पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी की किताब ने दे दिए थे राज्यसभा टेलिविजन ‘खत्म’ होने के संकेत

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विनीत कुमार

पब्लिक ब्रॉडकास्टर के तौर पर सरकारी भोंपू के नाम से बदनाम दूरदर्शन से अलग पहचान रखनेवाले चैनल राज्यसभा टेलिविज़न और लोकसभा टेलिविज़न का आपस में विलय हो गया जिसे कि आगे से संसद टीवी के तौर पर जाना जाएगा.

यह होने वाला है, इसके संकेत देश के पूर्व उपराष्ट्रपति और चैनल के चेयरमैन मो. हामिद अंसारी किताब ‘बाइ मैनी अ हैप्पी एक्सीडेंट: रिकलेक्शंस ऑफ अ लाइफ’ (BY MANY A HAPPY ACCIDENT: RECOLLECTIONS OF A LIFE) में स्पष्ट रूप में मिलते हैं.

वैसे तो ये पूरी पढ़ने लायक बेहतरीन किताब है लेकिन मीडिया के छात्रों के लिए विशेष तौर पर एक अध्याय है- वाइस प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया एंड चेयरमैन, राज्यसभा (Vice President of India and Chairman, Rajya Sabha).

जिस तरह दूरदर्शन के इतिहास को समझने के लिए भाष्कर घोष की किताब ‘दूरदर्शन डेज’ (Doordarshan Days) एक ज़रूरी किताब है, उसी तरह राज्यसभा टीवी के शुरु होने लेकर इसकी रणनीति संबंधी पूरी जानकारी के लिए इस अध्याय से गुज़रना अनिवार्य है.

कुल मिलाकर इस चैनल की धार ख़त्म करने का इरादा सत्ताधारी दल ने शायद बहुत पहले कर लिया था, इंतज़ार था तो महज अंसारी साहब के जाने का। लेकिन इसका अंत इस तरह से होगा, इसका अंदाज़ा नहीं था.

एक टेलिविज़न दर्शक की हैसियत से कहूं तो मैं इसे लेकर न तो उदास हूं और न ही हैरान। बल्कि मेरी स्थिति ऐसी है, जैसे बिस्तर पर पड़े अपने बेहद आत्मीय को गहरी पीड़ा में देखने के बाद मुंह से अपने आप ही निकल जाता है- ये इस तक़लीफ से मुक्त ही हो जाएं तो अच्छा है.

पांच अगस्त 2020 की सुबह जब मैं उठा तो सबसे पहले राज्यसभा टेलिविजन लगाकर बैठ गया. हम इस चैनल के बदलते अंदाज़ से पूरी तरह परिचित थे। इसके बावज़ूद इस बात की उम्मीद थी कि कुछ और नहीं तो पैकेजिंग और प्रोडक्शन के स्तर पर यह किसी दूसरे पेशेवर चैनल की तरह ही दमदार होगा।

लेकिन नहीं. चैनल पूरी तरह लचर, लद्दड़ और उबाऊ हो चला था, जिसके लिए लंबे समय तक दूरदर्शन बदनाम रहा है. आप दूरदर्शन की साइट योजना पर आयी रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि ऐसे दौर में जबकि टेलिविज़न लोगों की ड्राइंगरूम और शहरों तक भी न पहुंचा था, ग्रामीण क्षेत्रों में सामूहिक स्तर पर जन-जागरुकता अभियान के तहत जब इसके कार्यक्रम दिखाए जाते तो कुछ तो इतने बोरिंग होते कि लोग सो जाते.

ख़ैर, राज्यसभा टेलिविज़न की सबसे ख़ास बात थी कि इसकी प्रोडक्शन क्वालिटी इतनी बेहतरीन होती कि यदि लोगो और ऑडियो म्यूट कर दिया जाता तो आप उसे अल ज़जीरा और सीएनएन के बराबर पाते. एक सरकारी सिस्टम के भीतर सुस्ती और सब चलता है वाला जो अंदाज़ हुआ करता है, चैनल इससे पूरी तरह मुक्त था.

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इरफ़ान ( Syed Mohd Irfan) ने ठीक ही लिखा है, ”भारत में टीवी दर्शकों के सामने एक नया आस्वाद प्रस्तावित करने वाला यह अनूठा चैनल था जिसमें कोई ब्रेक नहीं होता था। कोई विज्ञापन नहीं था। सूचना, मनोरंजन और ज्ञान का ऐसा गुलदस्ता जिसे हर वर्ग और आयु के दर्शकों का प्यार और विश्वास मिला।”

देश के नागरिकों के, करदाताओं के पैसे से चलनेवाला चैनल कैसा होना चाहिए, राज्यसभा टेलिविज़न अभी तक की अकेली मिसाल है. आने वाले समय में जब भी पब्लिक ब्रॉडकास्टर को बोरिंग और ‘सरकारी भोंपू’ कहा जाएगा तो राज्यसभा टेलिविज़न के शुरु से लेकर अगले पांच साल तक के समय को अलग करना पड़ेगा.

