द लीडर : उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार के मंत्रियों के बीच जारी विकास की बहस दिलचस्प हो चली है. दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया बहस की चुनौती स्वीकार करते हुए मंगलवार को लखनऊ आ धमके. आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह ने सिसौदिया का स्वागत करते हुए ट्वीट किया,’मुस्कुराइये कि आप लखनऊ में हैं दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री. केजरीवाल बनाम योगी मॉडल की बहस में शामिल होने लखनऊ पहुंचे.’ Sisodia Lucknow Debate-Development
दरअसल, पिछले कई दिनों से आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच विकास के मुद्दे पर बहस छिड़ी थी. 17 दिसंबर को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने एक ट्वीट किया. दिल्ली के स्कूलों की प्रकाशित खबरों की कटिंग साझा करते हुए लिखा, ‘डिबेट का निमंत्रण देने से पहले आप अपने स्कूलों की हालत तो ठीक कर लें. यह अरविंद केजरीवाल जी का दूसरा कार्यकाल है.’ Sisodia Lucknow Debate-Development
मंगलवार को दिल्ली सरकार के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने भी एक ट्वीट किया.
केजरीवाल मॉडल बनाम योगी मॉडल पर योगी जी के मंत्री जी द्वारा खुली बहस के आह्वान पर मै आज लखनऊ में रहूँगा. उम्मीद है बहस की चुनौती देने वाले मंत्री @SidharthNSingh योगी जी द्वारा कायाकल्प किए 10 स्कूलों की लिस्ट लेकर ज़रूर आएँगे जहां इंफ़्रास्ट्रक्चर, रिज़ल्ट आदि में सुधार हुए हों
अब देखना ये है कि दो राज्य सरकारों के मंत्री विकास के मुद्दे पर बहस करेंगे. या ट्वीटर पर शुरू हुई ये जुबानी जंग महज राजनीतिक जुमलेबाजी के रूप में खत्म हो जाएगी. बहरहाल, इतना जरूर है कि यूपी के विकास के मॉडल को चुनौती देकर आम आदमी पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव में यूपी में दम भरने का संदेश दे दिया है. Sisodia Lucknow Debate-Development
द लीडर : समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और रामपुर से सांसद आजम खान की बीवी डॉ. तंजीम फातिमाजेल से रिहा हो गई हैं. वह पिछले करीब दस महीने से जेल में बंद थीं. अदालत से सभी मामलों में जमानत मिलने के बाद सोमवार को उनकी रिहाई का परवाना सीतापुर जेल पहुंचा, जहां वह बंद थीं. हालांकि सांसद आजम खां और बेटे अब्दुल्ला आजम खान को अभी सभी मामलों में जमानत नहीं मिली है. (Azam Khans Tanzeem Fatima )
डॉ. तंजीम फातिमा रामपुर शहर से विधायक हैं. स्वार सीट से विधायक रहे बेटे अब्दुल्ला आजम खान के दो जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के मामले में आजम खान और अब्दुल्ला आजम के साथ उनके विरुद्ध भी मामला दर्ज हुआ था. इसी साल 24 फरवरी को अदालत ने तीनों के विरुद्ध गैरजमानती वारंट जारी किया. इसके बाद आजम खां, बीवी और बेटे के साथ अदालत में हाजिर हुए. कोर्ट ने इनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए जेल भेजने का आदेश दिया था. पहले तीनों को रामपुर जेल में रखा गया, बाद में इन्हें सीतापुर जेल भेज दिया गया. सोमवार की रात करीब 8 बजे डा. तंजीम जेल से बाहर आईं. Azam Khans Tanzeem Fatima
कांग्रेस नेता और मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने डा. तंजीम की एक तस्वीर शेयर करते हुए राज्य सरकार पर निशाना साधा है. अपने फेसबुक पेज पर उन्होंने लिखा, ‘राजनैतिक दुश्मनी की वजह से बेगुनाह कई महीनों से जेल काटकर निकलीं तंजीम फातिमा की पहली तस्वीर ये है. योगी सरकार ने आजम खान से अपनी खुन्नस में उनकी पत्नी को भी जेल भिजवा दिया था. तमाम राजनैतिक मतभेदों के बावजूद मैं आजम ख्खान पर की जा रही तमाम उत्पीड़न की कार्यवाहियों की भरभूर मजम्मत करता हूं और न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा की गईं रामपुर विधायक तंजीम फातिमा के हौसले की सराहना करता हूं.’
