करोगे? अपना चमन नाराज करोगे?
तुम भी बैठे करोगे सोचा, पूरी है वैसी तैयारी,
कौन है हिंदू कौन नहीं है तुम भी करोगे फतवे जारी
वहां भी मुश्किल होगा जीना दांतों आ जाएगा पसीना
जैसे-तैसे कटा करेगी वहां भी सबकी सांस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!
क्या हमने दुर्दशा बनायी कुछ भी तुमको नजर न आयी? (Fahmida Riaz Poem)
भाड़ में जाये शिक्षा-विक्षा, अब जाहिलपन के गुन गाना,
आगे गड्ढा है यह मत देखो वापस लाओ गया जमाना
हम जिन पर रोया करते थे तुम ने भी वह बात अब की है
बहुत मलाल है हमको, लेकिन हा हा हा हा हो हो ही ही
कल दुख से सोचा करती थी सोच के बहुत हंसी आज आयी
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले हम दो कौम नहीं थे भाई (Fahmida Riaz Poem)
मश्क करो तुम, आ जाएगा उल्टे पांवों चलते जाना,
दूजा ध्यान न मन में आए बस पीछे ही नजर जमाना
एक जाप-सा करते जाओ, बारम्बार यह ही दोहराओ
कितना वीर महान था भारत! कैसा आलीशान था भारत!
फिर तुम लोग पहुंच जाओगे बस परलोक पहुंच जाओगे!
हम तो हैं पहले से वहां पर, तुम भी समय निकालते रहना,
अब जिस नरक में जाओ, वहां से चिठ्ठी विठ्ठी डालते रहना