THE LEADER. रामपुर के क़द्दावर नेता मुहम्मद आज़म ख़ान हैं तो उनका नाम सिर्फ़ मुहम्मद आज़म है. यही मुहम्मद आज़म इस वक़्त रामपुर में मौज़ू-ए-बहस हैं. लोग उनके बारे में एकदूसरे से जानकारी कर रहे हैं. सियासी गलियारों में भी उनका चर्चा है. सवाल हो रहा है कि यह कौन मुहम्मद आज़म हैं, जो सल्तनत-ए-आज़म पर लोकसभा चुनाव से पहले दावा कर रहे हैं. यह सबको पता है कि बेटे अब्दुल्ला आज़म के दो जन्म प्रमाण-पत्र मामले में सात साल की सज़ा होने के बाद मुहम्मद आज़म ख़ान सीतापुर की जेल में बंद हैं. एमपीएमएलए कोर्ट से सज़ा के बाद उन्होंने अपील दाख़िल की थी, जो ख़ारिज हो गई है. लोकसभा चुनाव से पहले जेल से बाहर आ पाएंगे या नहीं कहना मुश्किल है. ऐसे में रामपुर सीट से चुनाव कौन लड़ेगा इस सवाल के जवाब को लेकर समाजवादी पार्टी और दूसरे दलों में भी माथापच्ची होती रहती है. अकेले रामपुर की ही बात करें तो ख़्वाहिश बहुतों के मन में है कि अगर आज़म ख़ान नहीं तो फिर हम लड़ जाएं लेकिन अरमान दिल में संभाल रखा है, ज़ुबां पर नहीं लाए हैं.
पहली बार एक नाम मंज़र-ए-आम पर आया है. मुहम्मद आज़म बतौर दावेदार सामने आए हैं और वो भी एलानिया. उन्होंने नये साल पर अख़बारों में मुबारकबाद का विज्ञापन छपवाया है. तब जबकि उनका रामपुर से सीधा कोई ताल्लुक़ भी नहीं है. मुहम्मद आज़म भदोही के रहने वाले पसमांदा मुसलमान हैं. कश्मीर में उनकी क़ालीन की फैक्ट्री है. लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीए, एलएलबी हैं. भदोही में ही ज़िला पंचायत से सदस्य और माधो सिंह गांव के प्रधान रह चुके हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में ही समाजवादी पार्टी का हिस्सा बने हैं. उससे पहले बहुजन समाजवादी पार्टी में लंबे समय तक रहे. वहां लद्दाख़ एवं कारगिल के कोआर्डिनेटर, स्टेट जनरल सेक्रेट्री जम्मू-कश्मीर का पद भी बसपा में उनके पास रहा. एक बार विधानसभा का टिकट भी मिला लेकिन तभी एक्सीडेंट होने के सबब चुनाव नहीं लड़ पाए.
द लीडर हिंदी ने जब फ़ोन पर उनसे बात की. यह सवाल किया कि हज़रत रामपुर से कोई जुड़ाव नहीं है. वहां किसी सियासी कार्यक्रम में कभी आपको देखा नहीं गया, फिर रामपुर से लोकसभा लड़ने का ख़्याल क्योंकर आ गया. हमें जवाब मिला कि उनका नाम भी आज़म ख़ान है और बंदे का मुहम्मद आज़म. एक आज़म को जेल में डालोगे तो बहुत से आज़म खड़े हो जाएंगे. यही सोचकर रामपुर से टिकट मांगा है. बहरहाल. मुहम्मद आज़म ख़ान कितने ही कमज़ोर क्यों न कर दिए गए हों लेकिन समाजवादी पार्टी के अंदर तो उन्हीं का सिक्का चलता है. मजाल नहीं कि उनकी मर्ज़ी के बग़ैर कंडीडेट तय हो जाए. ऐसे में इन भदोही के मुहम्मद आज़म का भविष्य क्या होगा, उसके लिए इंतज़ार करना होगा. तब तक देखते रहिए-द लीडर हिंदी, खरी बात मज़बूती के साथ.