तो इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की कुर्सी जाने वाली है! अब क्या होगी फिलिस्तीन नीति?

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द  लीडर डेस्क।

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की कुर्सी खतरे में है। बुधवार को अगर विपक्षी गठबंधन ने अपनी गणित बना ली हो नेतन्याहू का 12 साल का राज खत्म हो जाएगा। भ्रष्टाचार के आरोपों की लंबी फेहरिस्त और हाल में हमास के साथ युद्धविराम के फैसले ने अब तक उनका साथ दे रहे छोटे छोटे दलों का मोहभंग कर दिया। वैसे भी 120 सदस्यीय इजराइली संसद में किसी को भी बहुमत न होने की वजह से संवैधानिक रूप से भी यह मज़बूरी की सरकार थी। लाख कोशिश के बाद नेतन्याहु 61 का आंकड़ा नहीं जुटा पाए। मुश्किल से 59 तक उनकी संख्या पहुंची थी।
बहरहाल अब नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के बाद दूसरे नंबर के दल यैर लैपिड की ऐश अतिद औऱ नफ़्ताली बेनेट की यामीना पार्टी बाकी दलों को जोड़ कर बहुमत जुटा लेने का दावा कर रही हैं जो उन्हें बुधवार तक साबित भी करना है।
मात्र 30 सांसदों वाले बेंजामिन नेतन्याहू के लिकुड दल के मुकाबले इस दोनों के 17 और 7 सांसद कुल 34 का आंकड़ा बनाते हैं। नेतन्याहू की पार्टी से बगावत क़रने वाले गिदोन सआर की न्यू होप पार्टी और मंसूर अब्वास सुन्नी अरबों के समर्थन वाली यूनाइटेड अरब लिस्ट के साथ कुछ और छोटे दलों के सहयोग से ही नई सरकार को शक्ल दी जा सकती है।

बेमेल खिचड़ी पकेगी

कुल मिलाकर एक बेमेल खिचड़ी पकाने की कोशिशें जारी हैं। इजरायल के राष्‍ट्रवादी नेता नफ्ताली बेनेट ने ऐलान किया है कि वह गठबंधन सरकार में शामिल हो सकते हैं। बेनेट की पार्टी नेतन्याहू की लिकुड पार्टी से भी ज्यादा दक्षिणपंथी यानी यहूदियों के वर्चस्व की जंग लड़ने वाली पार्टी है जबकि यैर लैपिड का दल उदारवादी माना जाता है। बाकी सारे दल व्यक्ति केंद्रित और दक्षिणपंथी हैं। मंसूर अब्वास की पार्टी का बेस अरब हैं और यह नेतन्याहू की कट्टर विरोधी है। तो क्या यह दल लिकुड से भी ज्यादा कट्टर यहूदी दल के नेता बेनेट से हाथ मिलाएगी?पूर्व टीवी एंकर लेपिड अपने उदारवादी विचारों के कारण देश के धर्मनिरपेक्ष मध्य वर्ग में लोकप्रिय रहे हैं। लेकिन अब उनकी अपनी छवि पर आंच आ सकती है।

बेनेट,लैपिड औऱ अब्वास मंसूरP

लेपिड ने कुछ और छोटे दलों को अपने साथ जुटा कर 120 सदस्यीय संसद- नेसेट में बहुमत का इंतजाम कर लिया है। अपने समर्थक सांसदों की सूची वे अगले एक दो दिन में राष्ट्रपति रिउवेन रिवलिन को सौंप देंगे। पर्यवेक्षकों के मुताबिक नई सरकार इसी हफ्ते के अंत तक शपथ ले सकती है।

