द लीडर : मुसलमानों के धार्मिक और शैक्षिक इदारे (Institutions) मस्जिद-मदरसों पर आतंकवाद का लेवल चस्पा करने की किस कदर बेताबी है. इटावर की खुलफा-ए-राशिदीन मस्जिद इसकी ताजा मिसाल के तौर पर सामने आई है. नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (NIA) ने इस आलीशान मस्जिद के निर्माण में टेरर फंडिंग का आरोप लगाकर, जिन पांच लोगों को गिरफ्तार किया था. तीन साल बाद एनआइए की स्पेशल कोर्ट ने पांचों आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया है. (Khulfa Rashideen Mosque NIA)
इटावर, हरियाणा के पलवल इलाके में पड़ता है. जहां तब्लीगी जमात का सबसे बड़ा मरकज स्थापित किया जा रहा था. साल 2018 में एनआइए ने यहां छापा मारा. इल्जाम ये लगा कि आइएसआइ जैसे आतंकी संगठनों की आर्थिक मदद से इसका निर्माण किया जा रहा है. जहां मुसलमानों के आतंकी जेहन बनाए जाएंगे. यानी एक तरह से इस इलाके में आतंक की नर्सरी तैयार होगी.
एनआइए ने 2 जुलाई 2018 को दिल्ली हेड क्वार्टर में भारतीय दंड संहिता, आइपीसी की धारा-120बी और 121 के तहत एफआइआर दर्ज की. गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA)की धारा 17, 18, 21, 38 और 40 लगाई.
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इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया. जिसमें मौलाना सलमान, गुजरात से आरिफ धर्मपुरिया, मुहम्मद हुसैन मौलानी, सज्जाद अहमद वानी और सलीम मामा शामिल हैं. ये पांचों लोग पिछले तीन साल से जेल में बंद हैं. सज्जाद अहमद वानी जोकि कश्मीर से हैं और सलीम मामला. इन दोनों पर हवाला के जरिये फंडिंग को मस्जिद प्रबंधन तक पहुंचाने का आरोप था. (Khulfa Rashideen Mosque NIA)
एनआइए के दावों पर मीडिया ने मस्जिद को आतंकी ठिकाने के तौर पर पेश किया. वैसे मीडिया की ये फितरत भी है. जिसमें वो मस्जिद, मदरसे और मौलवियों को आतंकी के तौर पर देखती और दिखाती है. बहरहाल, मस्जिद पर लगे संगीन आरोपों से पूरे इलाके के मुसलमानों में दहशत और डर का माहौल पैदा हो गया. टीवी चैनलों पर बहसें छिड़ गईं.
इस हलचल के बीच दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान ने एक शानदान काम किया. वो ये कि इस मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की. जिसमें एसी माइकल, एडवोकेट अबू बकर सब्बाक, गुरमिंदर सिंह और ओवैस सुल्तान खान को जांच की जिम्मेवारी सौंपी.
आयोग की टीम ने मस्जिद पर लगे तमाम इल्जामों को गहराई से पड़ताल की. मस्जिद गए. लेनदेन से लेकर हर पहलु को खंगाला. और एक ठोस-मजबूत फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के सुपुर्द कर दी.
जांच टीम के सदस्य और मानवाधिकार अधिवक्ता अबू बकर सब्बाक ने ‘द लीडर’ को बताया, जांच में ये सामने आया कि एनआइए ने इस प्रकरण में बुनियादी प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया. यहां तक कि मस्जिद के हिसाब-किताब से जुड़े जो भी दस्तावेज थे. सब कब्जा लिए और कोई कॉपी तक नहीं दी. एक तरीके से मनगढ़ंत स्क्रिट लिखी गई थी.
अल्पसंख्यक आयोग की यही जांच रिपोर्ट अदालत में मस्जिद को आरोपों से छुटकारा दिलाने और आरोपियों को बचाने का आधार बनी है. अबू बकर सब्बाक बताते हैं कि आयोग की जांच रिपोर्ट में जो भी तथ्य रखे गए थे. वे अदालत की सुनवाई में मील का पत्थर साबित हुए. एनआइए की विशेष अदालत ने पांचों आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया है. और वह जल्द ही जेल से बाहर आ जाएंगे.
अल्पसंख्यक आयोग कैसे काम करें-इसकी भी मिसाल
खुलफा राशिदीन मस्जिद हो या फिर दिल्ली दंगा. दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने दोनों मामलों में जो फैक्ट फाइंडिंग करके जांच रिपोर्ट तैयार कराई हैं. वो बेगुनाहों को राहत और पीड़ितों को न्यायल दिलाने में बेहद मददगार साबित हो रही हैं.

एडवोकेट अबू बकर सब्बाक कहते हैं कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान एक नजीर पेश की है कि, आयोग को किस तरीके से काम करना चाहिए. उसी का नतीजा है कि आज पांच बेगुनाहों को इंसाफ मिला है. (Khulfa Rashideen Mosque NIA)