आजम खां पर करीब 83 मामले दर्ज
आजम खान पर करीब 83 मामले दर्ज हैं. इसमें जौहर यूनिवर्सिटी के लिए जबरन जमीन कब्जाने समेत अन्य आरोप शामिल हैं. कई मामलों में उन्हें जमानत भी मिल चुकी है.
एएमयू से पासआउट हैं डा. फातिमा
डॉ. तंजीम फातिमा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एमएयू) से उच्च शिक्षा हासिल की है. वह राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर रही हैं. बाद में राज्यसभा सांसद भी बनीं. हालांकि वर्ष 2019 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा देकर शहर सीट से एमएलए का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. ये सीट उनके शौहर आजम खान के लोकसभा चुनाव लड़ने से खाली हुई थी.
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द लीडर : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का सोमवार को निधन हो गया. एक दिन पहले ही उन्होंने अपना 93वां जन्मदिवस मनाया था. मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा ने अपनी फेसबुक वॉल पर पिता के निधन की जानकारी साझा की है. उनके निधन की सूचना पर प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शोक व्यक्त किया है. Motilal Vora Passed Away
Shri Motilal Vora Ji was among the senior-most Congress leaders, who had vast administrative and organisational experience in a political career that spanned decades. Saddened by his demise. Condolences to his family and well-wishers. Om Shanti: PM @narendramodi
दिल्ली के साउथ एवन्यू आवास पर अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर रखा जाएगा, जहां शाम 6 से 8 बजे तक दर्शन किए जाएंगे. अरुण वोरा ने कहा कि मंगलवार की सुबह पिता का पार्थिव शरीर लेकर दुर्ग स्थित निज आवास के लिए रवाना होंगे. एक पत्रकार के तौर पर करियर शुरू करने वाले मोतीलाल वोरा कांग्रेस पार्टी के स्तंभों में शामिल रहे हैं. Motilal Vora Passed Away
द लीडर : नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर दी है. इससे नेपाल में राजनीतिक बवंडर खड़ा हो गया है. सत्ताधारी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) का एक धड़ा स्वयं संसद भंग किए जाने के कदम के खिलाफ खड़ा है. इसके विरोध में ओली मंत्रीमंडल के सात मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है. वहीं, मुख्य विपक्षी दल नेपाल कांग्रेस (एनसी) ने भी कड़ा एतराज जताते हुए कहा कि संसद भंग करने को संवैधानिक भावना के खिलाफ बताया है. (Political Dissolution Nepal Election)
नेपालमें यह भूचाल ऐसे समय मचा है, जब एक तरफ कोरोना संक्रमण का खतरा बना है तो दूसरी ओर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी दो धड़ों में बंटी है. एक धड़े का नेतृत्व 68 वर्षीय प्रधानमंत्री ओली कर रहे हैं. दूसरे खेमे का नेतृत्व पूर्व प्रधनमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड संभाले हैं. नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रचंड दबाव से बचने के लिए ही ओली ने संसद भंग करने का फैसला लिया है. Political Dissolution Nepal Election
सत्तारूढ़ एनसीपी के प्रवक्ता नारायण श्रेष्ठ ने ओली के इस फैसले को अलोकतांत्रिक और निरंकुश बताया है. इतना ही नहीं एनसीपी की स्थायी समिति की बैठक में भी ओली के निर्णय की आलोचना हुई और प्रधानमंत्री के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किये जाने की सिफारिश की गई है. वहीं, विपक्षी दल एनसी के प्रवक्ता बिस्वा प्रकाश शर्मा की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि, ‘ कोविड-19 महामारी के बीच पार्टी की अंदरूनी कलह से देश को अस्थिर करने की कोशिश निंदनीय है. एनसी, राष्ट्रपति भंडारी से आग्रह करती है कि संविधान के रक्षक के तौर पर इस फैसले को खारिज करें.’Political Dissolution Nepal Election
नेपाल की इस राजनीतिक उथल-पुथल पर भारत और चीन दोनों ही निगाह गढ़ाए हैं. इसलिए क्योंकि ओली का झुकाव चीन की तरफ था. वे इसी वादे के साथ सत्ता में आए थे कि चीन से संबंध मजबूत करेंगे. ताजा घटनाक्रम से भारत को लाभ पहुंचने की संभावना बनी है. इसलिए क्योंकि नेपाल की पूर्ववर्ती सरकारों ने भारत के साथ हमेशा मधुर रिश्ते रखे हैं. जबकि ओली सरकार सीमा विवाद को अक्सर हवा देती रही है. Political Dissolution Nepal Election
अप्रैल-मई में हाेने हैं मध्यावधि चुनाव
-नेपाल की निर्वाचित प्रतिनिधि सभा यानी संसद के निचले सदन में 2017 में 275 सदस्य निर्वाचित हुए थे. नैशनल एसेंबली, उच्च सदन है. राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी एक आदेश के मुताबिक राष्ट्रपति ने 30 अप्रैल को पहले और 10 मई को दूसरे चरण का मध्यावधि चुनाव कराये जाने का ऐलान किया है.
