द लीडर हिंदी। तालिबान…तालिबान..तालिबान अफगानिस्तान में कब्जे के बाद तालिबान देश दुनिया में छा गया है. अफगानियों में तालिबान को लेकर इतना खौफ है कि, वो खुद अपना देश छोड़ के भाग रहे है. तालिबान की अफगान में वापसी को लेकर हर कोई सहमा हुआ है. महिलाओं में भी ज्यादा खौफ देखने को मिल रहा है. इस समय अफगान में तालिबान ने तांड़व मचाया हुआ है. तालिबान के कब्जे के बाद अब हर किसी कोई अफ़ग़ानिस्तान में नई सरकार का इंतज़ार कर रहा है. कहा जा रहा है कि, तालिबान के सुप्रीम लीडर हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा को इसमें बड़ा रोल मिल सकता है. ऐसे कयास लगाए जा रहे है कि, अखुंदज़ादा अफगानिस्तान की सत्तारूढ़ परिषद के प्रमुख बन सकते हैं. वहां ये पद राष्ट्रपति के बराबर का होता है.
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एक सत्तारूढ़ परिषद बना सकता है तालिबान
इस बीच तालिबान के एक और नेता वहीदुल्ला हाशिमी ने बुधवार को समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि, तालिबान एक सत्तारूढ़ परिषद बना सकता है. साथ ही उन्होंने कहा कि, नई सरकार में और अफगान सेना के पूर्व पायलटों और सैनिकों को शामिल किया जा सकता है. वहीं ये भी कहा जा रहा है कि, इस बार भी सरकार की तस्वीर पिछली बार की तरह ही होगी. साल 1996 से 2001 तक तालिबान का अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा रहा था. वहीदुल्ला हाशिमी ने कहा है कि, हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा पर ही आखिरी फैसले लेने की ज़िम्मेदारी होगी.
कौन है तालिबान का सुप्रीम लीडर ?
अखुंदज़ादा तालिबान का सर्वोच्च नेता है जो समूह के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों पर अंतिम अधिकार रखता है. अखुंदज़ादा को इस्लामिक कानून का विद्वान माना जाता है. साल 2016 में अमेरिका ने एक ड्रोन हमले में तालिबान के प्रमुख अख्तर मंसूर को मार गिराया था. इसके बाद अखुंदज़ादा को मंसूर का उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान किया गया. कहा जा रहा है कि, अखुंदज़ादा की उम्र करीब 60 साल है. अब उन्हें अफगानिस्तान में बड़ा रोल देने की बात सामने आ रही है. बता दें कि, संगठन के सभी फैसले अभी भी हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा ही लेते हैं.
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कट्टर इस्लामी सोच के हैं अखुंदज़ादा
अखुंदज़ादा कंधार का एक कट्टर धार्मिक नेता है. कहा जा रहा है कि, वो तालिबान को अपनी पुरानी सोच नहीं बदलने देंगे. 1980 के दशक में, उसने अफगानिस्तान में सोवियत सैन्य अभियान के खिलाफ इस्लामी अभियान चलाया था. लेकिन उन्हें एक सैन्य कमांडर से ज्यादा एक धार्मिक नेता के तौर पर लोग जानते हैं. कहा जाता है कि, अखुंदज़ादा ने ही इस्लामी सज़ा की शुरुआत की थी. जिसके तहत वो खुलेआम मर्डर या चोरी करने वालों को मौत की सज़ा सुनाते थे. इसके अलावा वो फतवा जारी करते थे. जिसको लेकर अब अफगानी लोग सहमे और बेबस नजर आ रहे हैं.
पाकिस्तान में भी दी है इस्लामिक ट्रेनिंग
बताया जा रहा है कि, अखुंदज़ादा ज्यादातर समय अफगानिस्तान में ही रहे. लेकिन कहा जाता है कि वो काफी समय तक पाकिस्तान के क्वेटा में भी रहे हैं. दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान के एक कस्बे कुचलाक में एक मस्जिद में वो पढ़ाया करते थे. कंधार के पंजवाई जिले में जन्मे अखुंदज़ादा 1990 के दशक में सोवियत सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान में शामिल हो गए थे. कंधार में तालिबान की सैन्य अदालत में नियुक्त किया गया और फिर पूर्वी नंगरहार प्रांत में इसकी सैन्य अदालत के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया.
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अफगान में तालिबान की वापसी से महिलाओं और लड़कियों में ज्यादा खौफ देखने को मिल रहा है. महिलाओं का कहना है कि, उन्हें तालिबानियों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. वहां के लोग ज्यादा ही डरे हुए हैं. तालिबानियों की क्रूरता लोगों के जहन में है. जिस कारण वह खौफ में जीने को मजबूर है. और अपना देश छोड़ना चाहते हैं.