द लीडर। इस बार का यूपी विधानसभा चुनाव बेहद ही दिलचस्प होने जा रहा है. जिसके लिए चुनावी बिसात बिछ चुकी है. और पार्टियां जनता को रिझाने में लगी है. और बड़े-बड़े वादे कर रही है. लेकिन 10 मार्च को ही फैसला आएगा की जनता किस पार्टी को सत्ता सौंपने वाली है.
पहले दो चरणों के चुनाव में मुस्लिम वोटरों की भूमिका
यूपी के इस विधानसभा चुनाव में एक चरण का मतदान 10 फरवरी को होना है. और दूसरा मतदान 14 फरवरी को होना है. जिसको लेकर भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस समेत कई छोटी-बड़ी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतार दिया है. लेकिन इस विधानसभा के दोनों ही चरणों में मुस्लिम वोटरों की अहम भूमिका है.
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जी हां उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले दो चरण के मतदान के लिए 20 जिलों में चुनावी रणभेरी बज चुकी है. दोनों चरणों के लिए सभी सियासी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि, दोनों ही चरणों में मुस्लिम वोटरों की भूमिका अहम रहने वाली है.
सभी दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेला
यही वजह है कि, बीजेपी को छोड़कर सभी दलों ने भारी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेला है. मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारने की एक वजह यह भी है कि कई सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं.
पहले दो चरणों में पश्चिम यूपी के 113 सीटों पर मतदान होना है और 127 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं. पहले चरण में 11 जिलों की 58 और दूसरे चरण में 9 जिलों की 55 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा.
इन सभी सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन, बसपा, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने जमकर मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. पहले चरण में 50 तो दूसरे चरण में 77 मुस्लिम उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
इन दलों ने इतने मुस्लिमों को दिया टिकट
पहले चरण के लिए सपा-रालोद गठबंधन ने 13, बसपा 17, कांग्रेस के 11 और AIMIM के 9 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं दूसरे चरण में सपा-रालोद गठबंधन की तरफ से 18 बसपा के 23, कांग्रेस के 21 और AIMIM की तरफ से 15 उम्मीदवार मैदान में हैं.
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अगर 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो पहले चरण की 58 सीटों में से बीजेपी को 53 तो दूसरे चरण की 55 सीटों में से 38 सीटें बीजेपी की झोली में गई थी.
विपक्ष ने मुस्लिमों पर जताया भरोसा
यही वजह है कि, बीजेपी ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में न साफ संदेश दिया है कि वह अपने हिंदुत्व के मुद्दे पर अडिग है. जबकि अन्य विपक्षी दलों ने मुस्लिम वोटरों की निर्णायक भूमिका को देखते हुए मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला है.
10 मार्च को जब यूपी विधानसभा चुनावों के परिणाम आएंगे तो पता चलेगा कि, किस पार्टी की रणनीति कारगर रही. क्या जनता फिर से भाजपा को सत्ता सौंपेगी या फिर अन्य पार्टी पर जनता विश्वास जताएगी.
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