ये वो चैनल था जिसे सिविल सर्विसेज से लेकर सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनेवाले छात्र क्लासरूम की तरह देखते. मुकर्जीनगर के कई कोचिंग संस्थान पूरे-पूरे एपिसोड को डाउनलोड करके उनका लिखित पाठ ( ट्रांसक्रिप्शन ) तैयार करके स्टडी मटीरियल के तौर पर छात्रों को दिया करते. इस पर प्रसारित सामग्री और तथ्यों पर आंख मूंदकर भरोसा करते.

साल 2013 में जब पहली बार इस चैनल ने मुझे मीडिया मंथन कार्यक्रम में बुलाया, जिसे कि उर्मिलेश प्रस्तुत करते और दिलीप पूरे मनोयोग से बारीक से बारीक स्तर पर शोध करके प्रोड्यूस करते, मुझे लगा कि जैसे कोई सम्मान देने के लिए बुलाया हो. एक दर्शक के तौर पर चैनल के बेबाक़ अंदाज़ का कायल तो था ही लेकिन भीतर थोड़ी हिचक भी थी कि पता नहीं किस बात को लेकर दिक़्कत हो जाय और बुलाने वाले को फजीहत उठानी पड़े.

मैंने बोला और यूपीए-2 सरकार की प्रसारण नीतियों के प्रति असहमति जताते हुए बोला. लोगों को मेरा अंदाज़ पसंद आया. उसके बाद वहां के लोग मुझे ‘मीडिया मंथन’ के अलावा प्राइम टाइम के शो ‘सरोकार’ में भी बुलाने लगे.

2014 में केन्द्र की सरकार बदली लेकिन चैनल का अंदाज़ वही रहा. ये अंसारी साहब के चेयरमैन बने रहने तक बरक़रार रहा. सरकार बदलने के बाद तो दूरदर्शन ने बुलाना बंद कर दिया, लेकिन इस चैनल पर तब भी बुलाया जाता रहा. उसी अंदाज़ में अपनी बात रखता जैसा पहले रखता आया था. कभी किसी ने कोई रोक-टोक नहीं की और ये नहीं कहा कि कुछ ग़लत कहा है.

एक बार तो राकेश सिन्हा ( सांसद, राज्यसभा ) को संबोधित करते हुए एकदम से कह दिया था- ‘सर, मतलब यही हुआ न कि संस्कृति आपको पांच साल पुरानी चाहिए और अर्थव्यवस्था एकदम लेटेस्ट. ऐसा है संभव?’ उसके बाद एकाध बार औऱ बुलाया गया होऊंगा.

राज्यसभा टीवी पर बोलने जाता तो पूरे उत्साह में रहता. पहले से खूब तैयारी करके जाता. एक-एक रेफरेंस के पीछे अपने को झोंक देता. देश के अलग-अलग हिस्से से मीडिया और सामयिक मुद्दे में दिलचस्पी रखनेवाले लोगों का फोन आता. राह चलते लोग पहचानते.

एक बार तो अहिन्दी प्रदेश चेन्नई एयरपोर्ट पर एक व्यक्ति ने हैलो करते हुए कहा- ‘आप विनीत हो, मैं आपको आरएसटीवी पर देखता हूं.’ मुझे जानकर अच्छा लगा कि यहां भी लोग इस चैनल को देखते हैं.

क्या हिन्दी, क्या अंग्रेजी के कार्यक्रम आते, एंकर की इसके पीछे क्या तैयारी होती! प्रोड्यूसर छोटी-छोटी चीज़ों को बेहतर करने के पीछे एड़ी-चोटी एक कर देते. हमने एक पब्लिक ब्रॉडकास्टर को अपनी आंखों के सामने अपने देश के नागरिकों के प्रति पूरी ईमानदारी से सूचना और जानकारी का प्रसार करते देखा. उन्हें देखकर हम दुआ करते कि ये चैनल खूब आगे जाए.

लेकिन, अब ये चैनल अस्तित्व में नहीं है. मन उदास तो है लेकिन एक इत्मिनान भी कि चलो अच्छा हुआ. हम रोज़ इसकी गिरावट देखते, अफ़सोस करते और इसकी वो छवि ख़त्म हो जाती जो हमारे सामने बनी थी. इसका वजूद ही है जो आनेवाले समय में इसकी ज़रूरत को रेखांकित करता रहेगा.

(लेखक वरिष्ठ मीडिया समीक्षक हैं, यह उनके निजी विचार हैं, साभार)

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