द लीडर हिंदी : नौकरी, नौकरी शब्द आते ही हमें पैसा दिखाई देने लगता है. नौकरी होगी तो पैसा होगा,और अगर पैसा होगा तो सभी तरह के जरूरतों को हम आसानी से पूरा कर पाएंगे,ऐसे ख्याल हमारे दिमाग में आने लगते है. इस मौजूदा वक्त में दुनिया की 60% आबादी यानी तकरीबन 550 करोड़ लोग किसी-न-किसी रूप में नौकरी से जुड़े हैं. क्योकि घर चलाना है, अगर शादीशुदा है तो आप पर काफी बोझ होता है, जैसे बच्चों की पढ़ाई घर की छोटी से लेकर बड़ी जिम्मेदारियों का ध्यान रखना. गाड़ी,मकान खरीदना, और भी अनेक तरफ की चीजे होती है. और इनको पूरा करना नौकरी पर टिका होता है. क्योकि नौकरी एक कमाई का जरिया होता है. जिससे हम धन जोड़ पाते है.
बता दें कि अगर कोई मल्टी नेशनल कंपनी में लाखों की पैकेज वाली नौकरी कर रहा है तो किसी को पेंशन और रिटायरमेंट के साथ सुरक्षा वाली सरकारी नौकरी प्यारी होती है. कुछ ऐसे भी हैं, जो कम तनख्वाह पर दफ्तरों और फैक्ट्रियों में 9 से 6 की कड़ी ड्यूटी बजाते और दूसरों की नौकरियों से रश्क करते हैं.इनके सिर पर बॉस की डांट और नौकरी जाने का खतरा भी हमेशा मंडराता रहता है.
इस लिये इनको हर समय किसी ना किसी परेशानी का सामना करना पढ़ता है. लेकिन इससे लोगों की जिंदगी पर क्या प्रभाव पड़ता है? अगर आप नौकरी को सिर्फ बैंक बैलेंस से जोड़कर देखते हैं तो एक नई रिसर्च आपको नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर देगी. बता दें कि एक शोध में दावा किया गया है कि लोगों की जिंदगी कितनी लंबी होगी, यह सीधे-सीधे उनकी नौकरी और काम के माहौल पर निर्भर करता है. इस भागदौड़ वाली जिंदगी में नौकरी का बड़ा ही असर हमारे जीवन पर पढ़ता है. बता दें कि स्टडी के मुताबिक परमानेंट यानी सुरक्षित नौकरी वाले लोगों की उम्र कॉन्ट्रैक्ट जॉब वालों या असुरक्षित नौकरी वालों के मुकाबले लंबी होती है.
जानते है आखिर क्या कहती है ये नई रिसर्च
मिली जानकारी के मुताबीक पता चला है कि स्वीडन की करोलिंस्का संस्थान नौकरी और लंबी उम्र के रिश्ते की पड़ताल करती है. अलग-अलग तरह की नौकरियां करने वाले 2.5 लाख लोगों पर साल 2007 से 2015 के बीच रिसर्च की गई इस दौरान उनके काम करने की जगह और वहां का माहौल कैसा, तनख्वाह आदि के बारे आंकड़े जुटाए गए. दूसरी तरफ, पूरी रिसर्च के दौरान सभी प्रतिभागियों की सेहत की भी निगरानी रखी की गई.
इसमें पाया गया कि जिन लोगों की नौकरी अनिश्चितता भरी है; उन लोगों के परमानेंट नौकरी वालों के मुकाबले समय से पहले मरने की आशंका 20% तक ज्यादा होती है. साथ ही अगर कोई शख्स 12 साल तक परमानेंट नौकरी कर लेता है तो उसके समय से पहले मरने का खतरा 30% तक कम हो सकता है. रिसर्च की रिपोर्ट में बताया गया कि किसी की उम्र कितनी लंबी होगी, यह सीधे-सीधे उनकी नौकरी पर निर्भर करता है.
‘लेऑफ एंग्जाइटी’ से दुनिया को 80 लाख करोड़ रुपए का नुकसान
अनिश्चितता भरी नौकरी लोगों की उम्र को कम करने के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी भारी चपत लगाती है. ‘workmonitor 2023’ सर्वे के मुताबिक दुनिया के 52% कामगार इसी चिंता में जी रहे हैं कि कहीं उनकी नौकरी न चली जाए. कोरोना महामारी के बाद इस चिंता में डूबे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है.ऐसे लोगों के फिजिकली और मेंटली बीमार होने की आशंका बाकी लोगों की तुलना में काफी ज्यादा होती है.
वही दूसरी तरफ, इससे न सिर्फ उनकी सेहत बल्कि ग्लोबल इकोनॉमी को भी भारी नुकसान हो रहा है.वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक ऑफिस में होने वाली एंग्जाइटी और डिप्रेशन के चलते हर साल ग्लोबल इकोनॉमी को 1 ट्रिलियन डॉलर यानी तकरीबन 80 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है.भारत के 80% कामगार गैर-संगठित क्षेत्र में, अमेरिका में सिर्फ 7%
रिसर्च यह कहती है कि स्थायी और सुरक्षित नौकरी अच्छी सेहत के लिए जरूरी है. लेकिन देश में नौकरी से जुड़े आंकड़े काली हकीकत बयां करते हैं. भारत के 80% कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. यानी उनकी नौकरी में नौकरी जैसा कुछ है ही नहीं. ये रोज कुआं खोदकर पानी पीने जैसा है. इस सेक्टर में खेती-किसानी, दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी-पटरी और छोटे दुकानदारों को रखा जाता है. जबकि दूसरी तरफ, विकसित देशों के ज्यादातर नागरिक संगठित क्षेत्र में काम करते हैं. अमेरिका में सिर्फ 7% कामगार ही असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं.