द लीडर हिंदी,लखनऊ। देश में नई शिक्षा नीति लागू होने जा रही है सुनने में आ रहा है कि इससे आमूलचूल परिवर्तन आएंगे लेकिन व्यवस्थाएं तब तक नहीं सुधर सकती जब तक शिक्षकों की स्थिति में सुधार ना हो पहले तो बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती है लेकिन जब शिक्षकों को वेतन देने की बात होती है तो बजट का अभाव बताया जाने लगता है।
जनसंख्या के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का भी हाल काफी बुरा है। यहां पर नियमित शिक्षक ना रख कर ऐसे शिक्षक रखे जाते रहे हैं जिनको बहुत ही कम वेतन देना पड़ता है ।शिक्षक भी नियमित होने की आस में काम करते रहते हैं। अंत में उन्हें उम्र के उस पड़ाव पर निराशा हाथ लगती है ।जब वो और किसी क्षेत्र में जाने की अवस्था में नहीं होते। प्रदेश में शिक्षा मित्र अनुदेशक वित्तविहीन शिक्षक तदर्थ शिक्षक तदर्थ शिक्षक अवैतनिक यह तमाम व्यवस्थाएं बनी हुई हैं जिसमें शिक्षक काम तो करते है लेकिन उन्हें उतना वेतन नही मिलता या वेतन नहीं ही मिलता।
तदर्थ शिक्षक अवैतनिक जिसे आप समझ सकते है की बिना वेतन के काम करने वाला शिक्षक ।अब सोचिए इन शिक्षकों के परिवार का भरण पोषण कैसे होता होगा। साइंस और मैथ के शिक्षक तो ट्यूशन पढ़ा के कुछ जीविकोपार्जन भर का कमा भी लेते हैं। लेकिन अन्य विषयों के शिक्षकों की स्थिति तो बहुत ही खराब है। प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में एक ऐसी व्यवस्था बनी हुई है ।जिसमें नियमित शिक्षक ना होने के अभाव में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति की जाती रही है ।लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद तदर्थ शिक्षकों को नौकरी से हटाए जाने की बात की जा रही है या इन शिक्षकों को प्रदेश सरकार द्वारा निकाली गई भर्तियों को पास करके शिक्षक बने रहने की अनुमति होगी ।
नौकरी जाने की मानसिक प्रताड़ना झेल रहे तदर्थ शिक्षकों के संगठन का दावा है की 16 से अधिक शिक्षकों की बीते दिनों हृदयाघात या अन्य समस्याओं से मौत हो गई। प्रदेश सरकार के मंत्रियों से लेकर संगठन तक इनको आश्वासन दिया जा रहा है की कुछ बेहतर होगा लेकिन पिछले 2 सालों से ये बिना वेतन के लगातार इस आस में काम कर रहे हैं की कभी ना कभी इनको भी नियमित शिक्षक के बराबर सुविधाएं मिलेगी।
शिक्षकों की अगर माने तो पिछले 2 सालों से उनको वेतन नहीं मिला जबकि कुछ जिलों में तदर्थ शिक्षकों को वेतन दिया गया ऐसे में कोर्ट ने भी आदेश दिया की जिस आधार उन शिक्षकों को वेतन दिया जा रहा है इन्हें भी वेतन दिया जाए। वही नियमितीकरण को लेकर भी तदर्थ शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा की पत्नी वंदना शर्मा को भी नियमित किया गया जब डिग्री कॉलेज में शिक्षकों को नियमित किया जा सकता है तो माध्यमिक विद्यालयों में क्यों नहीं ।
बात कर लेते हैं समस्या क्या है ?समस्या दरअसल व्यवस्थाओं में ही हैं ऐसी व्यवस्थाएं क्यों बनाई जाती हैं जिनको लेकर आगे समस्याओं का अंबार लग जाए ।अगर अब ये शिक्षक अयोग्य है तो क्या प्रदेश में अब तक अयोग्य शिक्षक पढ़ा रहे थे?
यदि ये शिक्षक अयोग्य थे तो इनका चयन क्यों किया गया ? सरकारी कभी-कभी अपने थोड़े फायदे के लिए समाज का बड़ा नुकसान कर देती है ।ऐसा ही शिक्षा व्यवस्था में नियमित शिक्षकों के ना होने के कारण हो रहा है ।शिक्षा जो मूलभूत सुविधा होनी चाहिए उसको लेकर सरकार को सजग होना ही पड़ेगा क्योंकि इस तरह की व्यवस्थाओं से शिक्षकों का मानसिक शोषण होता है ।जिससे वे अपने कार्य पर फोकस नही कर पाते।और एक सच ये भी है कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था इन्हीं शिक्षकों के कंधे पर है क्योंकि प्रदेश की शिक्षक भर्तीयो से सभी भलीभांति परिचित हैं प्राइमरी की दो हजार अट्ठारह की निकाली गई शिक्षक भर्ती अभी तक पूरी नहीं हो पाई है तो टीजीटी और पीजीटी की भर्तियों की स्थिति तो इससे भी बुरी है।