अमिताभ बच्चन की ‘डूबती नैया’ बचाने वाले दिलदार महमूद

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   वीर विनोद छाबड़ा-

दो राय नहीं हो सकती कि महमूद साठ और सत्तर के सालों की फिल्मों की कॉमेडी के बेताज बादशाह रहे। पिता मुमताज़ अली प्रसिद्ध डांसर और चरित्र अभिनेता थे। बाल कलाकार के रूप में महमूद ने कई फिल्मों में काम किया। जवान हुए तो फ़िल्में रास नहीं आईं। कई छोटे-मोटे काम किए। निर्माता-निर्देशक प्यारे लाल संतोषी की ड्राइवरी की। भाग्य का खेल है कि प्यारेलाल संतोषी के पुत्र राजकुमार संतोषी ने महमूद को ‘अंदाज़ अपना में’ (1993) में प्रोड्यूसर के किरदार में कास्ट किया। (Mehmood Saved Amitabh Career) 

महमूद ने जीवनयापन रहने के लिए मीना कुमारी को टेबल-टेनिस की ट्रेनिंग दी। बाद में मीना की छोटी बहन मधु से महमूद की शादी हुई। मीना की जब कमाल अमरोही से अनबन चल रही थी तो महमूद का ही घर था, जहां मीना को आसरा मिला। मीना एक बड़ी एक्ट्रेस थीं। उन्होंने बीआर चोपड़ा से महमूद की सिफ़ारिश की। लेकिन ख़ुद्दार महमूद को जब पता चला तो उन्होंने फ़िल्म छोड़ दी। हालांकि बाद में अपने पैरों पर जब वो खड़े हो गए तो चोपड़ा साहब की ‘धूल का फूल’ और ‘कानून’ में छोटे-छोटे किरदारों में दिखे।

महमूद यूं ही नहीं टॉप पर पहुंचे। कई छोटे-मोटे रोल किए। गुरुदत्त उन पर खासतौर पर मेहरबान रहे – सीआईडी, कागज़ के फूल, प्यासा में निगेटिव किरदार किए। ‘परवरिश’ में महमूद का बड़ा रोल था और वो भी भारी भरकम राजकपूर के सामने। बाद में उन्होंने कपूर ख़ानदान की ‘कल आज और कल’ की ‘हमजोली’ में सफ़ल कॉपी की। यह बड़ा मज़ाक था। कपूर खानदान और उनके शुभचिंतकों ने इस पर ऐतराज़ भी किया। महमूद तब तक बहुत बड़े कॉमेडी स्टार बन चुके थे। इसके बावजूद उन्होंने माफ़ी मांगी। (Mehmood Saved Amitabh Career)

स्ट्रगल के दिनों में महमूद की किशोर कुमार से भेंट हुई। महमूद की प्रतिभा से किशोर वाकिफ़ थे। कई प्रोड्यूसरों से उनकी सिफ़ारिश की, यह कहते हुए कि मैं अपने ही रोल तुम्हें दिलाकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा हूं। श्रीधर की कॉमेडी फिल्म ‘प्यार किए जा’ में किशोर और शशि कपूर हीरो थे, मगर फिल्म चली ओम प्रकाश-महमूद की भूतिया स्टोरी सेशन के कारण। दर्शक हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए।

तब महमूद ने किशोर से वादा किया अगर मैं कभी प्रोड्यूसर बना तो आपको अपनी फिल्म में ज़रूर कास्ट करुंगा। कालांतर में महमूद की ‘पड़ोसन’ में किशोर ने यादगार अदाकारी की। ‘साधु और शैतान’ में भी इनकी जोड़ी हिट रही। महमूद के हास्य मर्म को दक्षिण भारत के फिल्मकारों ने खूब भुनाया- ससुराल, हमराही, गृहस्थी, बेटी-बेटे आदि।

