एक इतिहास छोड़ गए आदमी को पहली बार चांद तक ले जाने एस्ट्रोनॉट माइकल कॉलिंस

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द लीडर डेस्क

आज जब चांद पर बस्ती बसाने की बातें हो रही हैं तो अपोलो 11 यान और चांद की सतह पर पहला इंसानी कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग की बात तो खूब होती है, मगर उन्हें चांद तक ले जाने वाले माइकल कॉलिंस का जिक्र कम ही आया। अपोलो 11 के इस पायलट के जेहन में बहुत सी यादें थी , उस पल की भी जब धरती से उनका संपर्क कट गया था। ये जांबाज पायलट दो दिन पहले ही दुनिया से रुखसत हुआ। 90 साल के इस बूढ़े को फ्लोरिडा के नेपल्स में कैंसर ने हरा दिया।
Apollo 11 के साथ चांद की परिक्रमा लगा चुके एस्ट्रोनॉट माइकल कॉलिंस (Michael Collins) ही नील आर्मस्ट्रॉन्ग (Neil Armstrong) और बज एल्ड्रिन (Buzz Aldrin) को चंद्रमा तक ले गए थे। अपोलो 11 मिशन ने अमरीका और रूस के बीच अंतरिक्ष को लेकर जारी रेस खत्म की थी।
जिस वक्त चांद की सतह पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन अपने कदम बढ़ा रहे थे उस दौरान माइकल कॉलिंस चांद की परिक्रमा लगा रहे थे। उन्होंने ‘8 दिनों के अपोलो मिशन के कमांड मॉड्यूल का संचालन किया। माइक ने हमेशा अनुग्रह और विनम्रता के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना किया और इसी तरह, अपनी अंतिम चुनौती ( कैंसर ) का भी सामना किया।’
कॉलिंस के निधन पर अमरीकी राष्ट्पति जो बिडेन ने एक बयान में कहा, ‘माइकल कॉलिंस ने हमारे देश की अंतरिक्ष में उपलब्धियों को लिखने और बताने में मदद की है।’

अपोलो-11 अंतरिक्ष यान को 1969 में अमरीका के कैनेडी स्पेस सेंटर लॉन्च कॉम्प्लेक्स 39A से सुबह 08:32 बजे लॉन्च किया गया था। नील, बज और माइकल की टीम चांद की यात्रा पूरी करने के बाद 24 जुलाई 1969 को वापस धरती पर लौटी थी। इनके लैंडिंग कैप्सूल का स्पैल्श डाउन प्रशांत महासागर में हुआ था। अपोलो-11 मिशन को पूरा करने के लिए दुनियाभर के 40 हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी मेहनत और समय का योगदान दिया था।

चांद सामने था पर छू सके

उनके जीवन में यह सवाल कई बार पूछा गया कि क्या उन्हें चांद पर नहीं उतरने का दुख है। हालांकि वो इस सवाल के जवाब के हंस कर टाल देते थे। वह कहते थे, ‘उड़ान के बारे में, जो चीज मुझे याद है, वह है पृथ्वी का दृश्य … उज्ज्वल, सुंदर, शांत और नाजुक।’ दरअसल, कॉलिंस कमांड मॉड्यूल पायलट एक्सपर्ट थे।
माइकल को अक्सर अपोलो मिशन (Apollo mission) में भूले गए तीसरे अंतरिक्ष यात्री के रूप में संबोधित किया जाता है।वह अपने सहयोगियों के लौटने तक 21 घंटे तक कमांड मॉड्यूल में अकेले रहे।
21 घंटे तक अकेले रहने का सबसे खराब हिस्सा यह है कि उन्होंने ह्यूस्टन के साथ संपर्क खो दिया था जब उनके अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के अंधेरे पक्ष की परिक्रमा की। चंद्रमा का केवल एक पक्ष ही लगातार पृथ्वी पर दिखाई देता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रमा की घूर्णन और परिक्रमा की अवधि बराबर है। माइकल ने आत्मकथा “Carrying the Fire” किताब में लिखी थी।
उनका जन्म 31 अक्टूबर 1930 को रोम में हुआ था। पिता अमेरिकी सेना में मेजर थे। एयरफोर्स टेस्ट पायलट के रूप में अपना करियर शुरू किया।
उनका पहला मिशन जेमिनी एक्स (Gemini X) था। जिसने अपोलो प्रोग्राम तैयार किया था।उनका अगला और अंतिम अंतरिक्ष मिशन अपोलो 11 था।
अपोलो 11 में कमांड मॉड्यूल, सर्विस मॉड्यूल और लूनर मॉड्यूल तीन भाग थे।
कमांड मॉड्यूल वह स्थान है जहां माइकल कॉलिन्स रहे। यह एकमात्र हिस्सा था जो पृथ्वी पर लौट आया था।
सर्विस मॉड्यूल ने विद्युत शक्ति, प्रणोदन, ऑक्सीजन और पानी के साथ कमांड मॉड्यूल का समर्थन किया।
लूनर मॉड्यूल के दो चरण थे। एक चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को रखने के लिए था और दूसरा अंतरिक्ष यात्रियों को कक्षा में रखने के लिए था।

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