स्टीफन हॉकिंग को तो जानते ही होंगे। उनका 76 साल की उम्र में 14 मार्च 2018 को निधन हो चुका है। न्यूटन, गैलीलियो, आइंसटाइन जैसे महान वैज्ञानिकों की विरासत को उन्होंने आखिरी दम तक संभाला। अंतरिक्ष के रहस्यों से पर्दा हटाने में बेमिसाल योगदान दिया। असंख्य तारों के साथ असीमित फैले अंतरिक्ष के उन सवालों को हल करने की सफल कोशिश की, जो किसी भी जागरुक इंसान के दिमाग में आते हैं। (Stephen Hawkings Life)
डॉक्टरों ने उनकी दो साल में मौत का ऐलान किया था और वे उस ऐलान के बाद दशकों जीकर दुनिया में अपनी प्रतिभा और विज्ञान का लोहा मनवाते रहे। कमाल यह है कि ऐसा उन्होंने तब किया, जब वे न बोल सकते थे और न चल-फिर सकते थे। दुरुस्त दिमाग के अलावा दो अंगुलियों के जरिए ऐसा किया। जिस्म के सक्रिय इन हिस्सों ने कारगर काम तब किया, जब उनकी देखरेख करने वाला उनका कोई खास था।
क्या आप जेन वाइल्ड को जानते हैं? अद्भुत प्रतिभा के धनी स्टीफन हॉकिंग की जिंदगी में जेन वाइल्ड मरणासन्न व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन के रूप में आईं। उस वक्त, जब उनकी लाइलाज बीमारी मोटर न्यूरॉन का पता चल चुका था। जब हॉकिंग दुनिया से निराश हो चुके थे। ये भी पता चल चुका था कि वे सिर्फ दो साल जी सकेंगे।
ऐसे में खूबसूरत जेन ही थीं, जिन्होंने हॉकिंग को जिंदगी पूरे उत्साह से जीने का जज्बा पैदा किया। उन्होंने उसी हाल में हॉकिंग को चाहा और उनकी जीवनसाथी बन जिंदगी जीने का वह गुर दिया, जिसको वे ताउम्र दिमाग में सहेजे रहे।
स्टीफन हॉकिंग को दुनिया जितना ज्यादा जानती है, उतना ही कम उनकी पत्नी जेन वाइल्ड को जान पाई। उस वक्त में भी उनकी बात को शायद कोई नहीं सुन पाया, जब जेन ने बताना चाहा। स्टीफन की महानता के आवरण में उनका अनसुना दर्द ढक गया। ‘द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’ फिल्म में उनकी प्रेम कहानी और उस संबंध के टूटने को दिखाया गया, लेकिन यह सिर्फ मनोरंजन का हिस्सा बना, तकलीफ का नहीं। (Stephen Hawkings Life)
हॉकिंग के निधन के समय जेन हॉकिंग जिंदगी से जुदा हो चुकी थीं, उन्होंने उस वक्त मीडिया से कोई बात नहीं की। उससे पहले 2014 में उन्होंने ‘द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’ की रिलीज के समय मन की बेचैनी को रखने की कोशिश जरूर की थी। जेन हॉकिंग ने कहा था, ”फिल्म ने युगल जीवन और परिवार के बहुत से तथ्यों पर पर्दा डाल दिया। लंदन में हेनले लिटरेरी फेस्टिवल में भी कहा, कभी फिल्मों पर भरोसा मत कीजिए।”
”दर्जनों यात्राओं के समय एक गंभीर रूप से विकलांग सदस्य के साथ एक परिवार के लिए पैकिंग, आना-जाना, ड्राइविंग, सामान्य दिनचर्या के हिसाब से देखभाल, ये किसी को महसूस नहीं हो सका।”
जेन का कहना जायज भी लगता है। ऐसा न होता तो लोग जेन वाइल्ड को भी जान रहे होते, उनका भी सम्मान स्टीफन हॉकिंग के बराबर नहीं तो कम भी नहीं होता। बताया जाता है कि यह फिल्म जेन हॉकिंग की ‘ट्रैवलिंग टू इनफिनिटी- माय लाइफ विद स्टीफन’ किताब पर आधारित थी। (Stephen Hawkings Life)
असल किस्सा क्या है? यह जानकर जेन की टीस को समझा जा सकता है।
जब असाध्य मोटर न्यूरॉन रोग एम्यिोट्रॉफिक लैटरल स्क्लेअरोसिस (एएलएस) की सूचना ने स्टीफन को हिलाकर रख दिया। मौत को काफी नजदीक देखकर वे बेचैन हो गए। उन्हें यहां तक महसूस होने लगा कि जब तक पीएचडी की उपाधि मिलेगी, जिंदा भी नहीं रहेंगे, जीते जी डिग्री मिल भी गई तो लुंज-पुंज जिस्म के साथ किस काम की?