द लीडर : यूरोप में नये सिरे से कोरोना संक्रमण का संकट गहरा रहा है. इस बीच अच्छी खबर ये है कि भारत सरकार अपने नागरिकों को वैक्सीन उपलब्ध कराने के अंतिम चरण पर काम कर रही है. उम्मीद है कि जनवरी में वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी. अब तक यहां संक्रमण के मामले 1 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुके हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन (Dr. Harshvardhan)ने सोमवार को वैक्सीन वितरण पर विस्तार से जानकारी साझा की है. ये साफ करते हुए कि वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर सरकार किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं है. Corona Vaccine Expected January
पहले चरण में 30 करोड़ नागरिकों को कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. राज्यवार इसकी सूची तैयार की जा रही है. विशेषज्ञों का एक समूह इस पर मंथन में जुटा है. शुरुआत में वैक्सीन पाने वालों में 1 करोड़ स्वास्थ्यकर्मी और 2 करोड़ अन्य कर्मचारी शामिल होंगे, जिसमें पुलिस, सुरक्षा, सफाई आदि विभागों के कर्मचारियों चयनित किया जाएगा. स्वास्थ्य मंत्री ने स्पष्ट किया है कि वैक्सीन लेने से इनकार करने वालों पर कोई दबाव नहीं बनाया जाएगा. Corona Vaccine Expected January
उन्होंने कहा कि देश में 1 करोड़ के करीब जो संक्रमण के मामले सामने आए हैं, उनमें 95 लाख से अधिक संक्रमित स्वस्थ हो चुके हैं. यह अच्छी बात है. दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत बेहतरी स्थिति में है. सरकार की कोशिश है कि संक्रमण का विस्तार रोकने के साथ सभी नागरिकों को इस संकट से सुरक्षित रखा जाए. Corona Vaccine Expected January
द लीडर : थौनाओजम बृंदा. ये महिला आइपीएस अफसर, पूर्वोत्तर के मणिपुर राज्य की ‘लेडी सिंघम’ के तौर पर मशहूर हैं. नशे के कारोबारी (ड्रग्स माफिया) का साम्राज्य उखाड़ने का दम रखने वाली बृंदा मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से भी मुचैटा ले चुकी हैं. अब एक बार फिर से वे सुर्खियों में हैं. ड्रग्स के सात आरोपियों के अदालत से आरोपमुक्त होने से आह्त बृंदा ने मुख्यमंत्री को अपना वीरता पुरस्कार लौटा दिया है. IPS Returned Gallantry Award
रविवार को उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर, ‘आगे, मणिपुर के साथ खिलवाड़ न करें’ लिखकर एक बार इस मुद्दे पर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है.
थौनाओजम बृंदा मणिपुर की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP)हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को भेजे पत्र में कहा है कि मुझे नैतिक रूप से यह महसूस हुआ कि मैंने देश की आपराधिक न्यायायिक प्रणाली के अनुसार ड्यूटी नहीं की है. इसलिए खुद को सम्मान के काबिल न समझते हुए राज्य के गृह विभाग को अपना मेडल वापस कर रही हूं. तब से यह मामला सुर्खियों में बना है. IPS Returned Gallantry Award
ये है ड्रग्स का हाईप्रोफाइल मामला
साल 2018 में नारकोटिक्स एंड अफेयर्स ऑफ बॉर्डर ब्यूरो में तैनाती के दौरान ने IPS थौनाओजम बृंदा ने ड्रग्स का एक हाईप्रोफाइल मामला पकड़ा था. इसमें उन्होंने राजनीतिक रसूख वाले लुहखोसेई जोउ समेत कुछ अन्य लोगों को गिरफ्तार किया.
