तो कोरोना वायरस का सच दबाए बैठा है चीन!

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द लीडर डेस्क

वबा बन कर दुनिया पर टूट पड़ा ये कोरोना वायरस भी अजीब मसला बन गया। हिंदुस्तान में रामदेव जैसों ने इसे दो पैथियों की जंग में बदल दिया तो चीन और अमेरिका के शीत युद्ध में ये नया मुद्दा बन कर जुड़ गया। अभी तक इसका ओर छोर नहीं बता। नहीं पता कि ये आखिर आया कैसे और मरेगा कैसे ? ताज़ा खबर ये कि चीन कह रहा है अभी देखा ही क्या है? जाहिर है ये कोई धमकी नही बल्कि उस रिसर्च के हवाले से दी गई एक जानकारी है जो इस वबा की जड़ खोजने के लिए हो रही है। यानी ये एलर्ट है कि आगे और भी बड़े खतरे हो सकते हैं।
वायरोलॉजी के मामले में चीन की रिसर्च सबसे आगे है। यूं अमेरिका भी 200 से ज्यादा लैब्स में परीक्षण कर रहा है। पीपल्स डेली बता रहा है कि पहली बार चीन ने इस वायरस पर एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि आदमी की सांस नाली और फेफड़ों को तबाह करने वाले तमाम वायरस की जड़ चमगादड़ के बारे में अब तक की जानकारियां तो तिनके बराबर हैं। वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के वैज्ञानिकों ने तीन साल में 1000 से ज्यादा नमूने इकट्ठा किये हैं जिन पर शोध हो रहा है। श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले नौ वायरस चीन ने खोजे हैं जिनमें से एक कोविड 19 और सार्स का सोर्स हो सकता है।

अमेरिका की आशंका

जब चीन में इस स्तर की खोज हो रही है और वहां से निकले एक वायरस ने दुनिया में इतनी बडी तबाही मचाई है तो सबसे ज्यादा प्रभावित अमेरिका की चिंता वाजिब भी लगती है ।
अमेरिका चाहता है कि चीन जाकर वैज्ञानिक इस मामले में नए सिरे से जांच करें। अमेरिका के हेल्थ सेक्रेटरी जेवियर बेसेरा ने न सिर्फ इस मामले में नए सिरे की मांग की है बल्कि इसके लिए ताइवान को आब्जर्वर बनाने की भी बात कही है। चीन के दुश्मन को ऑब्ज़र्वर बनाने की बात ही एक नया पंगा है। जाहिर है इस पर चीन को खीझना था।

चीन और अमेरिका का शीत युद्ध

ट्रम्प के जमाने में तो डब्लूएचओ ही चीन की पार्टी साबित किया जा रहा था, यानी चीन का पक्षधर। कोरोना के दुनिया भर में फैल चुकने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम ने चीन का दौरा क़रने के बाद ये निष्कर्ष दिया कि ये वायरस किसी लैब में तैयार किया गया रासायनिक हथियार नहीं है। यह भी बताया कि यह चमगादड़ से निकला और फिर किसी प्राणी के शरीर में विकसित होने के बाद फैलता चला गया। अंत में इतना कह कर गुंजाइश छोड़ी गई कि इसके उद्गम पर और शोध की जरूरत है। अब पिछले करीब 20 दिन से दुनिया में ये बहस फिर छिड़ गई है कि कहीं ये वुहान की लैब में तैयार कोई जैविक हथियार तो नहीं?इस बहस की सूत्रधार है अमेरिका की खुफिया एजेंसी लेकिन ये भी अभी निष्कर्ष के साथ कुछ नहीं बता रही है।
ये तो सच है कि सार्स की तरह ये रोग भी चीन से आया। 2019 के अंत में चीन ने इसे जाहिर किया। इससे सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को हुआ। ब्राज़ील एक छोटा देश है इसलिए जनसंख्या के लिहाज से वहाँ तबाही का लेबल अलग था। शुरुआत में यूरोप के कई देशों में बड़े पैमाने पर मौतें हुई। अब भारत में जो हो रहा है उससे पूरी दुनिया चिंतित है। इसे छवि और प्रतिष्ठा का मुद्दा बना कर भले ही आंकड़ो के खेल से आधा सच दबाया जा रहा है लेकिन नए स्ट्रेन और काला सफेद फंगस के साथ इसकी भयावहता समझी जा रही है। अभी तो तीसरी लहर का हौव्वा सामने खड़ा है।
बहरहाल बात ताज़ा विवाद पर करते हैं। इसकी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया के एक अखबार ने की। कुछ दिन बाद वहीं एक और रिपोर्ट छपी और दो दिन पहले वाल स्ट्रीट जर्नल ने इसे आगे बढ़ाया है। सूत्र अमेरिका खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट है। जिसमें बताया गया है कि वुहान की इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के कुछ लोगों ने इस रोग के फैलने से पहले बीमार होने की सूचना दी थी। तीन शोध नवंबर 2019 में बीमार पड़े थे। अमेरिका की खुफिया एजेंसी के पास उनके बीमार पड़ने क़े समय और अस्पताल जाने से जुड़ी विस्तृत जानकारियां हैं। कुछ वीडियो फुटेज की बात कही जा रही है। कुल मिला कर यही साबित किया जा रहा है कि दरसअल ये वायरस चीन की वुहान लैब से ही बाहर आया। इतना कहने का मतलब साफ है कि उसे लैब में इसे तैयार किया जा रहा था।
अमेरिकी सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने वाल स्ट्रीट जर्नल की इस खबर पर कोई टिप्पणी क़रने से इनकार कर दिया लेकिन अब ये मसला चीन और पश्चिमी देशों की जंग सा दिख रहा है।