क्या है फार्मूला

लैपिड और बेनेट की वार्ता में एक फार्मूला तय हुआ है जिसके तहत मात्र 7 सदस्यों के बावजूद पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी पर दो साल तक बेनेट बैठेंगे। बाकी के दो साल लैपिड के होंगे। लैपिड के दल में भी विद्रोह के बीज फूट रहे हैं। 17 में से एक सदस्य ने साफ कह दिया है कि वह कट्टरपंथियों के साथ सरकार में शामिल नहीं होगा।
बेनेट ने अपनी पार्टी की बैठक में कहा, ‘मैं अपने मित्र यैर लेपिड के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए सब कुछ करूंगा ताकि ईश्‍वर की इच्‍छा से हम दोनों मिलकर देश को एक अनियंत्रित गिरावट से रोक सकेंगे। साथ ही इजरायल को वापस रास्‍ते पर लाएंगे। इससे पहले दोनों ही नेताओं को एक डील पर सहमति जतानी होगी।
बेनेट पहले नेतन्‍याहू के सहयोगी थे लेकिन बाद में वे विरोधी हो गए। उन्‍होंने कहा कि इजरायल को दो साल में लगातार पांचवीं बार चुनाव से बचाने के लिए यह फैसला लिया है।

नेतन्याहू भड़के

विरोध‍ियों के एकजुट होने पर नेतन्‍याहू भड़क उठे हैं। उन्‍होंने इस गठबंधन को सदी का सबसे बड़ा धोखा करार दिया है। नेतन्‍याहू ने कहा, ‘देश में एक भी ऐसा शख्‍स नहीं है जो बेनेट को वोट देगा। यह सदी का सबसे बड़ा धोखा है।’ उन्‍होंने कहा कि इस गठबंधन के बाद वामपंथी दल सत्‍ता में आए जाएंगे। इस सरकार के बनने पर इजरायल कमजोर हो जाएगा। नेतन्‍याहू ने दावा किया कि देश में अभी भी दक्षिणपंथी सरकार संभव है।71 वर्षीय नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमे चल रहे हैं। लेकिन नेतन्याहू की जगह उनसे भी ज्यादा कट्टरपंथी के प्रधानमंत्री बनने से उदारवादी खेमों में बेचैनी भी देखी जा रही है। जानकारों के मुताबिक इस्राइल की मुसीबत यह है कि कभी देश में प्रगतिशील और वामपंथी नीतियों की समर्थक रही लेबर पार्टी अब कमजोर होकर अप्रासंगिक हो चुकी है। इस कारण अब तमाम विकल्प व्यक्ति केंद्रित मध्यमार्गी पार्टियों और धुर दक्षिणपंथी दलों के बीच सिमट गए हैं।

फिलिस्तीनियों के लिए बड़ा खतरा है बेनेट

विश्लेषकों के मुताबिक अरबपति राजनेता और पूर्व रक्षा और शिक्षा मंत्री 49 वर्षीय बेनेट और नेतन्याहू की नीतियों में कोई खास फर्क नहीं है। फिलस्तीन के मामले में तो बेनेट नेतन्याहू से भी ज्यादा सख्त नीतियों के हिमायती रहे हैं। बेनेट फिलस्तीनियों के लिए एक अलग देश बनाने के प्रस्ताव के कट्टर विरोधी हैं। अमेरिका सहित तमाम पश्चिमी देश दो-राष्ट्र सिद्धांत के तहत फिलस्तीनियों के लिए अलग देश बनाने का समर्थन करते रहे हैँ। बेनेट पश्चिमी किनारे की फिलस्तीनियों की 60 फीसदी जमीन को इस्राइल में मिला लेने की मांग करते रहे हैं। 2020 में नेतन्याहू सरकार में रक्षा मंत्री के बतौर उन्होंने कोरोना महामारी के बीच गाजा पट्टी में रहने वाले फिलस्तीनियों की कोरोना जांच रोक देने का आदेश इस्राइली सेना को दिया था।

पहले से थी तैयारी

रिपोर्ट के मुताबिक 10 मई को ही लैपिड और बेनेट मिलकर सरकार बनाने का ऐलान करने वाले थे लेकिन अचानकर हमास ने इजरायल के ऊपर हमला शुरू कर दिया और फिर सरकार बनाने का विचार टाल दिया गया और अब जबकि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति है तो फिर नई सरकार बनाने का ऐलान किया जा सकता है.

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