उस ड्रग की कीमत करीब 29 करोड़ रुपये आंकी गई थी. बाद में यह मामला तब सुर्खियों में आया जब बृंदा ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर कर रहा कि जब वो ड्रग माफिया पर कार्रवाई कर रही थीं, तब भाजपा के एक नेता ने मुख्यमंत्री से उनकी फोन पर बात कराई थी. यानी माफिया को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने भी पैरवी की थी. IPS Returned Gallantry Award
मणिपुर में मादक पदार्थों का बड़ा कारोबार फैला है. बृंदा ने नारकोटिक्स एंड अफेयर्स ऑफ बॉर्डर ब्यूरो में तैनाती के दौरान माफिया की नाक में दम कर रखा था. ड्रग की कई बड़ी खेपें पकड़ी और तस्करों को कानूनी सजा दिलाई. इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें 13 अगस्त 2018 को मुख्यमंत्री पुलिस पदक से नवाजा गया था. इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं.
लॉकडाउन उल्लंघन में हो चुकीं गिरफ्तार
इसी साल 13 जुलाई को मणिपुर की राजधानी इंफाल में लागू लॉकडाउन के उल्लंघन के आरोप में इस आइपीएस अफसर को हिरासत में लिया गया था. उनकी हिरासत का मामला जब चर्चा में आया तब विपक्ष ने राज्य सरकार पर निशाना साधा.IPS Returned Gallantry अवार्ड
ये आरोप लगाते हुए कि महिला अधिकारी को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने भाजपा से जुड़े ड्रग माफिया पर शिकंजा कसा था. हालांकि बृंदा को दो घंटे बाद जुर्माने पर रिहा कर दिया गया था. IPS Returned Gallantry Award
सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाली थौनाओजम बृंदा के IPS Returned Gallantry Award फेसबुक पर करीब 40 हजार फॉलोवर्स हैं. उन्होंने मणिपुर के डीएम कॉलेज से जूलॉजी में बीएससी ऑनर्स किया और पुणे यूनिवर्सिटी के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस लीगल स्टडीज से परास्नातक की डिग्री ली.
पिछले एक हफ्ते से भी ज्यादा समय से देश भर के विभिन्न हिस्सों में किसान केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. इसमें पंजाब और हरियाणा के किसानों ने अग्रणी भूमिका निभाई है और वे इसके विरोध में कड़कड़ाती ठंड में भी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर धरना दे रहे हैं.
किसानों का सरकार से मूलभूत सवाल ये है कि क्या किसी किसान आंदोलन में कभी भी ये तीन कानून बनाने की मांग उठी थी? क्या कानून बनाते वक्त किसी किसान संगठन से मशविरा किया गया था? आखिर क्यों आनन-फानन में कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के बीच इन कानूनों को लाया गया? यदि ये कानून किसानों के हित में है, तो क्यों कोई भी बड़ा किसान संगठन इसके पक्ष में नहीं है?
वैसे तो केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत भाजपा के तमाम नेता इन सवालों से बचने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि कानून को लेकर सरकार और किसान के बीच चार राउंड की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई प्रभावी निष्कर्ष नहीं निकल पाया है.
किसानों की मांग है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाए, ताकि कोई भी ट्रेडर या खरीददार किसानों से उनके उत्पाद एमएसपी से कम दाम पर न खरीद पाए. यदि कोई ऐसा करता है तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए.
किसानों का आरोप है कि सरकार इन तीन कानूनों के जरिये एमएसपी एवं मंडियों की स्थापित व्यवस्था को खत्म करना चाह रही है, जिसका फायदा सिर्फ और सिर्फ ट्रेडर्स को होगा और इसके चलते किसान इनकी रहम पर जीने को विवश हो जाएगा.
वहीं सरकार का कहना है यह कानून किसानों को एक मुक्त बाजार मुहैया कराता है, ताकि वे अपनी पसंद के अनुसार अपने उत्पाद बेच सकें. उन्होंने कहा कि एमएसपी खत्म नहीं की जा रही है और मंडियां पहले के अनुसार काम करती रहेंगी.
1. एपीएमसी मंडियों के बाहर कृषि उत्पाद खरीदने की मंजूरी
यह कानून राज्यों के कृषि उत्पाद मार्केट कानूनों यानी कि राज्य एपीएमसी एक्ट्स के तहत बनी एपीएमसी (कृषि उत्पाद विपणन समितियां) मंडियों या बाजारों के बाहर भी किसानों के उपज की बिक्री का प्रावधान करता है. दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्र का ये नया कानून एपीएमसी मंडियों के समानांतर एक अलग खरीद-बिक्री व्यवस्था का निर्माण करता है.
