द लीडर : सुप्रीमकोर्ट ने हरियाणा के नुंह जिले में कथित तौर पर धर्मांतरण और महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (SIT)गठित किए जाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है. मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अध्यक्षा वाली पीठ ने सोमवार को इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है. सर्वोच्च अदालत का ये फैसला ऐसे समय आया है, जब हरियाणा, यूपी समेत कुछ अन्य राज्यों में हिंदुओं के कथित धर्मांतरण का मुद़दा राजनीतिक तूल पकड़ रहा है.
दरअसल, मीडिया में ऐसी खबरें हैं कि हरियाणा के नुंह जिले में कथित रूप से हिंदुओं के बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया गया है. इसी को लेकर सुप्रीमकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें धर्मांतरण की एसआइटी जांच कराने की मांग की गई थी. याचिका पर चीफ जस्टिस ने कहा कि, ‘ हम समाचार पत्र और मीडिया रिपोर्टों के आधार पर याचिका पर विचार नहीं कर सकते हैं.’
Supreme Court dismisses a plea seeking setting up of a special investigating team (SIT) to probe alleged forceful conversion of Hindus & crimes against women of the Hindu community in Nuh district of Haryana.
A bench headed by CJI NV Ramana refuses to entertain the plea. pic.twitter.com/9YaUcHeTP1
— ANI (@ANI) June 28, 2021
रंजना अग्निहोत्री की ओर से अदालत में ये याचिका दाखिल की गई थी. जिसमें आरोप लगाया था कि तबलीगी जमात के कारण नुंह में मुसलमानों का दबदबा और संख्या दोनों बढ़ रही है. और हिंदुओं की संख्या में तेजी से गिरावट देखी जा रही है. उन्होंने दावा किया था कि साल 2011 की जनगणना के आधार पर हिंदुओं की संख्या 20 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत रह गई है.
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यूपी पुलिस ने किया धर्मांतरण गिरोह-विदेशी फंडिंग का दावा
उमर गौतम पर नोयडा में धर्मंतारण का आरोप है. जिसमें कहा गया है कि करीब 1000 से ज्यादा गरीब हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें मुसलमान बनाया गया है. और इस गिरोह में करीब 100 लोग तक शामिल होने का दावा किया गया है. हालांकि उमर के परिवार ने पुलिस के इन दावों और आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है.
लेकिन ये मामला सामने आने के बाद से मीडिया में छाया हुआ है. इसको लेकर जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने भी मीडिया को जमकर लताड़ लगाई थी. उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि मुसलमानों के साथ किसी मामले को लेकर मीडिया ट्रायल का चलन खतरनाक है. और इसे उससे बाज आना चाहिए.
कई मामलों में ये देखा गया है कि अदालत से पहले मीडिया जज की भूमिका निभाते हुए आरोपी मुसलमानों को दोषी ठहराने लग जाता है. महमूद मदनी ने इस मामले में अदालत से भी मीडिया ट्रायल पर रोक लगाए जाने की गुहार लगाने की बात कही थी.
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बहराहाल, उमर गौतम मामले में जांच जारी है. और कई जगहों पर दबिश के साथ पूछताछ की जा रही है. इस बीच जमीयत उलमा-ए-हिंद ये ऐलान कर चुका है कि संगठन उमर गौतम की अदालत में पैरवी करेगा. और अगर वह दोषी हैं, तो उन्हें कोर्ट से सजा मिलेगी. लेकिन लोकतंत्र में न्याय का हक हर एक नागरिक को है. और उसके न्याय के हित की रक्षा की जानी चाहिए.