आगरा में प्रशासन की अनुमति लेकर सड़क पर अदा की नमाज़, फिर क्यों हुआ नमाज़ियों पर मुक़दमा

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आगरा में इमली मस्जिद के बाहर नमाज़ अदा करते नमाज़ी. फाइल फोटो

द लीडर : लाउडस्पीकर से अज़ान पर अल्टीमेटम बना है. महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने 2 अप्रैल को अज़ान का मुद्​दा उठाया था. ठाकरे ने चेतावनी दे रखी कि, अज़ान की आवाज़ कम न की गई, तो उनकी पार्टी मस्जिदों के पास लाउडस्पीकर लगाकर हनुमान चालीसा बजाएगी. महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक, यूपी, दिल्ली में समेत दूसरे राज्यों से भी विरोध की आवज़ें उठीं. और जवाब में अज़ान के समय लाउडस्पीकर लगाकर हनुमान चालीसा किया जाने लगा.

लेकिन इससे भी हैरतअंगेज वाक्या यूपी के आगरा है. भारत में दो अप्रैल को रमज़ान का चांद नज़र आया था. और इसी दिन मस्जिदों में पहली तरावीह हुई. रमज़ान में आगरा की इमली वाली मस्जिद नमाज़ियों से फुल हो जाया करती है. मस्जिद में जगह कम पड़ने की समस्या अक्सर सामने आती. इसलिए कमेटी, ज़िला प्रशासन की इजाज़त पर बाहर सड़क तक नमाज़ की व्यवस्था करती है. इस बार भी यही किया गया. मस्जिद कमेटी ने ज़िला प्रशासन से अनुमति मांगी कि 2 से 9 अप्रैल तक तरावीह होगी. नमाज़ियों को मस्जिद परिसर के बाहर से गुजरने वाली सड़क पर नमाज़ अदा करने की इजाज़त दे दी जाए. कमेटी के अनुरोध पर प्रशासन ने सड़क पर नमाज़ की अनुमति दे दी, तो नमाज़ियों ने यहां नमाज़ अदा की.

लेकिन सड़क पर नमाज़ पढ़ने की सूचना से हिंदूवादी संगठन नाराज़ हो गए. हिंदू महासभा समेत कुछ दूसरे संगठन विरोध पर उतर आए. विवाद ज़्यादा बढ़ने लगा. संगठनों ने चेतावनी दे डाली कि अगर सड़क खाली नहीं कराई गई तो वे हनुमान चालीसा करेंगे. विवाद के बीच सिटी मजिस्ट्रेट ने नमाज़ के लिए दी अपनी अनुमति निरस्त कर दी.


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अब इस मामले में थाना एमएम गेट में गढ़ैया हकीम के सैयद इरफान अहमद और शमी अघाई के ख़िलाफ नामज़द रिपोर्ट दर्ज की गई है. इन्हीं ने प्रशासन से मस्जिद के बाहर नमाज़ अदा करने की अनुमति मांगी थी. इंस्पेक्टर अवधेश कुमार अवस्थी ने कहा कि, आयोजकों ने प्रशासन द्वारा दी गई अनुमति की शर्तों का उल्लंघन किया है. इसमें 2-3 नामज़द और क़रीब 150 अज्ञात के ख़िलाफ केस दर्ज किया गया है.

अज़ान की आवाज़ और प्रशासनिक अनुमति के बाद सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ को लेकर विरोध और विवाद का ये कोई पहला मौका नहीं है. बल्कि पिछले कुछ अरसे से इस पर मुसलसल बखेड़ा मचता रहा है.

हरियाणा के गुरुग्राम में स्थानीय प्रशासन ने नमाज़ के लिए जो क़रीब 36 स्पॉट रज़ामंदी के साथ चिन्हित किए थे. पिछले दिनों वहां भी नमाज़ को लेकर कितना हंगामा मचा. कई बार तो जुमे की नमाज़ के दौरान हालात बिगड़ते-बिगड़ते बचे. नमाज़ और अज़ान ये दो ऐसे मसले हैं, जिन पर हाल के समय में लगातार बवंडर खड़ा किया जाता रहा है.

हाल में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक आदेश जारी किया है. वो ये कि यूपी में कोई नई परंपरा नहीं पड़ेगी. और न ही बिना अनुमति के कोई जुलूस-शोभा यात्रा निकाली जाएगी. 3 मई को संभावित ईद है और अक्षय तृतीया भी. दोनों त्योहारों के मद्​देनज़र सीएम ने 4 मई तक के लिए पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की छुट्टियां निरस्त कर दी हैं. और उन्हें क्षेत्रों में एक्टिव रहने का निर्देश दिया. स्पष्ट संदेश के साथ किसी भी सूरत में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए.