इसके तहत कृषि उपज का राज्यों के बीच और राज्य के भीतर व्यापार किया जा सकता है. ये खरीदी फार्म गेट्स, कारखानों के परिसर, वेयरहाउस, मिलों और कोल्ड स्टोरेज समेत उपज के उत्पादन वाले स्थान या उसे जहां भी जमा किया गया होगा, वहां पर व्यापार किया जा सकता है. सरकार का दावा है कि इन प्रावधानों से किसानों को देश में जहां कहीं भी अच्छा दाम मिलेगा, वो वहां पर अपनी फसल बेच सकेगा.
इससे पहले तक एपीएमसी एक्ट्स के तहत बनीं मंडियां और इसके अंतर्गत मंजूरी प्राप्त अन्य बाजार जैसे कि निजी मार्केट यार्ड्स और मार्केट सब-यार्ड्स, प्रत्यक्ष मार्केटिंग कलेक्शन सेंटर्स और निजी किसान उपभोक्ता मार्केट यार्ड्स वाले स्थानों पर ही कृषि उत्पादों की खरीदी की जा सकती थी.
नए कानून में एक महत्वपूर्ण प्रावधान ये है कि एपीएमसी मंडियों के बाहर व्यापार करने पर किसान और खरीददार में से किसी पर कोई भी टैक्स (मंडी टैक्स) नहीं लगेगा. वहीं इसके उलट एपीएमसी मंडियों में राज्य-वार इस तरह का टैक्स लगता रहेगा.
एक्ट की धारा सात में कहा गया है कि केंद्र सरकार अपने किसी भी केंद्रीय सरकारी संगठन के माध्यम से किसानों की उपज के लिए मूल्य सूचना और मार्केट इंटेलिजेंस सिस्टम (एमआईएस) विकसित कर सकती है और इससे संबंधित सूचना के प्रसार के लिए रूपरेखा तैयार किया जा सकता है.
इसके साथ ही यह कानून कृषि उपज की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की अनुमति देता है. इसके तहत कोई भी किसान उत्पादक संगठन या कृषि सहकारी संघ, कंपनी, पार्टनरशिप फर्म्स या पंजीकृत सोसाइटियां इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और ट्रांजैक्शन प्लेटफॉर्म तैयार कर सकते हैं, जिसके जरिये किसानों की उपज को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और इंटरनेट के जरिये खरीदा और बेचा जा सके तथा उसकी फिजिकल डिलिवरी हो सके.
नए कानून के अनुसार पैनकार्ड धारक कोई भी व्यापारी खरीद कर सकता है. यदि किसान चाहे तो अपनी उपज खेत से सीधे उपभोक्ताओं को बेच सकता है. खरीददार को उसी दिन, या कुछ शर्तों के साथ, तीन दिन के भीतर किसान को भुगतान करना होगा.
इसके अलावा यदि ट्रेडर और किसान के बीच विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है तो सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के यहां आवेदन किया जा सकता है. यदि यहां पर 30 दिन के भीतर विवाद नहीं सुलझता है तो फैसले के खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी (कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित एडिशनल कलेक्टर) के यहां अपील दायर की जा सकती है.
हालांकि इसे लेकर किसी भी सिविल कोर्ट में जाने का अधिकार किसी के पास नहीं होगा.
कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में बुवाई से पहले किसान और खरीददार के बीच एक समझौता किया जाता है, जिसके तहत किसान ट्रेडर या खरीददार को एक पूर्व निर्धारित कीमत पर अपनी उपज बेचता है.
इसमें प्रावधान किया गया है कि किसी कृषि उत्पाद के उत्पादन से पहले किसान और स्पॉन्सर या किसान, स्पॉन्सर और किसी थर्ड पार्टी के बीच लिखित एग्रीमेंट होगा, जहां पर स्पॉन्सर किसान से एक निश्चित कीमत पर उसके उत्पाद खरीदने और खेती की सुविधाएं मुहैया कराने पर सहमति जताएगा.
