गुजरात : अदालत के फैसले पर जियाउद्दीन सिद्दीकी खुदा का शुक्र अदा करते हैं. ठीक 20 साल तक अपनी बेगुनाही की लड़ाई लड़ते रहे. आखिरकार सूरत की एक अदालत (Court) ने उन समेत 122 लोगों को गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे संगीन इल्जाम से बरी कर दिया है. किसी इंसान की जिंदगी में 20 साल का वक्त काफी अहम होता है. इस अरसे में कई नौजवान, जो अब बुढ़ा चुके हैं. उनके चेहरों पर खुशी है तो जुबां पर सिस्टम के लिए कुछ सवाल भी है, जो यकीनन गंभीर हैं. (Justice 20 Years 122 Acquitted UAPA)
मामला सूरत के सगरामपुरा का है. जियाउद्दीन सिद्दीकी बताते हैं कि साल 2001 में राजशाही हॉल में ऑल इंडिया माइनॉरिटी एजुकेशन बोर्ड का एक सेमिनार था. हम सब लोग इसमें शामिल होने पहुंचे थे. 27-28 दिसंबर की रात को पुलिस पहुंचती है और कार्यक्रम में पहुंचे सभी करीब 127 लोगों को अनलॉफुल एक्टिविटी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता है. इस बीच हम एक साल तक जेल में रहे. और तब से इंसाफ की ये लड़ाई चली आ रही है.
After 20 years, Surat court acquits 126 Muslim activists in SIMI case
If someone is harassed for 20 years in the same way by misusing their power through police & admn
Who will compensate the 127 people and their families who have suffered for 20 years?#Islamophobia_in_india pic.twitter.com/LSKAcSd8ik
— faizan (@faizan0008) March 6, 2021
यूएपीए के तहत गिरफ्तार सभी लोगों पर स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI)के सदस्य होने का आरोप था. सिमी एक प्रतिबंधित संगठन है. इसी मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एएन दवे की अदालत ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए आरोपों से बरी कर दिया है. इस 20 साल के अंतराल में 5 आरोपियों की मौत हो चुकी है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष-ठोस सुबूत पेश करने में नाकाम रहा कि आरोपी सिमी से जुड़े थे और प्रतिबंधित संगठन की एक्टिविटीज को बढ़ाने के लिए इकट्ठा हुए थे. इसलिए आरोपियों को यूएपीए के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
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अपने ऊपर लगे आरोपों से बरी होने के बाद जियाउद्दीन सिद्दीकी सिस्टम पर सवाल खड़े करते हैं. वे कहते हैं कि जिसने हमारी शिकायत की, वही शख्स हमारे केस का जांच अधिकारी था. कानूनी रूप से ये कैसे सही है-मैं नहीं जानता. क्योंकि सिस्टम ने उन्हें ताकत दे रखी है.
वह कहते हैं कि सिस्टम ने हमारे 20 साल खराब कर दिए. झूठे केस में हम सब एक साल जेल भी रहे. इस बीच मानसिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर हमारे परिवारों को तमाम परेशानियां उठानी पड़ीं. कई लोगों की नौकरियां चली गईं और कारोबार ठप हो गए. ऊपर से वकीलों की फीस, ये सब पूरे 20 साल तक चलता रहा है.
आखिर, रोज कमाने-खाना वाला कोई व्यक्ति ये सब कैसे सहन कर सकता है? ये सवाल है. अगर सिस्टम 20 साल तक बेगुनाहों को रगड़कर न्याय देता भी है तो उस बीच हुए नुकसान की भरपाई कैसे और कौन करेगा. उन लोगों को मुआवजा कौन देगा.
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एक अपील करते हैं कि भविष्य में किसी बेकसूर को इस तरह न सताया जाए. उनके सामने ऐसे हालात न पैदा किए जाएं, जिसमें उनकी जिंदगियां बर्बाद होकर रह जाएं.
माइनॉरिटी एजुकेशन बोर्ड के सेमिनार में भाग लेने तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, राजस्थाान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, यूपी, बिहार आदि राज्यों से लोग पहुंचे थे. और इन सभी को सिमी से जुड़ने होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. आरोपियों ने कहा था कि वे अखिल भारतीय अल्पसंख्यक शिक्षा बोर्ड के बैनत तले होने वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेने को उपस्थित हुए हैं. (Justice 20 Years 122 Acquitted UAPA)