मुख्यमंत्री के इस आदेश को मुसलमानों ने खुले दिल से सराहा है. इसलिए क्योंकि हाल में दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गाेवा और गुजरात से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सामने आईं. हर जगह शोभा यात्रा के दौरान हिंसा हुई. इसलिए यूपी में जब प्रशासनिक अनुमति के बिना जुलूस-रैली पर रोक लगाई गई तो मुस्लिम समुदाय सरकार के फ़ैसले का इस्तकबाल करने को आगे आया. आइएमसी के अध्यक्ष मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान ने कहा कि मुख्यमंत्री ने त्योहरों पर सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने की बेहतरीन कोशिश की है.

लेकिन इस बीच सरकार ने अज़ान का ज़िक्र किए बगैर आवाज़ कंट्रोल करने का निर्देश भी दे दिया. शासन ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर की आवाज़ परिसरों के बाहर नहीं जानी चाहिए. चूंकि अज़ान लाउडस्पीकर से होगी और आवाज़ परिसर के बाहर न जाए-व्यवहारिक तौर पर ऐसा संभव नहीं है. आवाज़ तभी कैंपस तक सीमित रहेगी कि जब लाउडस्पीकर का इस्तेमाल ही न किया जाए.

बहरहाल, कई जगहों से ऐसी ख़बरें भी आईं कि मस्जिद कमेटियों ने ख़ुद ही आवाज़ धीमी कर ली है. और गैरज़रूरी लाउडस्पीकर हटवा दिए हैं. समाज के बीच ये अपील भी की जा रही है कि जिन स्थानों पर लाउडस्पीकर के लिए प्रशासनिक अनुमति नहीं है, वे अनुमति ले लें.

कितनी तेज आवाज़ की है इज़ाजत

रिहायशी यानी आबादी वाले इलाकों में आवाज़ सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 55 डेसिबल तो रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसीबल तक ही रखा जा सकता है. जबकि व्यावसायिक क्षेत्र में सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 65 डेसीबल और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 55 डेसीबल तक का स्तर होना चाहिए. दूसरी ओर, औद्योगिक इलाकों में इस दौरान साउंड लेवल को सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 75 डेसीबल रख सकते हैं. दरअसल, इंसान के सांस लेने की आवाज़ या पेन गिरने की आवाज़ 10 डेसिबल तक होती है. सार्वजनिक स्थानों पर लगे लाउडस्पीकर 100 से 120 डेसिबल की ध्वनि पैदा करते हैं.

रिपोर्ट्स बताती हैं कि इंसान के लिए 70 डेसिबल तक की आवाज़ सामान्य है. इतनी आवाज़ में कोई नुकसान नहीं होगा. केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने इसे 65 डेसिबल तक सीमित कर रख है. कुछ रिसर्च रिपोर्ट बताती हैं कि 85 डेसिबल से ज़्यादा आवाज़ लगातार सुनने पर बहरेपन का ख़तरा रहता है.

ये है क़ानून

भारत का ध्वनि प्रदूषण (अधिनियम और नियंत्रण) क़ानून, जोकि 1986 के पर्यावरण-संरक्षण क़ानून के दायरे में आता है. इसी में लाउडस्पीकर और आवाज़ के मानक बताए गए हैं. इसके मुताबिक सार्वजनिक स्थानों पर तेज आवाज़ या लाउडस्पीकर के लिए ज़िला प्रशासन से लिखित मंज़ूरी लेनी होगी. सार्वजनिक स्थानों पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर नहीं बजाया जाएगा.

लाउडस्पीकर पर कोर्ट ने कब क्या कहा

लाउडस्पीकर का मसला कई बार कोर्ट पहुंचा है. कर्नाटक, मुंबई, इलाहाबाद, उत्तराखंड समेत अन्य हाईकोर्ट ने इस पर समय-समय पर फ़ैसले सुनाए हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2016 में एक फ़ैसला दिया था कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल मूल अधिकार नहीं है. और सभी धार्मिक स्थलों को ध्वनि प्रदूषण पर बनाए गए क़ानून का पालन करना होगा. 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लाउडस्पीकर की आवाज़ 5 डेसिबल तय कर दी थी. हालांकि दो साल बाद 2020 में कोर्ट ने अपनी इस लिमिट को हटा लिया है. 2020 में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि लाउडस्पीकर इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा नहीं है.


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