इस एग्रीमेंट में उत्पाद की गुणवत्ता, मूल्य, स्टैंडर्ड, ग्रेड इत्यादि मानकों का विवरण होगा, जिसका किसान को पालन करना होगा. इस कानून के मुताबिक किसान द्वारा कोई भी ऐसा फार्मिंग एग्रीमेंट नहीं किया जा सकता है, जिससे पट्टे पर खेती करने वाले या बटाईदार के किसी अधिकार का अनादर हो.
इसके तहत कम से कम एक सीजन और अधिकतम पांच साल के लिए कॉन्ट्रैक्ट हो सकता है. एक्ट की धारा 3(4) के तहत किसानों को ‘लिखित खेती समझौतों’ की सुविधा देने के लिए केंद्र सरकार मॉडल खेती समझौतों के साथ आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर सकती है.
इसमें कहा गया है कि एग्रीमेंट करने वाली पार्टियां (किसान और खरीददार) अपने हिसाब की शर्तों के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट कर सकती हैं, जिसका पालन आपस में स्वीकृत कृषि उत्पाद की गुणवत्ता, ग्रेड और स्टैंडर्ड पर आधारित होगा.
कानून में कहा गया है कि ये शर्तें खेती में की जा रहीं प्रैक्टिस, जलवायु, केंद्र एवं राज्य सरकारों या अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा निर्धारित मानकों पर आधारित होना चाहिए.
इसके मुताबिक कृषि उत्पाद का खरीद मूल्य समझौते में दर्ज किया जाना चाहिए. मूल्य में बदलाव की स्थिति में समझौते में उत्पाद की गारंटीशुदा मूल्य और इसके अतिरिक्त बोनस या प्रीमियम का स्पष्ट संदर्भ होना चाहिए.
इसके साथ ही कानून में ये भी कहा गया है कि स्पॉन्सर या खरीददार को समयसीमा के भीतर कृषि उत्पाद की खरीदी करनी होगी और इसके लिए उन्हें सभी इंतजाम करने होंगे, ताकि यह सफल हो सके.
नए कानून के मुताबिक, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत खरीदी के समय खरीददार कृषि उत्पाद की गुणवत्ता की जांच कर सकता है. बीज उत्पादन के मामले में स्पॉन्सर को खरीदी के समय निश्चित राशि का कम से कम दो तिहाई हिस्सा चुकाना होगा, बाकि की राशि डिलिवरी की तारीख से 30 दिनों के भीतर सर्टिफिकेशन के बाद चुकाई जा सकती है.
कानून के मुताबिक, यदि किसी भी कृषि उत्पाद को लेकर कॉन्ट्रैक्ट हो जाता है तो उस पर राज्य का कोई भी कानून लागू नहीं हो सकता है और उसकी बिक्री सिर्फ एग्रीमेंट की शर्तों पर ही आधारित होगा.
3. आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन
संसद ने कृषि सुधार के नाम पर लाए गए आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम विधेयक, 2020 को भी मंजूरी दी है, जिसके जरिये अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है.
दूसरे शब्दों में कहें, तो अब निजी खरीददारों द्वारा इन वस्तुओं के भंडारण या जमा करने पर सरकार का नियंत्रण नहीं होगा.
हालांकि संशोधन के तहत यह भी व्यवस्था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है.
यह कानून साल 1955 में ऐसे समय में बना था जब भारत खाद्य पदार्थों की भयंकर कमी से जूझ रहा था. इसलिए इस कानून का उद्देश्य इन वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकना था, ताकि उचित मूल्य पर सभी को खाने का सामान मुहैया कराया जा सके.
सरकार का कहना है कि चूंकि अब भारत इन वस्तुओं का पर्याप्त उत्पादन करता है, ऐसे में इन पर नियंत्रण की जरूरत नहीं है.
किसान इन कानूनों के खिलाफ में क्यों हैं?
वैसे तो सरकार का दावा है कि वे इन तीनों कानूनों के जरिये किसानों के लिए एक विशाल कृषि बाजार तैयार कर रहे हैं, जहां वे अपनी इच्छा के अनुसार अपनी पसंद की जगह पर बिक्री कर सकेंगे. इसके साथ ही केंद्र की दलील है कि एपीएमसी व्यवस्था में बिचौलियों के चलते किसानों का नुकसान हो रहा था, इसलिए उन्होंने कृषि बाजार को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया है.
हालांकि किसान एवं कृषि संगठन कहते हैं कि ये बात सही है कि एपीएमसी मंडियों में समस्याएं थीं, लेकिन उन्हें सुधारने के बजाय सरकार किसानों के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा कर रही है. इस नई व्यवस्था से ट्रेडर्स को ही फायदा पहुंचने वाला है, किसानों को नहीं.
