दिनेश जुयाल
हिमालय के नंदादेवी क्षेत्र से ताजा खबर है कि 7 फरवरी को तबाही मचाने वाली ऋषिगंगा का पानी इसके उद्गम से कुछ ही दूर करीब तीस मीटर ऊंची और काफी लंबी झील के रूप में जमा होने के बाद अब रिसने भी लगा है।
बताते हैं कि सरकार ने मौके का हेली सर्वे किया है लेकिन यह जानकारी सरकारी नहीं बल्कि क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से जान जोखिम में डाल कर 11 फरवरी को झील से कुछ दूर तक जा पहुंचे गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञानी डा. नरेश राणा ने वीडियो जारी कर दी है।
सबसे पहले वहां के एसडीएम को सूचना देने साथ उन्होंने खबरदार कर दिया है कि अगर यहां से धीरे धीरे पानी निकासी के लिए उपाय नहीं किए गए तो स्थति भयावह हो सकती है। इधर संभवत झील का पानी रिसने से गुरुवार को राहत कार्य में लगे लोगों में दहशत हुई। गुरुवार शाम तक सरकार के स्तर से कोई एलर्ट जारी नहीं किया गया था।
9 फरवरी को सेटेलाइट से दो तस्वीरें मिलने के बाद साफ हो गया था कि हादसा एक हैंगिंग ग्लेशियर का टुकड़ा गिरने से हुआ। कई मीटर चौड़ा यह टुकड़ा लगभग खड़े पहाड़ से नीचे आते समय एक खाई बनाते हुए और वहां एकत्र ताजा बर्फ और छोटी वाटर वाडीज को समेटते हुई बहुत वेग से नीचे आता गया और इस बाढ़ का कारण बना।
सैटेलाइट तस्वीर ने खोला रहस्य, इस तरह ऋषि गंगा में पहुंची तबाही, जानिए कैसे
नंदा देवी पर्वत की कंदराओं में छुपी झील
डा. नरेश राणा की ग्राउंड रिपोर्ट से साफ हो रहा है कि 7 फरवरी को जो ग्लेशियर का बड़ा टुकड़ा गिरा वह दरअसल रौंठी पीक से इसी नाम के ग्लेशियर का हिस्सा था और यहां से जो जल प्रवाह होता है उसका नाम रौंठी गाड़ है जो लगभग 70 से 80 डिग्री की ढलान पर नीचे आकर ऋषिगंगा में मिलता है और यहां से आगे इस नदी के प्रवाह का नाम ऋषिगंगा ही है।
इन दोनों सरिताओं के संगम स्थल पर ऋषिगंगा की तरफ ऊपर से आए मलबे का एक पहाड़ सा जमा हो गया है जिसने चार दिन से ऋषिगंगा की मुख्य धारा को बांध रखा है। जाहिर है बड़ी मात्रा में मलबा उस दिन नीचे भी आया। बहुत संभव है कि चोटी से गिर कर आया ग्लेसियर का टुकड़ा भी वहीं पर अटका हो।
अब अगर इस मलबे के पहाड़ की मोटाई कम हुई तो उसका धमाके के साथ टूटना संभव है लेकिन इस क्षेत्र का गहन अध्ययन करने वाले डा. नवीन जुयाल का मानना है कि रिसाव धीरे धीरे होने की उम्मीद अधिक है।
इस नई बनी झील की लंबाई का अभी अंदाजा नहीं लग पा रहा है क्योंकि नंदा देवी पर्वत माला की बनावट कुछ ऐसी है कि यहां बहुत ऊंची और लंबी कंदराएं हैं और जिस जगह तक डा. नरेश राणा पहुंच पाए हैं, वहां से पहाड़ के पीछे देखना संभव नहीं है। अगर मौके का हेली सर्वे कराया गया है तो हकीकत सरकार को पता होगी लेकिन इसे अभी बताया नहीं गया है।
हिमालय के जख्मों पर पर्देदारी
डा. नवीन जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिक भी इसे रहस्य बनाए रखने पर ताज्जुब जाहिर कर रहे हैं। यहां एक उल्लेखनीय बात और पता चली है कि उत्साही वैज्ञानिक डा. नरेश राणा ने प्रभावित क्षेत्र तक पहुंचने के लिए प्रशासन से मदद मांगी थी लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी, बाद में डा. नवीन ने उनके लिए लाजिस्टिक की व्यवस्था की।
उनके विभागाध्यक्ष डा. सुंद्रियाल श्रीनगर से ही उन्हे गाइड कर रहे हैं और प्रशासन को भी इस बारे में जानकारी दे रहे हैं।। सवाल तो उठता है कि आखिर सरकार हिमालय के इन जख्मों को भी क्यों छिपाना चाहती है जिनका समय पर उपचार ही सबके हित में है।
ऋषिगंगा की बाढ़ : घायल हिमालय की एक और चीत्कार और चेतावनी
मौनी अमावस्या पर हरिद्वार पहुंची ऋषिगंगा की गाद
मौनी अमावस्या पर श्रद्धालु मुंह अंधेरे हरिद्वार के घाटों पर पहुंचे तो सीढ़ियों पर रपटन थी। दरअसल रात ऊपर से बह कर आयी गाद वहां बिछ गई थी और पानी भी बरसात के दिनों जैसा गंदैला था। हर की पैड़ी तक आने वाले चैनलों में पानी की मात्रा भी कम थी।
कारण पता करने पर ज्ञात हुआ कि गंगनहर में गाद भरने के खतरे को देखते हुए रात 11 बजे उसे बंद कर देना पड़ा था। ऋषिगंगा की बाढ़ की सूचना पर पहले टिहरी झील की निकासी रोकी गई और उधर श्रीनगर बांद समेत नीचे के जलाशय खाली किए गए ताकि ऊपर से बाढ़ आने पर कुछ पानी वहां रोका जा सके। वहां भी पानी अधिक हो जाने पर इसे खोला गया तो ऋषिगंगा की गाद बुधवार की रात तक हरिद्वार पहुंच पायी।
(लेखक अमर उजाला और हिंदुस्तान समाचारपत्रों के संपादक रहे हैं और हिमालयी मामलों के जानकार हैं)