द लीडर। एक तरफ जहां रमज़ान का पाक महीना चल रहा है। वहीं दूसरी तरफ कई लोग हिंदू मुसलमानों को लेकर कई तरह के बयान दे रहे है। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि देश के मुसलमान अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के मामले में वर्ष 1857 और 1947 से भी ज्यादा मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं। उन्होंने मुसलमानों, खासकर मुस्लिम महिलाओं से गुजारिश की है कि वे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के खिलाफ किए जा रहे ‘दुष्प्रचार’ के प्रभाव में न आएं।
मौलाना रहमानी ने अपने फेसबुक पेज पर वीडियो संदेश जारी कर आरोप लगाया कि, फिरकापरस्त ताकतें चाहती हैं कि हमें बरगलाएं, उकसाएं और हमारे नौजवानों को सड़क पर ले आएं। ऐसे ही मामलों में एक हिजाब का मसला भी है जो अभी कर्नाटक में मुसलमानों के लिए एक बड़ी आजमाइश का सबब बना हुआ है।’
मौलाना रहमानी ने लगाए ये आरोप
उन्होंने कहा कि, बोर्ड पहले ही दिन से इस मसले पर ध्यान दे रहा है और उसके लिए कानूनी उपाय कर रहा है। मौलाना रहमानी ने बोर्ड के खिलाफ दुष्प्रचार किए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि, अभी सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की गई है और बोर्ड के जिम्मेदार लोग एक लम्हे के लिए भी किसी ऐसे मसले से अनजान नहीं हुए जिसका शरीयत पर असर पड़ता हो।
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उन्होंने कहा कि, मगर अफसोस की बात है कि कुछ लोग बोर्ड के बारे में गलतफहमी पैदा करना चाहते हैं। …मैं मुसलमानों से दरख्वास्त करता हूं, खासकर मुस्लिम बहनों से कि आप ऐसे दुष्प्रचार से प्रभावित न हों और मुस्लिम समुदाय में नाराजगी पैदा करने की जो कोशिश की जा रही है, आप उसे कामयाब न होने दें।
1857 और 1947 से भी ज्यादा मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं
उन्होंने कहा कि, मुसलमान अपनी मजहबी रिवायतों पर संकट के मामले में 1857 और 1947 से भी ज्यादा मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं। कई तरफ से शरीयत-ए-इस्लामी पर हमला करने की कोशिश की जा रही है और मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है।
मौलाना रहमानी ने यह भी अपील की है कि, रमजान के महीने में इस मुल्क में मुसलमानों के लिए और उनके शरई अधिकारों की हिफाजत के लिए सभी दुआ करें। उन्होंने कहा कि, मुसलमान बच्चों को शिक्षित करें। ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम गल्र्स स्कूल और जूनियर कालेज खोलने की कोशिश की जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि, इस्लामी माहौल के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा की संस्थाएं भी कायम करें ताकि हमें दूसरों के रहमोकरम पर न रहना पड़े और अगर हुकूमत शरीयत पर अमल करने में बाधक बनती है तो हमें उससे नुकसान न पहुंचे और हम आत्मनिर्भर होकर अपने मजहब पर अमल करें।
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