समुद्र में डूबी द्वारका में पीएम मोदी ने लगाई श्रद्धा और आस्था की डूबकी, मोर पंख किये अर्पित

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द लीडर हिंदी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात दौरे का आज यानी (25 फरवरी) को दूसरा दिन है.अपने दौरे के दौरान पीएम मोदी ने सुदर्शन सेतु का लोकार्पण किया.4150 करोड़ के प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया. प्रधानमंत्री ने द्वारकाधीश मंदिर में पूजा अर्चना की. साथ ही द्वारका में PM मोदी ने श्रद्धा और आस्था की डूबकी लगाई.

इस दौरान उन्होंने गहरे समुद्र में पानी के अंदर डुबकी लगाई. साथ ही उस स्थान पर प्रार्थना की जहां जलमग्न द्वारका शहर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है, कि पानी में डूबी द्वारका नगरी में प्रार्थना करना बहुत ही दिव्य अनुभव था. मुझे आध्यात्मिक वैभव और शाश्वत भक्ति के एक प्राचीन युग से जुड़ाव महसूस हुआ

द्वारका नगरी के दर्शन के बाद पीएम मोदी ने कहा कि ये सिर्फ समुद्र में एक डुबकी नहीं थी बल्कि समय यात्रा थी. प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘पानी में डूबी द्वारका नगरी में प्रार्थना करना आलौकिक अनुभव रहा. मुझे आध्यात्मिक वैभव और शाश्वत भक्ति के एक प्राचीन युग से जुड़ाव महसूस हुआ. भगवान श्रीकृष्ण हम सभी को आशीर्वाद दें.

द्वारका नगरी को अर्पित किए प्रधानमंत्री ने मोर पंख
गुजरात दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा द्वारका नगरी के दर्शन से भारत की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक जड़ों का दुर्लभ और गहरा संबंध अनुभव हुआ. द्वारका नगरी भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है और कभी भव्यता और समृद्धि का केंद्र थी. प्रधानमंत्री ने कहा यह सिर्फ पानी में एक डुबकी ही नहीं थी बल्कि समय यात्रा थी, जो नगरी के गौरवशाली अतीत और हिंदू धर्म के सबसे प्रतिष्ठित देवताओं में से एक के साथ इसके जुड़ाव को दर्शाती है.

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प्रधानमंत्री ने आस्था के तहत द्वारका नगरी को मोर पंख भी अर्पित किए.वही प्रधानमंत्री मोदी ने बाद में द्वारका में एक जनसभा को संबोधित किया.संबोधन के दौरान पीएम ने कहा कि ‘आज जो मैंने अनुभव किया, वो हमेशा मेरे साथ रहेगा. मैं समुद्र के भीतर गया और प्राचीन द्वारका नगरी के दर्शन किए। पुरातत्वविदों ने द्वारका के बारे में काफी कुछ लिखा है. हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी बताया गया है कि द्वारका में ऊंची ऊंची इमारतें थी और सुंदर दरवाजे थे.

समुद्र के भीतर मैंने दिव्यता का अनुभव किया. मैंने द्वारकाधीश के सामने शीश झुकाया. मैं मोर के पंख भी अपने साथ लेकर गया था और उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित किया. मैं हमेशा से वहां जाने का इच्छुक था और द्वारका नगरी के अवशेषों को छूना चाहता था, आज मैं भावुक हूं क्योंकि मेरा दशकों पुराना सपना पूरा हो गया है.