यदि पहले कानून- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) एक्ट, 2020- को देखें तो यह पहले से स्थापित एपीएमसी मंडी सिस्टम को बायपास करता है और मंडी के बाहर कहीं भी उत्पाद बेचने की छूट देता है. इसमें यह भी लिखा है कि बाहर खरीदने या बेचने पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, जो कि मंडियों में लगता है.
इस प्रावधान को लेकर बड़ी चिंता ये है कि इसके चलते आढ़ती मंडियों के बाहर खरीदने लगेंगे, क्योंकि वहां उन्हें टैक्स नहीं देना पड़ेगा, नतीजतन मंडियां धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी.
अब यहां पर मंडी के महत्व को समझना जरूरी है. मंडी ही वो स्थान हैं जहां पर बहुत सारे खरीददार और बेचने वालों (किसानों) का जमावड़ा होता है. इसके चलते किसानों के पास बिक्री के कई सारे विकल्प होते हैं, जहां वो मोल-भाव करके अच्छे दाम पा सकता है. यहां पर कृषि उपज के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आधार पर निर्धारित होते हैं. कई किसानों को तो मंडी आकर ही एमएसपी के बारे में पता चलता पाता है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि नए कानून के कारण यदि मंडियां खत्म होती हैं तो एमएसपी भी अपने आप अप्रासंगिक हो जाएगा. इन एपीएमसी मंडियों के बाहर भी खरीद-बिक्री के छोटे स्थानों पर उत्पादों के मूल्य मंडी भाव के आधार पर तय होते हैं. इस तरह किसानों को उचित दाम दिलाने में इन मंडियों की प्रमुख भूमिका है.
इसलिए किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार एक कानून लाए कि मंडी या मंडी से बाहर एमएसपी से नीचे की खरीद गैरकानूनी होगी.
जहां तक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित कानून का सवाल है, तो इसमें एक अच्छी बात ये है कि किसी भी एग्रीमेंट में किसान की जमीन का ट्रांसफर यानी कि लीज या बिक्री नहीं की जा सकेगी. दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी करार में किसान की जमीन का सौदा नहीं किया जाएगा. इसके तहत सिर्फ फसल का कॉन्ट्रैक्ट किया जाएगा.
हालांकि इसमें एक बड़ी समस्या ये है कि यह कानून विवाद के मामले में किसान को सिविल केस दायर करने से रोकता है. किसी भी एग्रीमेंट का उल्लंघन होने पर मामले की सुनवाई एसडीएम करेगा और फैसले से असंतुष्ट होने पर डीएम के पास अपील की जा सकती है.
किसानों को ये डर है कि ये एग्रीमेंट फसल बीमा के एग्रीमेंट की तरह हो सकते हैं, जिसमें बड़ी कंपनियां अफसरों के साथ मिलकर सौदा कर लेते हैं और किसानों को परेशान करते हैं. किसानों का आरोप है कि यह कानून उन्हें उनकी जमीन पर बंधुआ बना सकता है.
उदाहरण के तौर पर, किसी कंपनी ने किसान के साथ करार किया कि आपको ये फसल बोनी है, हम इसको इस रेट पर खरीदेंगे, इसकी क्वालिटी ऐसी होनी चाहिए. इसमें ये समस्या उत्पन्न हो सकती है, जैसे क्वालिटी कम होने पर कंपनी पूरे पैसे नहीं देगी क्योंकि क्वालिटी कम होना एग्रीमेंट की शर्तों का उल्लंघन हो जाएगा.
इसी तरह यदि कंपनी एडवांस में पैसा दे रखा होगा तो वे कंपनी किसान को अगली फसल के लिए भी बाध्य कर सकती है, क्योंकि कंपनी का पहले का पैसा किसान दे नहीं पाएगा और इस हालत में वो मजबूरी में अगली फसल का कॉन्ट्रैक्ट कर लेगा तो इनके ऋण के चक्कर में फंस जाएगा. ऐसी स्थिति में किसानों को डर ये है कि कंपनी अपने पैसे की वसूली के लिए सिविल कोर्ट जाएगी और उनकी जमीन नीलाम करवा देगी.
