वो बाहुबली…जिसे पुलिस ने माफ़िया… तो ग़रीबों ने मसीहा जाना- पढ़ें मुख्तार नामा

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द लीडर हिंदी : वो मुख़्तार अंसारी, जिस नाम के आगे मुक़दमों की लंबी फेहरिस्त. लेकिन ग़रीबों में मसीहा-हमदर्द की पहचान. पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी राजनेता, दादा मुख़्तार अहमद अंसारी फ्रीडम फ़ाइटर, महात्मा गांधी के सहयोगी और कांग्रेस के अध्यक्ष की कुर्सी तक विरजामान होने वाली बेमिसाल शख़्सियत. नाना ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान जिन्हें जंग में वीरता के लिए परमवीर चक्र से नवाज़ा गया. चाचा हामिद अंसारी भारत के उपराष्ट्रपति. इसी परिवार के शौक़त उल्लाह अंसारी ओडिसा के राज्यपाल और न्यायमूर्ति आसिफ़ अंसारी हाईकोर्ट के जज रहे. इस बेहद सम्मानित परिवार के चश्मो चिराग़ मुख़्तार अंसारी ख़ुद पोस्ट ग्रेजुएट बेटा अब्बास अंसारी शॉट गन शूटिंग का इंटरनेशनल खिलाड़ी. राष्ट्रीय चैंपियन. ऐसे ख़ानदान का फ़रज़ंद आख़िर क्यों जराइम की दुनिया का ख़ौफ़नाक चेहरा बना. इस पर अनगिनत कहानियां लिखीं, सुनी, सुनाई जाती रही हैं. और यह सिलसिला मुख़्तार अंसारी की मौत पर ख़त्म नहीं हुआ है. और न ही होगा, आगे भी बदस्तूर जारी रहेगा.

मुख़्तार अंसारी को जितना सुना गया, उससे कहीं ज़्यादा पढ़ा भी गया है. 6 फीट 5 इंच क़द वाले मुख़्तार अंसारी पूर्वांचल में दुश्मनों के बीच दहशत का दूसरा नाम बना तो ग़रीबों में मसीहा वाली अलग छवि बनती चली गई. यही वजह रही कि राजनीति में क़दम रखा तो एक के बाद एक चुनाव में जीत का परचम लहरा उठा. उसी के साथ मुक़दमों की फेहरिस्त भी लंबी होती चली गई. पढ़ाई के दौरान ग़ाज़ीपुर के पीजी कॉलेज से ही जराइम की दुनिया की तरफ क़दम बढ़ते चले गए. गोरखपुर के बड़े नेता के लिए काम करने वाले साधू सिंह और मकनू सिंह दो भाईयों से रिश्ते बने. यहां से मुख़्तार अंसारी की राह ख़ानदानी विरासत से जुदा हो गई. आइए-आपको बताते हैं कि किस तरह गैंगवार होती रही, गोलियां चलती रहीं और हॉलीवुड सरीखे मर्डर होते रहे.

साधु और मकनू को अपना गुरु मानकर मुख्तार ने अपराध की दुनिया की बारीकियों को समझा और ‘बाहुबली’ बनने की तरफ क़दम बढ़ा दिए. मुख्तार का तकिया कलाम था ‘हनुमान गेयर’. उसे कोई काम पसंद आ जाए तो कहता था कि हनुमान गेयर लगाता हूं. हनुमान गेयर यानी साम, दाम, दंड और भेद से उस काम को करना है. मुख्तार से जुड़े लोग मुहम्मदाबाद से निजी बसें चलवाने लगे तो इसे लेकर इलाके के दबंग सच्चिदानंद राय गैंग से विवाद हो गया. अदावत में सच्चिदानंद ने मुख्तार के घर ‘फाटक’ पर धावा बोला तो उसने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया. कुछ दिन बाद ही सच्चिदानंद राय की हत्या हो गई. मुख्तार का नाम सामने आया पर कुछ साबित नहीं हो सका. लेकिन मुख्तार का माफिया नगरी में ‘बड़ा’ नाम हो गया. इसके बाद साफ हो गया था कि पूर्वांचल में दो ही लोगों की दबंगई चलेगी. एक गुट मुख्तार के साथ जुड़ गया तो दूसरे ने ब्रजेश सिंह की शरण ली.

