कहानी 5 युवा स्वतंत्रता सेनानियों की, जो देश पर हो गए कुर्बान…

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देश को आज़ाद हुए 77 साल बीत गए, आज हम आज़ाद है आज़ादी से वतन में सांस ले रहे है. क्यूंकि इसी आज़ादी के लिए न जाने कितने लोगों ने अपनी जान भी दांव पर लगा दी और आज भी सरहद पर तैनात देश के सैनिक हमारी सुरक्षा के लिए सरहद पर अपनी जान की परवाह किये बगैर देश की रक्षा करते है, और हस्ते हस्ते कुर्बान हो जाते है. 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के चंगुल से देश आजाद हुआ था. कई दशकों की लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद देश को आजादी मिली. स्वतंत्रता सेनानियों ने इस लड़ाई में लाठियां खाईं, तकलीफें झेलीं, लेकिन देश और देश के तिरंगे को कभी झुकने नहीं दिया. जिस उम्र में लोग घर बसाने के सपने देखते हैं, उस उम्र में युवाओं ने सीने पर गोलियां खाईं. वही कई स्वतंत्रता सेनानियों ने खुशी-खुशी देश के नाम अपने पूरे जीवन को कुर्बान कर दिया. आज हम ऐसे ही पांच युवा स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी बताएंगे, जिन्होंने बहुत कम उम्र में देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी.

मंगल पांडे का देश के प्रति जुनून

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में मंगल पांडे स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे पहले हीरो हैं, जिन्होंने महज 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए, फिर बंगाल के बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना में एक सिपाही बने. और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और वतन के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए.

जलियांवाला बाग हत्याकांड ने बदली भगत सिंह की जिंदगी

अंग्रेजी हुकूमत के ख़राब दिन और जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भगत सिंह की जिंदगी पर काफी असर होना, इसके बाद उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर नौजवान भारत सभा की शुरुआत की और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े, और 1922 में चौरी-चौरा कांड में जब महात्मा गांधी ने ग्रामीणों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह निराश हो गए. तब वह चंद्रशेखर आजाद के गदर दल में शामिल हो गए. और अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी. इसके बाद काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल समेत चार क्रांतिकारियों को फांसी और 16 को आजीवन कारावास की सजा मिलने पर भगत सिंह भड़क गए और बाद में उन्होंने चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में बदला जिसका उद्देश्य आजादी के लिए नए युवाओं को तैयार करना था. जिसके बाद भगत सिंह लगातार अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग लड़ते गए और फिर क्रन्तिकारी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल एसेंबली के सभागार में बम फेंकते हुए क्रांतिकारी नारे लगाए जिसके बाद भगत सिंह वह से भागे नहीं, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और फिर 23 साल की उम्र में भगत सिंह को फांसी हो गयी.

चंद्रशेखर आजाद से जुड़ा काकोरी कांड

अग्रेजों द्वारा आज़ाद कह कर बुलाये गए चंद्रशेखर आजाद 14 साल की उम्र में मध्य प्रदेश से आजाद बनारस आ गए, और कुछ साल बाद ही कानून भंग आंदोलन में शामिल हो गए. 1920-21 में आजाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े।,बाद में क्रांतिकारी फैसले खुद से लिए।, 1926 में काकोरी ट्रेन कांड, फिर वाइसराय की ट्रेन को उड़ाने का प्रयास, 1928 में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की और उसके बाद वो अंगेजों की आँखों में खटकने लगे उन्हें पकड़ने के लिए घेराबंदी भी की गयी, आज़ाद ने लगातार अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस से लोहा लिया और जब आखिरी में एक गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथो मरने से बेहतर खुद को गोली मार ली और महज 25 साल की उम्र में शहीद हो गए.

हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने राजगुरु

देश के लिए काम उम्र में कुर्बान होने वाले युवा क्रांतिकारियों राजगुरु भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद से प्रभावित होकर उनके साथ आ उनकी क्रन्तिकारी पार्टी में शामिल हो गए. राजगुरु आज़ाद के साथ अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स की हत्या में शामिल हुए एसेंबली में बम ब्लास्ट करने में भी राजगुरु ने हिस्सा लिया और 23 साल की उम्र में भगत सिंह के साथ राजगुरु को भी फांसी दे दी गई.

सॉन्डर्स की मौत बदला लेने पहुंचे सुखदेव

बचपन से अंग्रेजो के जुल्म को सहन न करना उनपर पलटवार करना कुछ ऐसे थे सुखदेव जो शुरुआत से ही लाला लाजपत राय से काफी प्रभावित थे. उन्हीं के जरिए सुखदेव चंद्रशेखर आजाद से मिले और उनकी टीम में शामिल हो गए, लेकिन लाला लाजपत राय की मौत से गुस्साएं चंद्रशेखर आज़ाद अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स की मौत की योजना बनाई जिसमे सुखदेव भी शामिल हुए, सॉन्डर्स को मौत के घाट उतारा और जेल में रहते हुए भी सुखदेव ने राजनीतिक बंदियों के साथ किए जा रहे व्यवहार के खिलाफ आंदोलन चलाया और फिर 23 मार्च 1931 में भगत सिंह, राजगुरु के साथ सुखदेव को भी फांसी दे दी गयी. तब उनकी उम्र महज 23 साल की थी.