‘छोटे नवाब’ बनाकर महमूद ने खुद को कॉमेडी हीरो के रूप में प्रोजेक्ट किया। फ़िल्म भले नाक़ाम रही, मगर महमूद ने लोहा मनवा लिया कि वो किसी भी हीरो को कॉमेडी के बूते पीछे धकेल सकते हैं। साठ और सत्तर के सालों के दौर की कोई भी फ़िल्म देखें तो पता चलता है कि हीरो से ज्यादा महमूद को पूछा गया।

मुख्य कहानी के साथ महमूद की अलग कहानी चलने लगी। क्या बच्चे और क्या बूढ़े और जवान, सभी को महमूद की एंट्री का इंतज़ार रहने लगा। उनकी कॉमेडी ने न सिर्फ दर्शकों को हंसाया बल्कि कॉमेडी को भी हंसना सिखाया। शोभा खोटे और अरुणा ईरानी के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी। बरसों हवा भी रही की महमूद और शोभा खोटे ने शादी कर ली है। मगर ये सिर्फ गॉसिप कॉलमों तक सीमित रही। फिर महमूद की अरूणा से शादी की हवा उड़ी। कई साल बाद जब अरुणा की महमूद से अनबन हुई तो अरुणा ने महमूद को ही नकार दिया।

रद्दी फ़िल्में भी महमूद की वज़ह से लिफ़्ट हुईं। महमूद की मौजूदगी के कारण हीरो की चमक फीकी पड़ने लगी। शायद इसी कारण से फिल्म इंडस्ट्री में महमूद के दुश्मनों की संख्या बढ़ गयी। तमाम हीरो लॉबिंग करने लगे – महमूद हटाओ। लेकिन महमूद डटे रहे। यह उनका दौर था। वितरकों ने साफ़ कर दिया महमूद नहीं तो फ़िल्म नहीं उठेगी। फाइनेंसर भी पैसा देने से पहले पूछता था, महमूद है न? (Mehmood Saved Amitabh Career)

महमूद ने ‘छोटे नवाब’ में संगीतकार आरडी बर्मन को ब्रेक दिया। अमिताभ बच्चन के डूबते कॅरियर को ‘बांबे टू गोवा’ में लिफ्ट किया। स्ट्रगल और कड़की के दिनों में अमिताभ को महमूद का ही सहारा मिला। कहा जाता है कि अमिताभ उनके घर पर महीनों रहे। फ़िल्में दिलाने में भी महमूद ने उनकी बहुत मदद की। महमूद उनके लिए भाई जान थे। महमूद दीवार, ज़ंज़ीर और शक्ति में उनके प्रदर्शन से खुश होते रहे। महमूद ने एक इंटरव्यू में अपना दर्द भी उड़ेला – जब अमिताभ के पिताजी की तबीयत ख़राब थी तो मैं उनको देखने गया। हफ़्ते बाद उसी अस्पताल में मेरी बाई-पास सर्जरी हुई। अमिताभ अपने पिताजी को देखने सुबह-शाम आते रहे, लेकिन मुझे देखना तो दूर ‘गेट वेल सून’ का न कार्ड भेजा और न ही गुलदस्ता।

आईएस जौहर से महमूद की खूब पटरी खाती थी। ‘नमस्ते जी’ और ‘जौहर महमूद इन गोवा’ बड़ी कामयाबियां साबित हुईं। लेकिन ‘जौहर महमूद इन हांगकांग’ फ्लॉप रही। जौहर चाहते थे कि महमूद के साथ उनकी जोड़ी लॉरल-हार्डी के माफ़िक चले। महमूद ने मना कर दिया, क्योंकि जौहर की निगाह फ्रंट बेंचेर पर होती थी जबकि महमूद को हर वर्ग के प्यार की ज़रूरत थी।

महमूद बतौर हीरो भी कामयाब रहे। छोटे नवाब, नमस्ते जी और शबनम के अलावा लाखों में एक, मैं सुंदर हूं, मस्ताना, दो फूल, सबसे बड़ा रुपैया आदि इसकी मिसाल हैं।