मुख्तार और ब्रजेश सिंह के रास्ते पहले अलग-अलग थे. दोनों की कोई निजी दुश्मनी नहीं थी. लेकिन साधू सिंह मुख्तार के संघी थे. साधू सिंह गैंग के पांचू सिंह ने ब्रजेश सिंह के पिता वीरेंद्र सिंह की हत्या कर दी थी. साधू सिंह की दोस्ती की वजह से ब्रजेश सिंह मुख्तार को दुश्मन मानने लगा. अदावत बढ़ती गई. अब ठेका नाक का सवाल बन गया. बनारस से इलाहाबाद की तरफ ब्रजेश सिंह भारी पड़ते तो बनारस से गाजीपुर-मऊ की तरफ मुख्तार. ऐसे में गैंगवार लाज़िमी था और इसमें कई लोगों की जानें गईं. साधू सिंह को तो पुलिस कस्टडी में मार दिया गया. हत्यारे पुलिस की वर्दी में आए थे. आरोप ब्रजेश सिंह पर लगा. उसी दिन साधू सिंह के गांव मुदियार में हमला हुआ और उनके भाई और मां समेत 8 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई. इसके बाद अदावत और भी ज्यादा बढ़ गई. पुलिस से बचने के लिए ब्रजेश सिंह अंडर ग्राउंड हो गए.

साल 1996 में मुख्तार राजनीति में आ गए और मऊ से बीएसपी के टिकट पर विधायक चुन लिए गए. 15 जुलाई 2001 को मुख्तार के काफिला पर उसरी चट्टी में हमला हुआ. इसमें मुख्तार के गनर समेत 3 लोग मारे गए. हमले में मुख्तार के जानी दुश्मन ब्रजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह का नाम सामने आया. ब्रजेश सिंह ने इलाका छोड़ दिया. इसके बाद उसने मुख्तार को कमजोर करने के लिए राजनीति का सहारा लिया और भाजपा के कृष्णानंद राय को सपोर्ट देते हुए पैतृक सीट मुहम्मदाबाद से 2002 में विधानसभा चुनाव लड़वाया. इसमें कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई अफ़ज़ाल अंसारी को हरा दिया. अपने ही गढ़ में यह हार मुख्तार को अखर गई. भाजपा विधायक कृष्णानंद राय बुलेट प्रूफ गाड़ी से चला करते थे. ब्रजेश सिंह का बैकअप भी मिला था. इल्ज़ाम है कि मुख्तार ने बुलेट प्रूफ गाड़ी भेदने के लिए सेना के एक भगाेड़े से एक करोड़ में एलएमजी खरीदने का सौदा तय किया. मगर यूपी एसटीएफ ने उसके प्लान पर पानी फेर दिया.

साल 2005 में मुख्तार मऊ में दंगा कराने के आरोप में गाजीपुर जेल चले गए तो कृष्णानंद राय लापरवाह हो गए और बिना बुलेटप्रूफ गाड़ी के चलने लगे. इसी दौरान 29 नवंबर 2005 को बसनियां चट्टी पर उनके काफिले पर एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग की गई, तकरीबन 400 गोलियां चलाई गईं. इसमें भाजपा विधायक कृष्णानंद राय समेत 7 लोग मारे गए. पोस्टमॉर्टम में कृष्णानंद राय के शरीर से 67 गोलियां निकाली गईं थीं. कृष्णानंद राय की चुटिया उस समय बहुत फेमस थी. बताते हैं कि हमलावरों में से एक हनुमान पांडेय ने उनकी चुटिया तक काट ली थी. इसके बाद मुख्तार का जेल से ही एक ऑडियो सामने आया था जिसमें वो एक माफिया को बता रहा था कि चुटिया काट लिहिन. इसके बाद मुख्तार की दशहत पूरे पूर्वांचल में फैल गई.

जेल से राज चलने लगा. 2017 में योगी सरकार बनने के बाद मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कसना शुरू हुआ और कई मामलों में सजा हुई. गुरुवार को हार्ट अटैक पड़ने के बाद बांदा के मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई. बहरहाल मौत से पहले और अब सुपुर्द-ए-ख़ाक होने तक मुख़्तार अंसारी क़िस्सों की ऐसी किताब हैं, जिसके पन्ने लंबे वक़्त तक पलटते रहेंगे. ज़हन में सवाल कौंधता रहेगा कि मुल्क की आज़ादी में अपना ख़ून लगा देने वाले पुरवक़ार ख़ानदान का नौजवान जराइम की दुनिया का ख़ौफनाक नाम क्योंकर बन गया.