द लीडर हिंदी: महाराष्ट्र में नबी की शान में ग़ुस्ताख़ी के बाद से माहौल बना हुआ था. जिस तरह से मुख़ालेफ़त में आवाज़ें उठ रही थीं. सरकारी गलियारों से रामगिरि महाराज की हिमायत ने गिरफ़्तारी के शोर को और तेज़ दिया. तब औरंगाबाद के AIMIM के सांसद रहे इम्तियाज़ जलील ने दूरंदेशी से भरा फ़ैसला लिया. वो इस मुद्दे पर संविधान बचाने की बात कहकर तिरंगा यात्रा लेकर निकल पड़े. बेहद सही प्लानिंग के साथ संभाजी नगर से 500 से ज़्यादा कारों का काफ़िला लेकर सैकड़ों किमी. दूर मुंबई के लिए निकल पड़े.
रास्ते में जिस तरह का उन्हें रिस्पांस मिला, वो बेहद ज़बर्दस्त था. बिल्कुल वैसे ही कि लोग साथ आते गए और कारवां बनता चला गया. जब यह काफ़िला अपना सफ़र तय करके मुलुंद टोल नाका पहुंचा तो भीड़ ही भीड़ थी. नारा-ए-तकबीर अल्लाहु अकबर, लब्बैक या रसूलुल्लाह लब्बैक से फ़िज़ा गूंज रही थी. तब अपने सटीक संबोधन से इम्तियाज़ जलील महफ़िल को लूटकर ले गए…. चूंकि वो ख़ुद एक बड़े चैनल के रिपोर्टर रहे हैं, उन्हें पता था कि मेन मीडिया के कौन से सवाल पर क्या जवाब देना है, और क्या नहीं कहना है, जिससे उनकी छवि और निखर सकती है. यह किसी सियासी के लिए वैसा ही माहौल था, जैसा बहुत पहले मेरठ में बसपा के नेता हाजी याक़ूब क़रैशी के लिए दिखा था, तब जब उन्होंने फ्रांस में आक़ा का कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट के लिए बड़ा एलान कर दिया था लेकिन अब भाजपा के सत्ता में आने से नज़ारा कुछ नहीं काफी कुछ बदल चुका है. ज़ुबान संभालकर नहीं बोलने की वजह से समाजवादी पार्टी के क़द्दावर नेता मुहम्मद आज़म ख़ान जेल में हैं.
इम्तियाज़ जलील की नबी की शान में ग़ुस्ताख़ी के ख़िलाफ़ निकाली गई तिरंगा यात्रा में सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि वो अपने यादगार और मुद्दत बाद भीड़ के एतबार से तारीख़ी प्रदर्शन को साथ ख़ैरियत के पूरा करा ले जाएं. वो इस कसौटी पर खरा उतरे. जब उन्हें लगा कि भीड़ में शामिल नौजवान बेक़ाबू होते दिख रहे हैं तो उन्होंने पुलिस कमिश्नर और कलेक्टर को अपना ज्ञापन सौंपा और संभाजी नगर के लिए वापसी कर ली. मुलुंद नाका पर हाईवे खुलवाने के लिए पुलिस का लाठीचार्ज उनके चले जाने के बाद हुआ. यही वजह रही कि उन्हें अपने प्रदर्शन से उतना मिल गया, जितना कि उन्होंने ख़ुद भी नहीं सोचा होगा. इस तरह के कार्यक्रम की आसानी से तारीफ़ नहीं करने वाला मेन मीडिया भी इम्तियाज़ जलील को चैनलों पर सराहता नज़र आया.
इम्तियाज़ जलील के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि वो अपनी उस पार्टी में नूर-ए-नज़र बन गए, जिस AIMIM को वनमैन शो वाला दल कहा जाता है. यह पार्टी बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी के इर्द-गिर्द ही चलती है. बड़े प्रदर्शन के बाद जब AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के मुंह से इम्तियाज़ जलील के हिस्से इतनी तारीफ़ आई, जितनी अब से पहले किसी नेता को नहीं मिली होगी.
बतौर इनाम उनके लिए औरंगाबाद विधानसभा सीट से टिकट का एलान भी हो गया.. बरहाल, इम्तियाज़ जलील का सियासत में ज़बर्दस्त उदय यह बताता है कि हारजीत लगी रहती है, हार से निराश होकर बैठा नहीं जा सकता. वो औरंगाबाद से सांसद थे और हार के बाद भी हिम्मत नहीं हारी. अपना सांसद जिताकर ख़ुश हो रही सत्ताधारी पार्टी को मांद में जाकर चुनौती देने के लिए निकल पड़े और तब से अब तक लगातार ज़बर्दस्त चर्चा में हैं.