महमूद ने बेशुमार फिल्मों में दक्षिण भारतीय किरदार अदा किए हैं। इस पर उन्हें खूब तालियां भी मिलीं। यहां कुछ गलती कर गए वो। अस्सी के सालों में वो खुद को दोहराने लगे। जब उन्हें इसका अहसास हुआ, तब तक देर हो चुकी थी। कॉमेडियंस की नई खेप आ चुकी थी। दर्शकों की पसंद भी बदल चुकी थी। (Mehmood Saved Amitabh Career)

महमूद खुद को बदल नहीं सके और न पुराने महमूद को खोज सके। हास्य की टाईमिंग गड़बड़ा गई। उनके लिए चुटीले संवाद लिखने वाले कुछ लेखक परलोक चले गए और कुछ को वक़्त खा गया। उन्हें हमेशा फैमिली का कॉमेडियन माना गया। ट्रेजडी यह भी रही कि फैमिली फ़िल्में बनना ही बंद हो गईं। कल तक जिनकी फ़िल्में महमूद भाई जान की कॉमेडी की वज़ह से चलती थीं, वो सब किनारा कर गए। ये सबूत है कि वक़्त कभी एक सा नहीं रहा, लगातार मिजाज़ बदलता रहा।

महमूद ने 1996 में दमदार एंट्री मारने की एक आख़िरी कोशिश की। अपने बेटे मंज़ूर अली का परिचय कराने के लिए ‘दुश्मन दुनिया का’ निर्देशित की। सलमान खान और शाहरुख़ खान भी भाई जान के प्रति प्रेम की ख़ातिर मेहमान बने, लेकिन दुनिया को हंसा नहीं सके। (Mehmood Saved Amitabh Career)

https://youtu.be/ILgrhR9rjyM

महमूद सिर्फ़ संवाद और मैंनेरिज़्म के बूते ही फ़िल्म को हिट नहीं कराते थे, उन पर फ़िल्माए अनेक गाने भी सुपर-डुपर हिट रहे। हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं.…अपनी उल्फ़त पे ज़माने का यह पहरा न होता…वो दिन याद करो.…प्यार की आग़ में तन बदन जल गया.…आओ ट्विस्ट करें…ओ मेरी मैना, तू मान ले मेरा कहना…तुझको रखे राम तुझको अल्लाह रखे.…एक चतुर नार करके सिंगार…सज रही गली मेरी अम्मा चुनरी गोटे में.…

महमूद को दिल तेरा दीवाना के लिए श्रेष्ठ सह-अभिनेता और प्यार किए जा, वारिस, पारस और वरदान के लिए श्रेष्ठ कॉमेडियन का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। इसके अलावा वो लव इन टोकियो, मेहरबान, नीलकमल, साधू और शैतान, मेरी भाभी, हमजोली, मैं सुंदर हूं, बांबे टू गोवा, दो फूल, दुनिया का मेला, कुंवारा बाप, क़ैद, सबसे बड़ा रुपैया, नौकर और खुद्दार के लिए बेस्ट कॉमेडियन नामांकित किए गए। उनकी कुछ अन्य चर्चित फ़िल्में हैं – छोटी बहन, बेटी-बेटे, राखी, आरती, दिल एक मंदिर, ज़िंदगी, ज़िद्दी, चित्रलेखा,दो दिल, आरज़ू, पत्थर के सनम, दो कलियां, औलाद, आंखें, प्यार ही प्यार, नया ज़माना, जिन्नी और जॉनी आदि। (Mehmood Saved Amitabh Career)

महमूद ने छोटी-बड़ी लगभग तीन सौ फ़िल्में कीं। 29 सितंबर 1932 को जन्मे महमूद ने 23 जुलाई 2004 को नींद में ही आख़िरी सांस ली। कॉमेडी की ट्रैजिक विदाई। उन दिनों वो अमेरिका में अपना इलाज करा रहे थे। महमूद युग के बाद अनेक कॉमेडियन आए और गए, लेकिन उनके जैसा दूजा कोई न आया।

(लेखक बॉलीवुड कलाकारों से जुड़ी खबरों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं)


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