अतीक खान
आजाद औरतें, रूढ़िवादी-पितृसत्ता वाली सोच के लिए एक ऐसा डरावना ख्वाब है, जिसे हकीकत में बदलते देखना इसे बर्दाश्त नहीं. औरतों की फटी जींस से इस सोच का दम घुटता है. बुर्के पर तमाशा आम है. लड़िकयां, किससे प्यार करेंगी और शादी. ये सब पुरुषों की जागीर वाले फैसले हैं. ऐसी सूरत में चंद औरतें सड़कों पर आजादी मांगने निकल पड़ें, तो भला कैसे कोई समाज इसे स्वीकार करेगा. (Pakistan Islam Woman Protest)
कम से पाकिस्तान जैसे देश में तो हरगिज नहीं. इसलिए आजकल इस्लामाबाद से लेकर लाहौर तक बस एक ही बात पर हल्ला मचा है. वो ये कि अंतरराष्ट्रीय दिवस पर जिन औरतों ने औरत मार्च निकाला था. उनके मार्च में इस्लाम की तौहीन की गई है. इसलिए इस मार्च के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा. सो, पेशावर की एक अदालत में औरत मार्च के आयोजक के खिलाफ इस्लाम की तौहीन का मुकदमा दायर किए जाने के लिए याचिका दाखिल की गई है.
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‘औरत आजादी मार्च इस्लामाबाद’ नाम से एक ट्वीटर हैंडल है, जो 2019 में बना है. ये औरत मार्च के ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल के रूप में इस्तेमाल होता है. इसमें पाकिस्तान की पूंजीवादी पितृसत्ताक सोच के खिलाफ संघर्ष का संदेश है. औरत मार्च पर जब बखेड़ा मचा तो इसी हैंडल से एक पत्र जारी किया गया है, जिसमें सफाई दी गई कि मार्च में इस्लाम या देश विरोधी कोई गतिविधि नहीं हुई है. और सारे इल्जाम बेबुनियाद हैं.
पाकिस्तान में महिलाओं की हालत
पाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति को लेकर काम कर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता अनिल गुलजार ने अपने एक लेख में 2018 की एक रिपोर्ट का जिक्र किया है. जो ‘पाकिस्तान और चीन में महिलाओं की जिंदगी’ शीर्षक से है. उसमें ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि पाकिस्तान महिलाओं के मामले में दुनिया के सबसे खराब देशों में से छठे स्थान पर है. जबकि लैंगिक भेदभाव के लिए दूसरे नंबर पर है.
पाकिस्तान के ही व्हाइट रिबन एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि है कि यौन हिंसा पर बात करना पाकिस्तान में गुनाह माना जाता है. इसमें कहा गया है कि 2004 से 2016 के बीच करीब 47 हजार महिलाएं यौन हिंसा का शिकार बनीं. इस बीच 5500 महिलाओं का अपहरण हुआ है. महिला अपराध में सजा की दर भी काफी कम है. महज 2.5 प्रतिशत मामलों में ही कोर्ट से सजा तय हो पाती है.
इस्लाम-देश विरोधी गतिविधि का आरोप
पाकिस्तान की टीवी चैनल जी-न्यूज के मुताबिक, हर साल की तरह इस बार भी 8 मार्च को औरत मार्च निकला था. इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया. इसमें एक औरत के हाथ में पोस्टर था. जिसमें लिखा था कि जब वह 9 साल की थीं, तब एक 50 साल के शख्स ने उनका उत्पीड़न किया था. और आज वो व्यक्ति एक धार्मिक शख्सियत के तौर पर पहचाना जाता है.
इस पोस्टर को ऐसे प्रचारित किया जा रहा कि महिला ने अपने यौन उत्पीड़न के अपराधी के साथ उसकी मजहबी पहचान का तथ्य जोड़कर इस्लाम का अपमान कर दिया है. सिर्फ इस एक बात पर कि यौन उत्पीड़न करने वाला शख्स आज मजहब की आड़ में छिपा है, तो उसके गुनाहों का गुमनामी के साथ जिक्र भी अपराध होगा. दूसरा पोस्टर वूमेन डेमोक्रेटिक फ्रंट के झंडे को लेकर है, जिसे फ्रांस का झंडा बताकर देश विरोध होने का इल्जाम लगाया जा रहा है.
न्यूज चैनल के अनुसार देश में जब महिला अपराध, सुरक्षा पर बात होनी चाहिए थी. वो न होकर औरतों को इस्लाम और देश विरोधी ठहराए जाने पर हो रही है. इस अभियान में मीडिया का एक बड़ा वर्ग, बड़े पत्रकार और राजनीतिक-धार्मिक लोग शामिल हैं.
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औरत मार्च की ओर से जारी प्रेस नोट में कहा गया है कि वो केवल औरतों और बच्चियों के खिलाफ होने वाले जुल्म पर रोक के लिए संघर्ष कर रही हैं. वो चाहती हैं कि समाज में होने वाली ऐसी घटनाएं बंद हों और औरतों सुरक्षित रहें. ये उनका अधिकार है.
जियाउल हक के शासन में इकबाल बानों की बगावत
पाकिस्तान में औरतों की आजादी या इंकलाब के प्रति उनके हौसले की ये कोई दास्तां नहीं है. 1985 में जनरल जियाउल हक का शासन में औरतों के साड़ी पहनने पर पाबंदी लगा दी गई थी. ये वो दौर था जब पाकिस्तान में जिया शासन के खिलाफ कोई तेज आवाज में बात करने से भी डरता था. तब एक मशहूर अदाकारा इकबाल बानों ने काली सड़ी पहनकर लाहौर के स्टेडियम में फैज की नज्म पढ़कर विरोध दर्ज कराया था. वो नज्म है, हम भी देखेंगे…