हिंदी में जवाब मिलने पर भड़के सांसद पहुंचे HC, कोर्ट ने कहा- वादी जिस भाषा में पक्ष रखे उसी भाषा में जवाब दे सरकार

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द लीडर हिंदी। मद्रास हाईकोर्ट ने एक अच्छा फैसला सुनाया है. केंद्र को निर्देश दिए हैं कि, वादी जिस भाषा में पक्ष रखे, उसी भाषा में उेस जवाब देना चाहिए. बता दें कि, ये फैसला माकपा सांसद एस वेंकटेशन की उस याचिका पर दिया गया है, जिसमें उन्होंने गृह मंत्रालय से अंग्रेजी में भर्ती से संबंधित जानकारी मांगी और उन्हें जवाब हिंदी में मिला. मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने गुरुवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि, वह अधिकारिक भाषा अधिनियम, 1963 का सख्ती से पालन करे. अदालत ने कहा कि, अंग्रेजी में पत्र मिलने पर यह केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह केवल अंग्रेजी में ही उसका उत्तर दे.


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केंद्र से हिंदी भाषा में उत्‍तर मिला तो HC पहुंचे सांसद

जस्टिस एन किरुबकरन और एम दुरैस्वामी की पीठ ने मदुरै लोकसभा क्षेत्र के सांसद सू वेंकटेशन की जनहित याचिका पर यह निर्देश दिया है. सांसद वेंकटेशन ने कोर्ट से मांग की है कि, राज्‍य और केंद्र सरकार के बीच सभी संवाद अंग्रेजी भाषा में ही किए जाएं. दरअसल, पिछले साल सांसद सू वेंकटेशन के एक पत्र का जवाब केंद्रीय गृह मंत्रालय में हिंदी भाषा में दिया था. जिसमें सांसद ने केंद्र सरकार से सीआरपीएफ पैरामेडिकल स्‍टाफ भर्ती के लिए एक परीक्षा केंद्र स्‍थापित करने की गुहार लगाई थी. गृह मंत्रालय का हिंदी में जवाब मिलने के बाद वेंकटेशन ने कोर्ट का रूख किया था. कोर्ट ने कहा कि, अपने यहां के राज्‍य भाषा के ही आधार पर बंटे हैं, इसलिए हमें भाषा की अहमियत को समझना चाहिए. जिस भाषा में सवाल किया जा रहा है, केंद्र को उसी भाषा में जवाब देना चाहिए. देश के हर नागरिक या संस्‍था को राज्‍य में इस्‍तेमाल की जाने वाली किसी भी भाषा में अभ्‍यावेदन देने का अधिकार है.

केंद्र से CBI के लिए अलग कानून बनाने की मांग

मद्रास उच्च न्यायालय ने बिना किसी सरकारी नियंत्रण के केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के लिए अधिक कार्यात्मक स्वायत्तता के लिए लड़ाई लड़ी है. प्रमुख एजेंसी को उन विभागों के बराबर लाया है जो सीधे प्रधान मंत्री को रिपोर्ट करते हैं. मदुरै पीठ ने मंगलवार को कहा था कि, जांच करने के लिए संसाधनों और जनशक्ति की कमी है. सीबीआई को चुनाव आयोग और कैग (CAG) की तरह ‘ज्यादा आजाद’ किया जाना चाहिए. कोर्ट का कहना था कि, उनका ये निर्देश ‘पिंजरे में बंद तोते’ को आजाद कराने की कोशिश है.


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सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के बिना एजेंसी को कार्यात्मक स्वायत्तता के साथ स्वतंत्र बनाया जाना चाहिए. इसके निदेशक को सरकार के सचिव का अधिकार दिया जाना चाहिए और प्रधान मंत्री या संबंधित मंत्री को रिपोर्ट करना चाहिए, न्यायमूर्ति एन किरुबाकरण और न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी ने कहा.अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीबीआई द्वारा जांचे गए मामलों की सजा की दर 60 प्रतिशत थी, लेकिन इसे बढ़ाने की जरूरत है.

लेटर की भाषा पर कोर्ट पहुंचने वाला यह पहला मामला

शायद देश का यह ऐसा पहला ही मामला होगा, जब पत्र लिखने में भाषा के इस्तेमाल का मामला कोर्ट तक पहुंचा हो. गृह मंत्रालय की ओर से हिंदी में जवाब मिलने पर विरोध दर्ज कराते हुए वेंकटेशन ने एक और पत्र लिखा और कहा कि, वह हिंदी भाषी राज्य के नहीं हैं और उन्हें हिंदी पढ़नी नहीं आती है. इसके बाद उन्होंने कोर्ट में अर्जी डालकर मांग की कि, जिन अधिकारियों ने उन्हें हिंदी में जवाब दिया है, उनके खिलाफ एक्शन लिया जाना चाहिए. सांसद ने कहा कि, मुझे इस पत्र का अंग्रेजी अनुवाद भी नहीं मुहैया कराया गया. यह संविधान के तहत और ऑफिशियल लैंग्वेजेस एक्ट के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है.


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अदालत ने कहा, केंद्र को हिंदी और इंग्लिश दोनों में देना चाहिए संदेश

इस पर अदालत में केंद्र सरकार ने कहा कि, उनकी ओर से हिंदी में अनजाने में जवाब दिया गया था. ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया है. इस पर अदालत ने कहा कि, केंद्र सरकार को ऑफिशियल लैंग्वेजेस एक्ट के सेक्शन 3 का पालन करते हुए कोई भी संदेश हिंदी और अंग्रेजी दोनों में जारी करना चाहिए. तमिलनाडु में भाषा के आंदोलन का एक लंबा इतिहास रहा है. 1960 के दशक से ही तमिलनाडु की ओर से यह आरोप लगता रहा है कि, केंद्र सरकार उन पर हिंदी भाषा को थोपने का प्रयास कर रही है.

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