द लीडर। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. और इसलिए यूपी की राजनीति में सभी की नजरें टिकी होती हैं. यहां की सियासत में अब उठापटक तेज होती दिख रही है. ओम प्रकाश राजभर जो यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ सत्ता पाने की चाहत रखते थे वो आज खुद सियासी भंवर में फंसते दिखाई दे रहे हैं. जिसके चलते अभी तक पार्टी यह भी नहीं सुनिश्चित कर पाई है कि, वो राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को अपना समर्थन देंगे या यशवंत सिन्हा. हालांकि पार्टी कल इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी. लेकिन इन दिनों ओपी राजभर की न अखिलेश यादव से बन रही है. और न ही पार्टी में बगावत थमती नजर आ रही है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में खेला करने की चाहत से सपा का साथ पाने वाले ओम प्रकाश राजभर का अब खुद सियासी खेल बिगड़ता दिख रहा है. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की ओर से तलाक का इंताजर कर रहे ओपी राजभर ने अब तक फैसला नहीं लिया है कि, 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उनके 6 विधायक आखिर किसे वोट करेंगे.
सियासी भंवर में फंसते नजर आ रहे राजभर
अभी तक राष्ट्रपति चुनाव में किसका समर्थन करेंगे यह अभी तय नहीं हुआ है. इसके पीछे यह वजह बताई जा रही है कि, सुभासपा प्रमुख राराजभर खुद अखिलेश यादव से मिलकर इस पर आमने-सामने बातचीत करना चाहते हैं. लेकिन राजभर की न तो अखिलेश यादव से बन रही है. और न हीं पार्टी में बागवत थम रही है. जिसमें ओपी राजभर की मुश्किलों को ओर बढ़ा दिया है.
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दरअसल, जितनी मिठास विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के बीच थी. अब दोनों के बीच उतनी ही खटास दिखाई देने लगी है. नौबत तो यहां तक आ गई है कि, ओम प्रकाश राजभर खुलकर अखिलेश के खिलाफ बयानबाजी करने लगे हैं.
अगर पिछला सियासी घटनाक्रम पर नजर डाले तो ऐसा कहा जा सकता है कि, दोनों के बीच अब गठबंधन मात्र कहने भर को रह गया है। ओपी राजभर की एक ओर जहां समाजवादी पार्टी से गठबंधन में दरार पड़ती दिखाई दे रही है तो वहीं दूसरी तरफ उनकी खुद की पार्टी में बगावत की आंच तेज होती दिख रही है.
शशि प्रताप सिंह का पार्टी छोड़ना बड़े झटके से कम नहीं
बता दें कि, कुछ दिन पहले ही ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के एक नेता राजभर पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी का दामन छोड़ दिया था. यह ऐसे समय में जब पार्टी की अखिलेश यादव से जगजाहिर तल्खी चल रही हैं. इस बीच सुभाषपा के उपाध्यक्ष शशि प्रताप सिंह ने ओम प्रकाश राजभर का साथ छोड़ दिया.
शशि ने राजभर का साथ छोड़ा तो छोड़ा लेकिन उन्होंने राजभर पर गंभीर आरोप भी लगाए है. उन्होंने कहा था कि, अब इस पार्टी में भी परिवारवाद जोड़ा जा रहा है. हालांकि, शशि प्रताप सिंह का यूं पार्टी का साथ छोड़ना ओपी राजभर के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है.
शशि प्रताप सिंह ने राजभर की पार्टी छोड़ने के तुरंत बाद ही अपनी नई पार्टी बना ली. उन्होंने राष्ट्रीय समता पार्टी के नाम से पार्टी की घोषणा करते हुए ओपी राजभर की मुश्किलों को और बढ़ा दिया.
शशि प्रताप ने राजभर पर लगाए कई गंभीर आरोप
जब शशि प्रताप सिंह ने पार्टी छोड़ी तो उन्होंने ओपी राजभर पर परिवारवाद का आरोप लगाते कहा था कि, सुभासपा में भी भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. सुभासपा के नेता अपने प्रियजनों को बढ़ावा दे रहे हैं. हालांकि उन्होंने यह भी दावा किया था कि, उनके संपर्क में सुभासका के कई नेता हैं.
ओपी राजभर की पार्टी में बगावत का बिगुल ऐसे वक्त में बज रहा है. जब वे खुद अखिलेश यादव के खिलाफ गठबंधन को लेकर आवाज बुलंद करते नजर आ रहे हैं. हालांकि, वह किसी भी संभावनाओं को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते हैं.
शायद यही वजह है कि, बीते दिनों जब सीएम योगी ने द्रौपदी मुर्मू के लिए रात्रिभोज का इंतजाम किया था. तो शिवपाल यादव के साथ ओपी राजभर भी पहुंचे थे. ओम प्रकाश राजभर का भाजपा के रात्रिभोज में जाना इसलिए सियासी नजरिए से अहम है. क्योंकि अखिलेश यादव का खेमा विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रहा है.
ओपी राजभर की अखिलेश से तल्खी के बीच भाजपा से नजदीकी की भी चर्चा हो रही है. जिससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि, ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के विधायक एनडीए उम्मीदवार को समर्थन दे सकते हैं.
क्या राजभर को नहीं भा रहा अखिलेश का साथ ?
फिलहाल, सपा से गठबंधन पर ओम प्रकाश राजभर का अगला कदम क्या होगा. यह राष्ट्रपति चुनाव के बाद शायद देखने को मिल जाए. ओपी राजभर का जो सियासी इतिहास रहा है, उसमें सियासी पाला बदलना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है.
वह समाजवादी पार्टी से पहले बसपा और भाजपा के साथ हाथ मिला चुके हैं. मगर मौजूदा सियासी हालात ऐसे संकेत दे रहे हैं कि, ओम प्रकाश राजभर को फिलहाल अखिलेश यादव का साथ पसंद नहीं आ रहा है.
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