क्या कहता है चीन

इस नए विवाद पर पत्रकारों ने चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजियान से सवाल किया तो उन्होंने कहा, ” वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरलॉजी ने 23 मार्च को बयान जारी किया था। उस बयान के मुताबिक़ वहाँ पर 30 दिसंबर, 2019 से पहले कोविड-19 का कोई मामला सामने नहीं आया था और अभी तक यहाँ का कोई भी स्टाफ़ या छात्र संक्रमित नहीं हुआ है।”

चीनी विदेश मंत्री

“इसी साल जनवरी में चीन और डब्ल्यूएचओ की संयुक्त टीम ने कई संस्थानों का दौरा किया जिनमें वुहान सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल और वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरलॉजी भी शामिल थे। बायोसेफ़्टी प्रयोगशालाओं का दौरा करके वहाँ के विशेषज्ञों से खुलकर बात की गई इन सबके बाद एकमत से यह कहा गया कि इस वायरस के किसी लैब से लीक होने के दावों के सच होने की संभावना न के बराबर है। अमेरिका को कटघरे में लाते हुए उन्होंने कहा, ” फ़ोर्ट डेट्रिक में मौजूद बायोलॉजिकल लैब और दुनिया भर में 200 से ज़्यादा बायो-लैब बनाने के पीछे अमेरिका के असल मक़सद को लेकर भी को लेकर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता है.”
उन्होंने सवाल दागा कि अमेरिका का असल मक़सद क्या है? वह इस वायरस के मूल का पता लगाने को लेकर गंभीर है या फिर ध्यान बँटाने की कोशिश कर रहा है?

: कुछ तो छिपा रहा है चीन

जिस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के 17 सदस्यों को जनवरी में कुछ क्षेत्रों में ही जाने की इजाजत दी गई और जो आशंकाएं ये वैज्ञानिक वहां से लेकर लौटे उससे जाहिर है चीन कुछ छिपा रहा है। 7 दिसंबर 2019 को पहले कोविड मरीज की शिनाख्त चीन ने की। इस वायरस को उसी ने चिह्नित और नामित किया। इसके बावजूद दुनिया की चिंता बन चुकी इस बीमारी के अपने देश में पड़े प्रभाव को भी चीन ने ठीक से नहीं बताया।

कूपमंस

दुनिया के 17 सदस्यीय दल में शामिल हॉलैंड की वायरोलॉजिस्ट मारियों कूपमंस भी कह रही हैं कि चीन जाकर इस बार वहां की सरकार के ऑडिट से बाहर भी जांच होनी चाहिए। कूपमंस भी उस रिपोर्ट को लिखने वालों में शामिल हैं जिन्होंने इसका सोर्स चमगादड़ माना है।

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