इससे पहले की बात है। खामोश तबीयत की जेन वाइल्ड का परिचय 1962 में उनकी दोस्त डायना किंग ने कराया था। हालांकि जेन पहले से उन्हें पहचानती थीं, क्योंकि दोनों छोटी क्लास में साथ पढ़ चुके थे। नई मुलाकात में दोनों एक-दूसरे से आकर्षित हुए। लेकिन बात आई-गई हो गई।
फिर एक पार्टी में उनकी मुलाकात दोबारा हुई और स्टीफन की बर्थ डे पार्टी में भी गईं। बाद में जेन जब अपने कॅरियर के लिए पढ़ाई-लिखाई करने में लगीं थीं, तभी डायना ने स्टीफन की बीमारी के बारे में बताया।
इस समय स्टीफन को नहीं समझ में आ रहा था कि आगे क्या होगा! वे उबरने की कोशिश भी कर रहे थे। उसी समय फरिश्ते सरीखी जेन उनकी जिंदगी में आईं। रेलवे स्टेशन पर मुलाकात के बाद साथ सफर किया और साथ डिनर करके पिक्चर देखी, डेट पर जाने का प्रोग्राम भी बनाया। इसके बाद जेन सेक्रेट्री की नौकरी करती रहीं और कई महीने नहीं मिलीं। (Stephen Hawkings Life)
कैंब्रिज में मई उत्सव में जाने के लिए स्टीफन जब उन्हें लेने पहुंचे तो जेन उनकी शारीरिक हालत देखकर परेशान हो उठीं। उन्हें दुख होता था कि शायद ये रिश्ता लंबे समय तक न चले। वहीं जेन के आने से स्टीफन की जिंदगी में जैसे बहार आ गई।
इसी कशमकश के बीच जेन उन्हें ये समझाने में सफल रहीं कि ‘भविष्य जैसी कोई चीज नहीं होती, आप अपने वर्तमान को बेहतर से जीने की कोशिश कीजिए। एक दिन जब आप पीछे मुडक़र देखेंगे तो पता चलेगा कि आपने जो जिंदगी गुजारी है वह निहायत खूबसूरत थी। ’
जेन ने महसूस किया कि स्टीफन के जीने की तमन्ना खत्म हो चुकी है, लिहाजा दोनों एक हो जाएं तो बहुत कुछ अच्छा हो सकता है। उन्होंने स्टीफन की देखभाल को अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया। पहले उन्होंने बीमारी के बारे में काफी जानने की कोशिश की, फिर ये सोचकर तसल्ली कर ली कि ज्यादा जानकारी से मानसिक तनाव बढ़ ही जाएगा, जिंदगी के बारे में ज्यादा सोचने से कोई फायदा नहीं, हष्ट-पुष्ट इंसान के भी जिंदा रहने की क्या गारंटी है।
आखिर दोनों के बीच रिश्ता परवान चढऩे लगा। स्टीफन ने एक दिन जेन के पिता जॉर्ज वाइल्ड से हाथ मांग लिया। रिश्ता पक्का होने के बाद स्टीफन के पिता फ्रेंक हॉकिंग ने जेन को आगाह किया कि स्टीफन की शारीरिक स्थिति अच्छी नहीं है, हो सकता है कि ज्यादा लंबे समय तक न रहे इसलिए जल्द मातृत्व सुख के बारे में सोचना।
तमाम कठिनाइयों के साथ जेन ने शादी के रिश्ते को गंभीरता से लिया। ये भी सोचा कि परमाणु हथियारों के इस युग में न जाने कब संसार खत्म हो जाए, ऐसे में लंबे जीवन के बारे में क्या सोचना, बस खुशी-खुशी जीना चाहिए।
जेन के कॉलेज वेस्टफील्ड में अंडर ग्रेजुएट को शादी की अनुमति नहीं थी, लिहाजा भागदौड़ करके उन्होंने शादी की मंजूरी इस आधार पर ली कि हॉकिंग का जीवन लंबा नहीं है और स्नातक होने तक इंतजार नहीं किया जा सकता। मंजूरी तो मिल गई, लेकिन उन्हें कैंपस के बाहर रहना पड़ा। (Stephen Hawkings Life)
पैसे की जरूरत थी तो जेन ने हाथ में प्लास्टर चढ़ा होने पर दूसरे हाथ से स्टीफन के लिए फेलोशिप की एप्लीकेशन को लिखा। बीमार पति के साथ जेन को रहने के लिए मकान की समस्या से भी जूझना पड़ा। शादी के बाद सप्ताहभर के घरेलू कामों की व्यवस्था करके लंदन में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और पति हॉकिंग की पीएचडी को टाइप भी करती रहीं। शुक्रवार से सोमवार तक कैंब्रिज में रहती थीं और पढ़ाई के लिए लंदन में किराए पर।