इसलिए किसानों की मांग है कि इस कानून में किसानों को ज्यादा सुरक्षा के प्रावधान किए जाएं, ताकि वे बड़ी कंपनियों के सामने कानूनी तौर पर मजबूती से खड़ा रह सकें. इसके लिए मुफ्त कानूनी सहायता का प्रावधान हो और ऋण से भी सुरक्षा प्रदान किया जाए.
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि एग्रीमेंट के लिए किसान के पास कोई कानूनी जानकारी नहीं होती कि वो अपने टर्म के हिसाब से इसे लिखवा सकें. इसके विपरीत, कंपनियों के पास लीगल एक्सपर्ट होते हैं.
इसी तरह तीसरा कानून- आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन- जरूरी वस्तुओं की जमाखोरी को छूट देता है. इसको किसानों के हित में बताया जा रहा है. हालांकि किसानों का कहना है कि किसान अभी भी स्टॉक कर सकता था, लेकिन संसाधन उपलब्ध नहीं होने के कारण उसकी मजबूरी है कि वो ऐसा नहीं कर सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानून बड़े ट्रेडर्स को जमाखोरी की छूट देगा, जिससे वे मार्केट में इन चीजों की कमी करके रेट बढ़ाएंगे और मुनाफा कमाएंगे. इससे गरीब एवं मध्यम वर्ग को नुकसान होने की संभावना है.
द लीडर : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ जीने का अधिकार जीवन एवं व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि इसमें धर्म आड़े नहीं आना सकता है. Choosing Partner Fundamental Right
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ ने विशेष रूप से कहा, ‘हम ये समझने में असमर्थ हैं कि जब कानून दो व्यक्तियों, चाहे वो समलैंगिक ही क्यों न हों, को साथ रहने की इजाजत देता है, तो फिर न तो कोई व्यक्ति, न ही परिवार और न ही सरकार को उनके संबंधों पर आपत्ति होनी चाहिए, जो कि अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं.’
इसके साथ ही कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा दिए गए उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि महज शादी के लिए धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है.
कोर्ट ने कहा, ‘इस फैसले में दो व्यस्कों के जीवन एवं स्वतंत्रता के मुद्दे को नहीं देखा गया है कि उन्हें पार्टनर चुनने या अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार है.’
पीठ ने आगे कहा, ‘हम इस फैसले को अच्छे कानून के रूप में नहीं मानते हैं.’
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, ‘अपनी पसंद के किसी व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, भले ही उनका कोई भी धर्म हो, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है. व्यक्तिगत संबंध में हस्तक्षेप करना दो व्यक्तियों के चुनने की आजादी में खलल डालना है.’
संयुक्त राष्ट्र: दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में संघर्ष की स्थिति के कारण इस साल के मध्य तक आठ करोड़ से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा और कोविड-19 महामारी के कारण शरणार्थियों की जिंदगी और बदहाल हो गयी. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में इस बारे में बताया गया है.
शरणार्थियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएचसीआर का आकलन है कि वैश्विक स्तर पर इस साल के मध्य तक आठ करोड़ से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा. यूएनएचसीआर ने जेनेवा में बुधवार को इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की.
नई दिल्ली: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के विशेषज्ञों की एक समिति ने बीते बुधवार को कोविड-19 टीका के लिए सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक से अतिरिक्त सुरक्षा एवं प्रभावी डाटा मांगा है. टीके के आपातकालीन उपयोग के लिए अनुमति मांगने के उनके आवेदन पर विचार-विमर्श के बाद उन्होंने यह डाटा मांगा है.
इसके अलावा अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर की भारतीय शाखा के आवेदन पर बुधवार को विचार-विमर्श नहीं हुआ, क्योंकि कंपनी ने समिति के समक्ष प्रस्तुतीकरण देने के लिए और समय मांगा.
एक सूत्र ने बताया कि भारत बायोटेक और सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के आवेदन अब भी विचाराधीन हैं.
सूत्रों ने बताया कि सीरम इंस्टिट्यूट के आवेदन पर विचार करते हुए सीडीएससीओ की विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) ने देश में दूसरे चरण और तीसरे चरण के परीक्षण पर अद्यतन सुरक्षा डाटा, ब्रिटेन और भारत में क्लीनिकल परीक्षण के प्रतिरक्षाजनक डाटा की मांग की है. साथ ही ब्रिटेन औषधि एवं स्वास्थ्य देखभाल उत्पाद नियामक एजेंसी (एमएचआरए) के आकलन का परिणाम भी मांगा है.