स्टीफन को 1966 में पीएचडी की डिग्री मिली और इसी दरम्यान जेन ने अच्छे अंकों से परीक्षा पास की, लेकिन उच्च श्रेणी नहीं आई। उन्होंने भी पीएचडी करने का सोचा और ऐसा विषय चुना जिसमें ज्यादा भागदौड़ न करना पड़े। लंदन में दाखिला लिया, लेकिन गर्भवती हो जाने और स्टीफन की हालत और खराब होने से पीएचडी स्थगित कर दी।
28 मई 1967 को बेटे रॉबर्ट का जन्म हुआ। डॉक्टरों ने स्टीफन की दो साल की जिंदगी का जो ऐलान किया था, वह अवधि भी उसी समय समाप्त हो रही थी। बेटे की खुशी से स्टीफन के जीने की लालसा और ताकत बढ़ गई। यह देख डॉक्टर हैरान हो रहे थे। उनकी रिसर्च भी रंग लाने लगी, स्टीफन की ख्याति बढऩे लगी।
हालांकि दो साल के अंदर उनका शरीर व्हीलचेयर पर आ चुका था। जेन अपनी थीसिस पूरी करने के लिए संघर्ष कर रही थीं। वर्ष 1970 में वे फिर गर्भवती हो गईं और फिर बेटी लूसी का जन्म हुआ। दो छोटे बच्चे और बीमार पति की देखभाल, इस मुश्किल में जेन को पढ़ाई करना होती थी।
वर्ष 1974 तक स्टीफन खाना, सोना, बिस्तर पर जाना आदि सभी काम खुद कर सकते थे, लेकिन बाद में यह काम मुश्किल हो गया। कुछ समय तक तो उनकी पत्नी जेन कपड़े बदलने समेत सभी काम करती थीं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियां बढऩे के साथ जेन के लिए अब स्टीफन के सब काम करना कठिन हो गया। लिहाजा उन्होंने स्टीफन के एक शोध सहायक को घर पर ही रख लिया। उसका काम था स्टीफन को शारीरिक मदद देना।
स्टीफन अपने बच्चों के साथ खेल नहीं सकते थे, इसलिए जेन ही उस वक्त पिता की भूमिका निभाती थीं। उन्होंने ही बच्चों को क्रिकेट खेलना सिखाया। जेन कहती, ”दूसरी महिलाओं के पति अगर घर के काम में हाथ नहीं बंटाते तो उन्हें गुस्सा आता है, लेकिन मुझे नहीं आता, क्योंकि मैं हकीकत जानती हूं।”
हालात ऐसे हो गए कि जेन का व्यक्तित्व खो सा गया और स्टीफन की ख्याति आसमान छूने लगी। जेन को महसूस होने लगा कि इतने कष्ट, परिश्रम के बावजूद पति की सफलता के आगे नजरंदाज किया जा रहा है। पत्रकारों ने भी जेन को कोई अहमियत नहीं दी। बल्कि अप्रत्यक्ष तौर पर यही एहसास कराया कि बुद्धि में वे स्टीफन के आगे कुछ नहीं।
जेन ने खुद ऐसा एक मौके पर कहा, ”मेरे विचार जानने में किसी को दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि पति के विचारों की तुलना में मेरे विचार महत्वपूर्ण नहीं थे। ऐसा लगा, जैसे मेरी कोई हस्ती ही नहीं रह गई, जबकि पुस्तक के लिखने की प्रेरणा मैंने ही स्टीफन को दी, पुस्तक लोकप्रिय होते ही मेरी हालत दयनीय हो गई।” (Stephen Hawkings Life)
एकाध जगह जेन के बारे में पूछे जाने पर स्टीफन ने जेन की सराहना तो की, लेकिन अपनी सफलता में कभी हिस्सेदार नहीं बनाया। कामयाबी की ऊंचाई पर पहुंचने पर उन्हें जिंदगी जीने के सभी साधन मुहैया हो गए तो जेन दूर छिंटक गईं।
जीवन के 25 साल जेन के साथ गुजारने के बाद स्टीफन ने नर्स इलाइन का साथ पकड़ा, जो तीन साल में ही छूट गया। दूसरी ओर जेन ने हमजोली रहे दोस्त जोनाथन को बाकी जिंदगी का हमसफर बना लिया।
जगजाहिर किए बगैर दोनों एक दूसरे से अलग हो गए थे।
काफी बाद में पता चलने पर लोग हैरान हुए और अफवाह ये भी रही कि शायद धार्मिक विचारों में भिन्नता के कारण दोनों अलग हुए। हालांकि बाद में जेन ने कहा कि ऐसा सोचना लोगों का भ्रम है।
दोनों के बीच तलाकनामे को 1995 में अंतिम रूप मिला।
स्टीफन ने ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ की भूमिका लिखते समय स्वीकार किया कि उनकी पत्नी जेन और बच्चों रॉबर्ट, लूसी व टिम की मदद, सहयोग और प्रेरणा के बलबूते ही साधारण जीवन जीया और ऊंचा कॅरियर बनाया, उनके बगैर ये संभव नहीं था। (Stephen Hawkings Life)
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